SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न- सार संन्यास लेकर साधना करना, संन्यास न लेकर साधना करनादोनों स्थितियों में आपके मार्ग का ही अनुसरण है। फिर संन्यास से विशेष फर्क क्या ? आपने कहा आंख आक्रामक होती है। लेकिन आपकी आंखों में तो प्रेम का सागर दिखता है, और जी करता है उन्हें निहारता ही रहूं। क्या आंख को कान - जैसा ग्राहक बनाया जा सकता है ? क्या स्वाद को भी परमात्म-अनुभूति का साधन बनाया जा सकता है ? भगवान का प्रवचन सुनते हुए उनकी आवाज से हृदय व कर्ण-तंतुओं पर एक अजीब तरह का कंपन। तब से साधारण ध्वनियों से भी अजीब कंपन व आनंद की लहर पैदा होना। क्या बुद्ध-पुरुषों के स्वर में विशेष कुछ ? साथ ही भगवान की उपस्थिति में एक आनंददायक गंध का मिलना। वही गंध कभी ध्यान में व आश्रम में अन्यत्र भी मिलना । क्या काल-विशेष की गंध - विशेष भी होती है ? Jain Education International 2010_03 आप कहते, संन्यास सत्य का बोध है। क्या संन्यास के लिए गैरिक वस्त्र व माला अनिवार्य ? क्या कोई बिना दीक्षा लिये आपके बताए मार्ग पर नहीं चल सकता ? For Private & Personal Use Only wwwww.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy