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________________ एक निष्कर्ष आ गया। एक दुविधा मिटी। दुविधा के मिटते ही पागल होने का अर्थ समझ लेना। भीतर जो लड़ते खंड थे, इकट्ठे हो जाते हैं। जब ले ही लिया, तो पागल होने का अर्थ है, तर्क से नाता तोड़ना। हिसाब-किताब एक हलकापन हो जाता है, चिंता गयी। चेहरे पर प्रसाद आ के जगत से नाता तोड़ना। रहस्य के जगत में पदार्पण। पागल जाता है। और ले सका, इतना आत्मविश्वास कर सका, इतनी होने का अर्थ है, गद्य से पद्य की तरफ यात्रा। पागल होने का श्रद्धा कर सका, तो जब वह आदमी जाता है तो उसकी चाल मैं | अर्थ है, साफ-सुथरे राजमार्गों को छोड़कर जीवन की रहस्य की देखता हूं अब और हो गयी। जैसे वृक्ष को जड़ें मिल गयी हों। पगडंडियों पर चलना। चलो तो बनती हैं। सीमेंट से पटे हुए उसके पैर जमीन में लगे होते हैं बल से। उसका सिर आकाश में | राजमार्ग नहीं हैं, जहां सारी भीड़ चल रही है। उठा होता है बल से। यही आदमी क्षणभर पहले आया था, यही | पागल होने का अर्थ है—अकेला होना। भीड़ चल रही क्षणभर बाद जा रहा है, सूरत बदल जाती है। है-हिंदुओं की, मुसलमानों की, जैनों की-जब तक तुम भीड़ लेकिन सूरत बदलती है भीतर की बदलाहट से। कोई रंगरोगन के हिस्से बने हो, तब तक तुमने अभी परमात्मा की खोज पर लगाने से सूरतें नहीं बदलती। भीतर का दीया जलता है, तो चेहरे कुछ दांव पर नहीं लगाया। जिस दिन तुम उतरते हो भीड़ को पर रोशनी आ जाती है। भीतर का दीया जलता है, तो चेहरे पर छोड़कर, राजमार्ग को छोड़कर; उतरते हो जीवन के बीहड़ आभा आ जाती है। कुछ रहस्यपूर्ण चेहरे को मंडित कर लेता है। जंगल में और जीवन बीहड़ जंगल है, खतरे हैं वहां, एक प्रभामंडल पैदा हो जाता है। वन्य-पशु हैं वहां, भटक जाने की पूरी संभावना है; पहुंचना, लोग ठीक ही कहते हैं कि सूरत बदल गयी। सूरत इसीलिए जरूरी नहीं कि पहुंचो ही, निश्चित नहीं है-जो आदमी राजमार्ग बदल गयी कि दिल बदल गया है। लोग नहीं पूछेगे दिल का को छोड़कर बीहड़ के मार्ग पर उतरता है, पागल है। तुम्हारे हाल, क्योंकि लोगों को न अपने दिल का पता है, न तुम्हारे दिल संगी-साथी कहेंगे, क्या कर रहे हो? समझ-बूझ से काम लो। का पता है। लोग दिल को तो भल ही गये हैं। दिल को तो लेकिन अगर तुम समझ-बझ को समझ पाये हो तो एक विस्मरण ही कर दिया है। दिल के विस्मरण करने के कारण ही समझ में आ गयी होगी कि समझ-बूझ से कितना ही काम लो, तो परमात्मा से टूट गये हैं, क्योंकि दिल ही जोड़ है। मैंने तुमसे हाथ कुछ आता नहीं। तो तुम कहते हो, अब तो समझ-बूझ कहा, शरीर, शरीर के भीतर मन, मन के भीतर हृदय, हृदय के | छोड़कर जीकर देखना है। अब तो मस्त होकर जीकर देखना है। भीतर आत्मा, आत्मा के भीतर परमात्मा। हृदय ठीक मध्य में अब तो दीवाना होकर जीकर देखना है। है। इस तरफ मन और शरीर, उस तरफ आत्मा और परमात्मा। धार्मिक व्यक्ति स्वेच्छा से जीवन की सुरक्षाओं को छोड़कर हृदय ठीक मध्य में है। जोड़ है। सेत है। कड़ी है। असुरक्षा को वरण करता है। तर्क, विचार, गणित की जो लोग हृदय को भूल गये हैं, वे आत्मा को तो कैसे याद साफ-सुथरी, पटी-पटायी लीकों को छोड़कर प्रेम की, प्रार्थना . करेंगे। उनके लिए आत्मा तो केवल एक कोरा शब्द है, की बेबूझ पहेलियों को सुलझाने चल पड़ता है। अर्थहीन। जो लोग हृदय को भूल गये हैं, उनके लिए परमात्मा लेकिन ऐसे ही व्यक्ति किसी दिन परमात्मा को पाने में सफल तो बिलकुल व्यर्थ है। वे कैसे परमात्मा शब्द का सार्थक उपयोग होते हैं। परमात्मा तार्किक नहीं है, प्रेमी है। और सत्य तर्क की करें, समझ में भी नहीं आ सकता। | कोई निष्पत्ति नहीं, नयी आंखों का दर्शन है। ये आंखें जो तुम्हारे तो पहली तो बात है, हृदय जगे। लेकिन मैं तुम्हारे हृदय की पास हैं, काफी नहीं। तीसरी आंख पैदा करो। और यह कान जो बात करूंगा, लोगों से आशा मत करो। वही मैं कर रहा हूं रोज तुम्हारे पास हैं, काफी नहीं। तीसरा कान पैदा करो। संन्यास सुबह-शाम। तुम्हारे हृदय की बात तुमसे कह रहा हूं कि उसी तीसरी आंख और तीसरे कान की खोज है। धीरे-धीरे तुम अपने हृदय की भाषा पहचानने लगो। और रही मेरे साथ होना है, तो पागल होकर ही हो सकते हो। और जब पागल होने की बात, मेरे हिसाब से तो तुम हो ही गये हो। और तक मैं हूं, हो लो, क्योंकि पीछे पछताने से कुछ भी न होगा। अब तुम किसलिए रुके हो, अगर नहीं हो गये हो तो जाओ। पीछे पछताये होत का, जब चिड़ियां चुग गयीं खेत। 319 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrarorg
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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