SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मक्ति द्वंद्वातीत है यहां भी जंजीरें बंधी हैं? इसे देखकर तो मेरी घबड़ाहट बढ़ती | अब ध्यान को रखकर करोगे क्या? अब ध्यान की जरूरत है। यह मामला क्या है ? ये लोग बंधे क्यों हैं? कहां रही? यह तो ऐसा हुआ कि किसी अंधे को आंखें मिल गई उसने कहा कि ये लोग नर्क जाना चाहते हैं इसलिए जंजीरें और अब वह पूछता है कि यह मेरी लकड़ी, जिससे मैं डालना पड़ीं। ये लोग एकदम उतावले हो रहे हैं। ये कहते हैं, टटोल-टटोलकर चलता था जब मैं अंधा था, तो अब इस स्वर्ग तो देख लिया, अब नर्क देखना है। ये कहते हैं, यहां तो | लकड़ी का क्या करूं? और कहां रखू? मैं इसको छोड़ तो ऊब आने लगी। देख लिया, जो देखना था। पता नहीं नर्क में | सकता नहीं, क्योंकि इसने कितना साथ दिया है! अंधा था तो कहीं ज्यादा मजा हो। इसी से टटोल-टटोलकर चलता था। आंखें तो आज मिलीं, मन ऐसा है। स्वर्ग भी पहुंच जाओगे तो भी चैन से न बैठने | अंधा तो जन्मों से था। लकड़ी ने जन्मों साथ दिया, इसे कैसे देगा। अब जिसने पूछा है, 'मिठास की याद भी मुंह को स्वाद से छोड़ दं? भर देती है।' जब याद इतने स्वाद से भर रही है तो चल पड़ो। | प्रेम मिल गया तो ध्यान की कोई जरूरत नहीं। ध्यान मिल स्मरण तुम्हारा मार्ग है, सुरति तुम्हारी विधि है। अब इस मिठास गया तो प्रेम की कोई चिंता नहीं। दो में से एक सध जाए। और में डूबो। मिठास हो जाओ। दोनों के बीच अपने मन को डांवांडोल मत करना, अन्यथा तुम 'प्रकाश का स्मरण अंतस को आलोक से, ऊष्मा से भर देता | त्रिशंकु हो जाओगे। है। मैंने सुना था कि ध्यानमूलं गुरुमूर्तिः। और मुझे आपका | और जब मैं कह रहा हूं, एक सध जाए तो मेरा मतलब यही है स्मरण एक प्रगाढ़ रसमयता, आनंद और तन्मयता से भर देता कि एक के सधते दसरा अनायास अपने आप सध जाता है। उजाड़ से लगा चुका उम्मीद में बहार की तो फिर अब बैठे-बैठे क्या कर रहे हो? तो फिर रुके क्यों | निदाघ से उम्मीद की, वसंत की बयार की हो? जहां से रस बहे, जानना वहीं सत्य है। रस सत्य की खबर मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी लाता है। रसो वै सः। उस परमात्मा का स्वभाव रस है। जहां से अंगार से लगा चुका उम्मीद मैं तुषार की रस बहे, समझना परमात्मा छिपा है। पत्थर से बहे, तो प्रतिमा हो कहां मनुष्य है जिसे न भूल शूल सी गड़ी गई वह परमात्मा की। भोजन से बहे, तो अन्न ब्रह्म हो गया। इसीलिए खड़ा रहा कि भूल तुम सुधार लो संगीत से आए तो संगीत अनाहत का नाद हो गया। जिस व्यक्ति इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो की उपस्थिति में लगने लगे वह रस, तो उपस्थिति उसकी पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो भगवतस्वरूप हो गई। वह व्यक्ति भगवान हो गया। ध्यानी कहता है, मैं अपने को सधारूंगा। ध्यानी का अर्थ है: जहां से रस मिल जाए, चल पड़ना उस तरफ अंधे की भांति। सारा दायित्व मेरे ऊपर है। फिर आंखों को रख देना। इन आंखों का काम तो तभी तक था, प्रेमी का अर्थ है। इसीलिए खड़ा रहा कि भूल तुम सुधार जब तक रस का पता न हो। यह आंखों से टटोल-टटोलकर लो। कि तुम मुझे पुकार लो, कि पुकार कर दुलार लो, कि चलना तभी तक ठीक था, जब तक रस का पता न हो। जब रस दुलार कर सुधार लो। की झलक मिलने लगी, तो अब सब छोड़ो समझदारी। अब हो | प्रेमी का अर्थ है, कि वह कहता है, कि मैंने छोड़ दिया तुम्हारे जाओ नासमझ। अब हो जाओ पागल। अब हो जाओ उन्मत्त। हाथों में। अब तुम सुधार लो। मेरे किए न होगा। मेरे किए होगा दौड़ पड़ो। अब चलने से काम न चलेगा। आंधी-अंधड़ की भी कैसे? मैं गलत है, मैं जो करूंगा वह और गलती को तरह चल पड़ो परमात्मा की तरफ। बढ़ाएगा। मैं नासमझ हूं। मैं जो करूंगा उससे नासमझी और 'जब मेरी चाल में हर क्षण घूघर की तरह आपकी धुन बजती उलझ जाएगी। मैं वैसे ही उलझा हूं। है, जब मर रोम-रोम में ध्यानमूर्ति, प्रेममूर्ति और गुरुमूर्ति आप तुमने कभी देखा, कोई चीज उलझी हो, सुलझाने जाओ तो बसते हैं तो अब मैं ध्यान को कहां रखं?' और उलझ जाती है। मैं वैसे ही भ्रम में हूं। अब इसमें और 357 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy