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________________ 12 जिन सूत्र भाग: 2 होगा, सुना होगा, शास्त्र में पढ़ा होगा, लेकिन अभी तुम्हारे जीवन का अनुभव नहीं बना। शास्त्र से उधार लिया होगा। सभी शास्त्र कहते हैं क्रोध बुरा है। सुनते-सुनते तुम भी मानने लगे हो कि क्रोध बुरा है। लेकिन, तुम्हारे प्राणों ने अभी इसकी गवाही नहीं दी। और जब तक तुम गवाही न बनो, तब तक जीवन में कोई क्रांति नहीं होती। उधार ज्ञान से क्रांति नहीं होती। ज्ञान तुम्हारा होना चाहिए। दूसरे जाग गये इससे कुछ न होगा, जाग तुम्हारी होनी चाहिए। सुन लो उन्हें, उनकी पुकार से जागो, लेकिन जैसे ही आंख खुलेगी तत्क्षण तुम देख लोगे कि सपना सपना है, सत्य सत्य है। फिर कोई सपने को थोड़े ही चुनता है! 'जो श्रेयस्कर हो उसका आचरण करना चाहिए।' महावीर ने कहा है, मैं कोई आदेश नहीं देता, मैं जो कहता हूं वह सिर्फ उपदेश है, आदेश नहीं। क्योंकि मैं कौन हूं, जो तुमसे कहूं ऐसा करो। ऐसा करना कहते ही हिंसा हो जाएगी। मैं तुम्हें दबाने लगा। मैं तुम्हें ढालने लगा। महावीर कहते हैं, तुम परम स्वातंत्र्य हो। तुम्हारी स्वतंत्रता से ही तुम्हारा अनुशासन निकले। और तुम्हारे अनुभव से ही तुम्हारा आचरण बने । तो ही सार्थक है। अन्यथा जन्मों-जन्मों तक धोखा चलता रहता है। जैसे ही समझ की जरा सी झलक आती है कोई दम में हयाते - नौ का फिर परचम उठाता हूं बईमां-ए-हमीयत जान की बाजी लगाता हूं जाऊंगा, मैं जाऊंगा, मैं जाता हूं, मैं जाता हूं मुझे जाना है इक दिन तेरी बज़्मे-नाज से आखिर जैसे ही समझ आनी शुरू होती है, यात्रा बदली। मैं जाऊंगा, मैं जाऊंगा, मैं जाता हूं, मैं जाता हूं; मुझे जाना ही है इक दिन तेरी बमे-नाज़ से आखिर । एक दिन जाना ही है, तो रुकने का अर्थ क्या? मौत आनी ही है, तो जीवन को पकड़ने का सार क्या? जिस जीवन में मौत घटनी ही है, वह जीवन मौत की ही तैयारी है। जिस जीवन में मौत आती ही है, वह जीवन मरा हुआ है, वह वास्तविक जीवन नहीं। जो मुझसे छीन ही लिया जाना है, उसे रोकने की चेष्टा करने से सार क्या है? जो मुझसे छिन ही जाएगा, उस साम्राज्य को बनाने का पागलपन बस पागलपन ही है। मैं जाऊंगा, मैं जाऊंगा, मैं जाता हूं, मैं जाता हूं; मुझे जाना एक दिन तेरी बज्मे-नाज़ से आखिर । जैसे ही बोध जगना शुरू होता है, जीवन में क्रांति आनी शुरू होती है। है Jain Education International 2010_03 संन्यास बोध की छाया है। संन्यास समझ की प्रगाढ़ता है। संन्यास सम्यक - बोध, केवल सम्यक - बोध है। शुद्ध, सार बोध है। चेष्टा नहीं है। अगर तुमने चेष्टा से कुछ साधा, तो तुम जबर्दस्ती करोगे। तुमने चेष्टा से कुछ साधा, तो तुम खंड-खंड हो जाओगे। तुमने चेष्टा से कुछ साधा, तो तुम दो टुकड़ों में टूट जाओगे। एक टुकड़ा जिस पर तुम जबर्दस्ती कर रहे हो और एक टुकड़ा जो जबर्दस्ती कर रहा है। तुम्हारे भीतर बड़ी आत्म-हिंसा शुरू हो जाएगी। दूसरा सूत्र - ' और फिर ज्ञान के आदेश द्वारा सम्यक दर्शन - मूलक तप, नियम, संयम में स्थित होकर कर्म-मल से विशुद्ध जीवनपर्यंत निष्कंप (स्थिर चित्त) होकर विहार करता है।' और जिसने जान लिया सत्य क्या है, उसके जीवन में एक नयी ही ऊर्जा का आविर्भाव होता है। निष्कंप हो जाता है चित्त । चित्त कंपता तभी तक है, जब तक हमें सत्य और असत्य का बोध नहीं। तब तक डावांडोल होता है, यह करूं या वह करूं? यहां जाऊं, या वहां जाऊं ? मंदिर कि वेश्यालय ? ऐसा डोलता है । धन कि ध्यान ? ऐसा डोलता है । शरीर कि आत्मा ? ऐसा डोलता है। जब तक तुम्हारे भीतर सत्य और असत्य की ठीक-ठीक प्रतीति नहीं है तब तक तुम्हें असत्य में सत्य की भ्रांति होती रहती है। सत्य में असत्य की भ्रांति होती रहती है। मन डावांडोल रहता है। इस डावांडोल चित्त के कारण ही तो बेचैनी है, अशांति है। महावीर कहते हैं णाणाऽऽणत्ती पुणो, दंसणतवनियमसंयमे ठिच्चा । विहरइ विसुज्झमाणी, जावज्जीवं पि निवकंपो ।। जिसने सत्य की प्रतीति की, वह निष्कंप हो जाता है। जिसको कृष्ण ने गीता में स्थितप्रज्ञ कहा है । ठहर जाती है उसकी प्रज्ञा । ऐसी ठहर जाती है, जैसे बंद घर में दिया जलता हो, जहां हवा का कोई झोंका न आता हो। निष्कंप हो जाती है वह लौ । ऐसी भीतर चेतना की लौ निष्कंप हो जाती है। कुछ चुनने को न रहा - चुनाव हो गया, सत्य को जानते ही चुनाव हो गया। को जानते ही निर्णय हो गया। जीवन की दिशा उपलब्ध हो गयी; अर्थ, अभिप्राय आ गया। अब कुछ चुनाव नहीं करना है। अब व्यक्ति सत्य की तरफ ऐसे ही बहने लगता है जैसे नदियां सागर की तरफ बह रही हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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