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________________ समता ही सामायिक महावीर ने कहा, मौन हो जाओ; तो तुम्हें अपने संगीत का ताजा कर जाता है। पहली दफा अनुभव हो। चुप हो जाओ, उस चुप्पी में ही, उस | ध्यान में दर्शन है। मौन में दर्शन है। चुप्पी में साक्षात्कार है। अनाहत का नाद शुरू होगा। वह ध्वनिहीन ध्वनि, वह स्वरहीन | देख सकता हूं जो आंखों से वो काफी है 'मज़ाज़' स्वर तुम्हारे भीतर से उठने लगेगा। तुम्हारी अतल गहराइयों से, अहले-इर्फी की नवाजिश मुझे मंजूर नहीं तुम्हारी चेतना की परम गहराइयों से तुम्हारे पास तक पहुंचने ठीक कहा है मज़ाज़ ने। दार्शनिकों की सेवा करने की मेरी उसकी अनिवार्य शर्त है। और मौन का इच्छा नहीं। दार्शनिकों का सत्संग करने की मेरी कोई इच्छा नहीं। अर्थ है ओंठ से मौन, कंठ से मौन, भीतर विचार से देख सकता है जो आंखों से वो काफी है 'मज़ाज़' मौन-धीरे-धीरे सब तलों पर, सब पर्तों पर मौन। तब तुम मुनि जो मैं अपनी आंख से देख सकता हूं, वह पर्याप्त है। किसी हुए। मुनि का कोई संबंध बाह्य-आचरण से नहीं है। मुनि का और से क्या पूछना है! संबंध उस अंतसदशा से है, मौन की दशा से है। और जो मौन किसी और से क्या पूछने जाना है। आंख तम्हारे पास है. को उपलब्ध हुआ, वही बोलने का हकदार है। जो अभी मौन को | लेकिन तुम्हारी आंख इतने शब्दों से भरी है, इतने विचारों से ढंकी ही नहीं जाना, वह तो बाहर के ही कचरे को भीतर लेता है और है, जैसे दर्पण पर धूल जम गयी हो, दर्पण का पता ही न चलता बाहर फेंक देता है। उसका बोलना तो वमन जैसा है। जो मौन हो। झाड़ दो धूल, तुम्हारा दर्पण फिर झलकायेगा। झाड़ दो को उपलब्ध हुआ, उसके पास कुछ देने को है। उसके पास कुछ आंख से विचारों की धूल, झाड़ दो मन से विचारों की धूल, तुम भरा है, जो बहना चाहता है, बंटना चाहता है। उसके पास कुछ | प्रतिबिंब दोगे परमात्मा का। तुम्हारा दर्पण खोया नहीं है, सिर्फ आनंद की संपदा है, जो वह तुम्हारी झोली में डाल दे सकता है। ढंक गया है धूल में। और धूल कितना ही दर्पण को ढांक ले, महावीर बारह वर्ष मौन रहे। जीसस जब भी बोलते, तो बोलने नष्ट थोड़े ही कर पाती है। इसलिए जब तक पोंछा नहीं है तभी के बाद कुछ दिनों के लिए पहाड़ पर चले जाते। वहां चुप हो | तक परेशानी है। पोंछते ही तुम चकित हो जाओगे। जाते। जब भी कोई महत्वपूर्ण बात बोलते तब तत्क्षण वे पहाड़ जन्मों-जन्मों के अंधकार को क्षण में पोंछा जा सकता है। और चले जाते। अपने मित्र, संग-साथियों को भी छोड़ देते, कहते, जन्मों-जन्मों की जमी धूल को क्षण में बुहारा जा सकता है। कुछ अभी कोई मत आना। अभी मुझे जाने दो अकेले में। उस अकेले ऐसा नहीं है कि तुम्हें जनम-जनम तक सफाई करनी होगी। में जीसस क्या करते? मुहम्मद पर जब पहली दफा कुरान की सफाई तो एक क्षण में भी हो सकती है। सिर्फ त्वरा चाहिए। आयत-पहली आयत उतरी, तो वे चालीस दिन से मौन थे। प्रवृत्ति चाहिए अंतर्यात्रा की। उसी मौन में पहली दफे कुरान उतरा। _ 'ध्यान में लीन साधु सब दोषों का परित्याग करता है। जो भी मौन में उतरा है वही शास्त्र है। मौन में जो नहीं उतरा, | इसलिए ध्यान ही समस्त अतिचारों का, दोषों का प्रतिक्रमण है।' वह शास्त्र नहीं। किताब होगी। जो मौन में कहा गया है, मौन से महावीर कहते हैं, और सब ठीक है, लेकिन वास्तति कहा गया है, वही उपदेश है। जो शब्द मौन में डबे हए नहीं ध्यान में ही घटती है। समस्त अतिचारों का, सब दोषों का आये, मौन में पगे हुए नहीं आये, वे सब शब्द रुग्ण हैं। स्वस्थ परित्याग ध्यान में ही होता है। क्यों ध्यान में परित्याग होता है ? तो वे ही शब्द हैं जो मौन में पगे हुए आते हैं। और अगर तुम महावीर नहीं कहते हैं, करुणा साधो। महावीर नहीं कहते, दया ध्यान से सुनोगे, तो तुम तत्क्षण पहचान लोगे कि यह शब्द मौन साधो। महावीर नहीं कहते, दान साधो, त्याग साधो। महावीर में पगा आया है, या नहीं आया है ? तुम्हारा हृदय तत्क्षण गवाही कहते हैं, ध्यान साधो। क्यों? क्योंकि दान करोगे, तो पहले एक दे सकेगा। क्योंकि जितना शून्य लेकर शब्द आता है, अगर तुम कर्ता का भाव था कि मेरे पास धन है, दान करोगे, दूसरे कर्ता का शांतिपूर्वक सुनो, तो शब्द चाहे तुम भूल भी जाओ, शून्य सदा | भाव पैदा हो जाएगा कि मेरे पास त्याग है, मैं दानी हूं। क्रोध के लिए तुम्हारा हो जाता है। शब्द चाहे तुम्हारे स्मृति में रहे या न किया था, तो एक अहंकार था, करुणा करोगे तो दूसरा अहंकार रहे, शून्य तुम्हारे प्राणों पर फैल जाता है। तुम्हें नया कर जाता है, | हो जाएगा। दूसरा अहंकार स्वर्णिम है। पहला अहंकार सस्ता 215 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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