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जिन सूत्र भाग2
जीसस ने कहा है, जो छोटे बच्चों की भांति होंगे सरल, वे ही निश्चित ही मैं तर्क की बात भी करता हूं, क्योंकि कुछ हैं जो मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। निश्चित ही संसार के उसी भांति आ सकते हैं। लेकिन तर्क वैसे ही है जैसे मछलीमार राज्य में छोटे बच्चों की कहां जगह है! कहां उपाय है! इसीलिए बंसी में आटा लगाता है। बस। आटा लटका देता है कांटे में, तो हम छोटे बच्चों को जल्दी उनके बचपन से छुटकारा दिलाने | कोई मछलियों को भोजन नहीं करवा रहा है आटे से। आटा तो लगते हैं। कहते हैं, बड़े होओ, बड़ों-जैसा व्यवहार करो, अब | केवल प्रलोभन है, क्योंकि मछलियां आटे को ही देखकर पास तुम्हारी उम्र हो गयी, अब ये बच्चों जैसी बात मत करो। अब आयेंगी। मैं तर्क की निश्चित बात करता हूं, पर आटा है। सरलता से काम न चलेगा। अब तिरछे बनो। अब जीवन का सोच-समझकर गले में लेना। क्योंकि जैसे ही गले में गया, तुम तर्क सीखो। अब लूट-खसोट में कुशल बनो। अब सीधे, पाओगे यहां कुछ बात और है। तर्क तो ऊपर-ऊपर है। भीतर
से न चलेगा। यह बद्धपन काम न देगा। तो श्रद्धा है। तर्क से बलाता है, क्योंकि यह यग तर्क का है। यहां जीसस ने कहा है, जो इस संसार में प्रथम हैं, वे मेरे प्रभु के राज्य | श्रद्धा की कोई सुनने को राजी नहीं है। गणित से तुम्हें बुलाता हूं, में अंतिम होंगे। और जो इस संसार में अंतिम हैं, वे मेरे प्रभु के क्योंकि गणित की भाषा ही तुम समझते हो। तुम्हारी भाषा में ही राज्य में प्रथम हो जाएंगे।
बुलाना होगा। जब मेरे पास आने लगोगे तो अपनी भाषा भी गणित बिलकुल उलटा हो जाता है। यहां जो आगे खड़े हैं, वे समझा लूंगा, लेकिन वह तो नंबर दो की बात है। पहले तो तुम्हें एकदम पंक्ति में आखिर में पड़ जाते हैं। क्योंकि यात्रा ही अलग | बुलाना तुम्हारी भाषा में होगा। तुम्हें बुलाना हो तो तुम्हारा नाम है। यात्रा तर्क की नहीं, प्रेम की है। यात्रा संदेह की नहीं, श्रद्धा ही लेकर बुलाना होगा। फिर जब मेरे पास आओगे, तब तुम्हारा की है। जो सरलचित्त हैं, स्वभावतः श्रद्धा कर लेते हैं। उनकी नाम बदल दूंगा। लेकिन पहले तो पास! एक बार पास आ श्रद्धा में एक नैसर्गिक सुगंध होती है। संदेहशील श्रद्धा करता भी | जाओ, फिर धीरे-धीरे तुम्हें पिघला लूंगा। है, तो भी संदेह की दुर्गध कहीं न कहीं किसी कोने में छिपी होती तो जिन्होंने पूछा है, ठीक ही पूछा, ठीक ही कहा है कि आपके है। संदेहशील के मंदिर में भी संसार की गंध आती रहती है। आसपास बुद्धिमान भरे दिखायी पड़ते हैं। यह सच है। वे मेरे
भी. वासना बनी रहती है। संदेहशील | तर्क को सनकर मेरे पास आ गये। अब बडी दविधा में पड़े हैं। परमात्मा से हाथ भी जोड़ता है, तो भी तैयार रहता है कि जरा ही जा भी नहीं सकते, क्योंकि मेरी बात तर्कपूर्ण मालूम पड़ती है। गड़बड़ हो तो हाथ अलग कर लें, खींच लें। पूरा नहीं होता बिलकुल डूब भी नहीं सकते, क्योंकि तर्क के पीछे छिपा हुआ प्रार्थना में। हो नहीं सकता। संदेह कभी पूरा नहीं होने देता। | अतर्य है। तर्क के पीछे छिपी हुई श्रद्धा का स्वर भी उन्हें सुनायी संदेह कहता है, पता नहीं, जो कर रहा हूं वह ठीक है या नहीं! पड़ने लगा। आते भी नहीं हैं, जाते भी नहीं। अब अटके रह गये श्रद्धा समग्ररूपेण तुम्हें डुबा लेती है। इसलिए कहता हूं बुद्धि भी हैं। अब जाएं तो जाएं कहां! क्योंकि जिस तर्क ने उन्हें प्रभावित बाधा है।
| किया है. अब उस तर्क को छोडना बहत मश्किल है। और अब पूछा है, 'और मैं देखता हूं कि आपके इर्द-गिर्द बुद्धिमान उन्हें यह भी दिखायी पड़ने लगा है कि तर्क तो केवल जाल था। व्यक्ति ही भरे हैं।'
तर्क के आगे छलांग है अतयं की। तर्क के आगे छलांग है यह भी सच है। लेकिन, जब तक वे बुद्धि न छोड़ेंगे, तब तक | श्रद्धा की। उनकी बुद्धि को समझाया, बझाया, राजी कर लिया, मेरे इर्द-गिर्द भरे रहें, मुझसे न भरेंगे। उनकी बुद्धि ही बाधा हो अब उन्हें दिखायी पड़ता है-यह तो निर्बुद्धि में उतरने की बात जाएगी। उनकी बद्धि यहां तक ले आयी होगी। सोचा-विचारा है। अब वे ठिठके खड़े हैं-अब वे ठीक किनारे पर खड़े हैं खाई होगा, मेरी बात तर्कपूर्ण मालूम पड़ी होगा, मेरी बात में उन्हें | के। लेकिन किनारे पर खड़े रहें जन्मों तक, तो भी कुछ न होगा। गणित और तर्क का बल मालूम पड़ा होगा, मेरी बात में प्रमाण कूदेंगे खाई में, मिटेंगे, तो ही कुछ होगा। मरेंगे तो ही कुछ का दर्शन हुआ होगा, आ गये।
होगा। डरेंगे, तो कुछ भी न होगा। लेकिन तर्क!
बुद्धि को धन्यवाद दो। बड़ी कृपा उसकी, यहां तक ले आयी।
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