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________________ जिन सूत्र भागः2 EPHONETER तुम अगर जैन-मुनि के सामने वात्स्यायन का काम-सूत्र | नींद से झकझोरा हो, ऐसा घबड़ा गया। उसने कहा, क्या कहा, खोलकर रख दो, वह आंख बंद कर लेगा, या किताब फेंक | अश्लील! तो फिर मुझे फिर से चलकर दिखाना होगा, क्योंकि देगा। घबड़ा जाएगा। | मुझे कोई मूर्ति अश्लील दिखी नहीं। अब तुम मुझे चलकर बता तुम जैन-मुनि को खजुराहो नहीं ले जा सकते। खजुराहो के दो, कौन-कौन सी मूर्तियां अश्लील हैं, और कौन-कौन सी मंदिर में वह प्रवेश न करेगा। वह दूर-दूर बचेगा, भागेगा। मूर्तियां हैं जो विकृत हैं, और रुग्ण मन की प्रतीक हैं। क्योंकि मुझे अभी जो डर उसके भीतर है, वह डर बाहर प्रक्षेपित होगा। अभी | तो पता ही नहीं, मैं तो इसी भाव से भरा जा रहा था कि अदभुत खजुराहो की मूर्तियां भय का कारण बन जाएंगी। है, तुमने याद दिला दी, तो मैं चलूं फिर से। मेरे एक मित्र विंध्य-प्रदेश के शिक्षा मंत्री थे। एक अमरीकी वह मेरे मित्र मझे कह रहे थे कि मैं ऐसा गिरा, जैसे किसी ने कवि खजुराहो देखने आया। वह कभी पंडित जवाहरलाल नेहरू आकाश से पटक दिया हो। यह एक आदमी है जिसे कुछ का परिचित था, मित्र था, तो उन्होंने विशेष खबर की कि कोई अश्लील न दिखायी पड़ा। अश्लील हमें भीतर की अश्लीलता योग्य व्यक्ति जाकर साथ खजराहो दिखा दे। वह जो मेरे मित्र | से दिखायी पड़ता है। जो हमारे भीतर है, वही हमें बाहर दिखायी शिक्षा मंत्री थे, वही विंध्य-प्रदेश के मंत्रिमंडल में सबसे ज्यादा | पड़ता है। सुशिक्षित व्यक्ति थे तो उन्हीं को भेजा गया। तो अगर कोई गुरु उत्सुकता ले, तुम्हारे घावों को कुरेदने लगे, वे गये, लेकिन वे बड़े डरे हुए थे। भयभीत थे कि पता नहीं यह निंदा करे, तुम्हें पापी ठहराये, तुम्हारा न्यायाधीश बने, तो आदमी क्या सोचकर जाएगा? क्या सोचेगा-खजराहो की समझना गुरु नहीं। अभी गंगा बही नहीं। अभी गंगा का नग्न, कामुक भाव-भंगिमाएं, काम से लिप्त युगल जोड़े, | अवतरण नहीं हुआ इस व्यक्ति पर। इसमें डुबकी लेने से कुछ संभोगरत मूर्तियां! क्या सोचेगा! तो मन में थोड़े अपराधी थे। भी न होगा। इसमें डुबकी लेने से तुम और गंदे हो जाओगे। यह उसे घुमाया पूरे मंदिर में जो विशेष मंदिर है, पूरा दिखाया। कोई नाला है-शहर के बीच से बहता। यह कोई गंगा नहीं है। बाहर आकर कहा कि क्षमा करें, इससे आप ऐसा मत सोचें कि यह सब नालियों का कूड़ा-कर्कट और गंदगी को लेकर बह रहा यह कोई भारत की मौलिक संस्कृति है। यह भारत की मूलधारा | है। यह तुम्हें पवित्र नहीं कर सकता। नहीं है। यह तो तांत्रिकों के प्रभाव में एक तरह की विकृति है। ये | महावीर ने जो कहा है : गुरु के समक्ष सब कुछ जो प्रगट कर अश्लील मूर्तियां हमारे सभी मंदिरों की प्रतिनिधि नहीं हैं। इसको दे, वह सुविशुद्ध होकर सुखी हो जाता है; इस सूत्र को जैनों ने आप खयाल रखना। आप ऐसा मत सोच लेना कि हमारे सभी बहुत कम विचारा है, बहुत कम इसकी परिभाषा की है, क्योंकि मंदिर ऐसे हैं। करोड़ मंदिर हैं, उसमें एक मंदिर ऐसा है। इसको यह सूत्र तो सारे कर्म के सिद्धांत को दो कौड़ी का कर देता है। खयाल में रखना, अनुपात को खयाल में रखना। ये अश्लील | यह सूत्र तो बड़ा क्रांतिकारी है। यह तो जड़मूल से कर्म के मूर्तियां भारत की आत्मा को प्रगट नहीं करती। ये सिर्फ भारत में सिद्धांत को उखाड़ फेंकता है। महावीर यह कह रहे हैं कि अगर कभी एक विकृति की धारा चली थी, उसके शेष चिह्न हैं। तुमने सरल मन से स्वीकार कर लिया, तो मुक्ति हो गयी। शल्य वह अमरीकी कवि तो बहुत चौंका। वह तो बड़े भाव से भरा जाता रहा। कांटा चुभेगा नहीं फिर। बात समाप्त हो गयी। इसी था। उसके सामने तो भारत की महिमा पहली दफा प्रगट हुई को तो संतों ने कहा है कि गुरु की कृपा से क्षणभर में हो सकता थी। उसने सुना ही सुना था अब तक कि भारत मनुष्य की | है। लेकिन गुरु की कृपा उसी पर हो सकती है, जो अपने हृदय अंतरात्मा में बड़े गहरे उतरा है, आज उसने देखा भी था। प्रत्यक्ष को पूरा खोल दे। पात्र खुला हो, तो गुरु की कृपा तो होती ही प्रमाण थे। उसने सुना ही सुना था अब तक कि तंत्र ने मनुष्य की रहती है, वह भर जाए। लेकिन कोई खोले अपने पात्र को।। अंतर्तम-वासना के छोर छुए हैं। आखिरी केंद्र को छुआ है, जैसे एक कांटा चुभने पर सारे शरीर में वेदना या पीड़ा होती रूपांतरण की विधियां खोजी हैं, आज मूर्तियों में इसे सुस्पष्ट है। कांटा चुभता तो एक जगह है, लेकिन वेदना एक जगह | लिखे देखा था। वह तो भाव-विभोर था। वह तो जैसे किसी ने सीमित नहीं रहती। कांटा चुभता तो पैर में है, लेकिन सिर तक 248 | Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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