________________
जिन सूत्र भाग: 2
तक आ गये, आ गये, लौटना तो होगा नहीं; और आगे जाना नहीं चाहते, तो सारी ऊर्जा तुम्हारे भीतर उमड़ने-घुमड़ने लगेगी। उससे विक्षिप्तता पैदा हो सकती है। धर्म के जगत में या तो मृत्यु को घटने दो, या पागल हो जाओगे। इसलिए मैं कहता हूं - मरो ।
पूछा है - हे प्रभो ! उस घड़ी में क्या करना चाहिए ?' कुछ | करना नहीं चाहिए । चुपचाप सरक जाना चाहिए सागर में। जैसे ओस की बूंद, घास की पत्ती से सरककर पृथ्वी में गिर जाती है, खो जाती है, ऐसे चुपचाप सरक जाना चाहिए और गिर जाना चाहिए। गिरकर तुम पाओगे कि पहली दफे जाना तुम कौन हो। मिटकर तुम पाओगे कि हुए। शून्य होकर पाओगे कि पूर्ण उतरा इधर उधर परमात्मा आया। प्रकाश तो उसके आगमन की खबर है। जैसे सुबह सूरज निकलने के पहले एक लाली छा जाती है क्षितिज पर, प्राची सुर्ख होने लगती है— सूरज की अगवानी में यह सूरज का पहला संदेश हुआ। आता ही है सूरज अब । अब देर नहीं। पक्षी चहकने लगते हैं, हवाएं फिर गतिमान होने लगती हैं, प्रकृति जागने लगती है, प्राची लाल हो गयी, सूरज आता ही है अब ।
।
जब ध्यान के आखिरी चरण में प्रकाश बचे, तो समझना कि प्राची लाली हो उठी, लाल हो उठी, अब सूरज आता ही है। अब मंत्रमुग्ध, नाचते, अहोभाग्य मानकर गिरने को तैयार हो जाना, मिटने को तैयार हो जाना। ध्यान का अंतिम चरण मृत्यु है | इसीलिए ध्यान के बाद जो घटना घटती है, उसे हम समाधि कहते हैं। समाधि का अर्थ, महामृत्यु । जो मरने योग्य था, मर गया, जो नहीं मर सकता था, वही बचा । मर्त्य गया, अमृत बचा। मरणधर्मा से छुटकारा हुआ, अमृत से गांठ बंधी
और जिसे तुम जिंदगी कहते हो, उसमें बचाने जैसा भी क्या है! क्या है बचाने को तुम्हारे पास? तुम व्यर्थ ही बचाने की चिंता में लगे रहते हो, बचाने को कुछ भी नहीं ! हालत वैसी ही है जैसे कोई नंगा नहाता नहीं, क्योंकि कहता है कि नहाऊंगा तो कपड़े कहां सुखाऊंगा ? नंगा है, कपड़े सुखाने की चिंता के कारण नहाता नहीं ! तुम्हारे पास है क्या ? तुम्हारे हाथ बिलकुल खाली हैं। तुम्हारे प्राण खाली हैं, तुम रिक्त हो। इस रिक्तता को भी नहीं छोड़ पाते ! नहीं है कुछ, तो भी मुट्ठी नहीं खोल पाते ! अगर कुछ होता, तब तो बड़ी मुश्किल हो जाती।
316
Jain Education International 2010_03
बेदिलों की हस्ती क्या, जीते हैं न मरते हैं ख्वाब है न बेदारी, होश है न मस्ती है कुछ भी नहीं है -
ख्वाब है न बेदारी, होश है न मस्ती है। बेदिल की हस्ती क्या जीते हैं न मरते हैं
तुम जिसे जीवन कहते हो, वह जीवन नहीं है। जीवन और मृत्यु के बीच में अटके हो। तुम जिसे मृत्यु कहते हो वह मृत्यु नहीं है, तुम जिसे जीवन कहते हो वह जीवन नहीं है। मृत्यु तो केवल उन्होंने ही जानी, जो समाधि में मरे । तुम जिसे मृत्यु कहते हो, वह तो एक बीमारी का दूसरी बीमारी में बदल जाना है। वह तो वस्तुओं का परिवर्तन है। घर बदल लेना है । भीतर के सब रोग वही के वही रहते हैं, घर बदल जाता है। तुम जिसे जीवन कहते हो, अगर वही जीवन है, तो फिर परमात्मा की खोज है। परमात्मा को हम खोजते इसीलिए हैं कि जिसे हमने अब तक जीवन जाना है, वह धीरे-धीरे सिद्ध होता है कि जीवन नहीं था, भ्रांति थी । माया थी, एक सपना था।
परमात्मा की खोज का इतना ही अर्थ है कि यह जीवन, जीवन सिद्ध नहीं हुआ, अब हम महाजीवन को खोजते हैं, किसी और जीवन को खोजते हैं।
लेकिन जिन मित्र ने पूछा है, उनका प्रश्न बिलकुल ही अनिवार्य है। सभी ध्यानियों को घटता है, इसलिए चिंता मत लेना । डर लगे, तो अपराध - भाव भी मत पैदा होने देना, स्वाभाविक है। कोई भी उस घड़ी आकर ठिठक जाता है । यहीं तो गुरु की जरूरत हो जाती है। उस घड़ी अगर गुरु न हो, तो तुम लौट जाओगे । या कम से कम वहीं अटके रह जाओगे । गुरु के बिना इस घड़ी में पागल होने की पूरी संभावना है। गुरु का केवल इतना मतलब है कि वह तुम्हें आश्वस्त कर सके कि मत डरो, देखो मैं खो गया हूं, फिर भी हूं। बहुत होकर हूं। अनंत होकर हूं। शाश्वत होकर हूं। आ जाओ, ले लो छलांग । डरो मत । झिझको मत । संदेह न करो। उतर आओ। गुरु हाथ बढ़ा दे, खींच ले, मरने की हिम्मत दे दे, मिटने का बल दे दे, तो उतरते से ही तुम्हें पता चलेगा कि नाहक परेशान थे।
मैंने सुना है, एक आदमी एक अंधेरी अमावस की रात में पहाड़ पर भटक गया। अंधेरा गहन। हाथ को हाथ न सूझे । किसी तरह टटोल-टटोलकर वह रास्ता खोज रहा था कि एक खड्ड में
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org