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________________ दुख की स्वीकृति : महासख की नींव Mindsamananews को भोगने के योग्य बने। अगला क्षण और भी वासंती, और भी भी बीच में विचार मत लाओ कि यह रुकेगी? मधुमय होकर आयेगा। अगला क्षण और गहरा नृत्य लायेगा। झेन कहानी है : अगला क्षण और भी बरसायेगा अमृत तुम पर। लेकिन यह एक मंदिर के द्वार पर दो भिक्षुओं में विवाद हो रहा है कि मंदिर तुम्हारी चिंता का कारण नहीं है, यह सहज ही होता है। यह के ऊपर लगी पताका को कौन हिला रहा है? पताका हिल रही नियम की बात कह रहा हूं, तुमसे सोचने को नहीं कह रहा हूं। है। एक भिक्षु कहता है, हवा हिला रही है। दूसरा भिक्षु कहता यह तो एक शाश्वत नियम है कि जो तुमने इस क्षण में भोगा, | है, पताका स्वयं हिल रही है। गुरु मंदिर के बाहर आता है, वह उसको तुम्हारी अगले क्षण में भोगने की क्षमता बढ़ जाती है। | कहता है : नासमझो, न हवा हिला रही, न पताका हिल रही, अभी तुमने क्रोध किया, तो अगले क्षण तुम्हारी क्रोध की क्षमता | तुम्हारा मन! तुम्हारा मन हिल रहा है। इसलिए तुम्हें हिलती बढ़ जाएगी। पताका दिखायी पड़ रही है, हिलती पताका में तुम्हें रस आ गया तुमने कभी खयाल किया? सुबह से उठकर अगर क्रोध हो है। तुम चिंता-विचार में पड़ गये हो। मन को ठहरा लो, फिर जाए तो लोग कहते हैं दिनभर क्रोध हो जाता है। इसलिए पराने हवा भी चलती रहे. तो भी पताका न हिलेगी। पताका हिलती भी दिनों में लोग सुबह राम का नाम लेकर उठते थे। उस गणित में | रहे, तो भी न हिलेगी। मन थिर हुआ, तो सब थिर हुआ। थोड़ा मनोविज्ञान है। क्योंकि जो हम सुबह-सुबह करते हैं, वह | ठीक कहा उसने। हमने नींव रख दी दिनभर के लिए। अगर सुबह-सुबह राम का मैं एक अमरीकी लेखक का जीवन पढ़ रहा था। उसने लिखा स्मरण किया, तो इस स्मरण में स्नान हो जाएगा। उस स्मरण के है कि मैं कैलिफोर्निया की सुंदर सुरम्य घाटी में पैदा हुआ। एक साथ यात्रा शुरू हुई, तो अगला क्षण उसी से तो आने को है। मछुवे के घर पैदा हुआ। सुंदर झीलों में, नदियों में, वादियों में उसी की तो शृंखला बनेगी। जो राम का नाम लेते हुए उठा, | मछलियां पकड़ते बचपन बीता। अगर किसी ने उसे गाली दी, तो एकदम से गाली उसके भीतर से उसने लिखा है कि जब मैं मछलियां पकड़ने के लिए बंसी बांधे न उठेगी-राम का नाम आड़े पड़ेगा। जो गाली देते ही उठा, हुए किसी सुरम्य झील के पास बैठा होता था, ऊपर से हवाई उसको तो कोई गाली न भी दे, तो भी गाली सुनायी पड़ जाएगी। जहाज गुजरते थे, तो मेरे मन में एक ही कामना उठती थी कि कब वह गाली से भरा है। वह तलाश ही कर रहा है, कहीं कोई मिल ऐसा समय आयेगा कि मैं भी पायलट बनूं! आकाश में उडूं! जाए कारण, तो वह टूट पड़े, बरस पड़े। वह बहाना ही खोज कैसा आनंद न होगा उस आकाश में! मैं कहां यहां बैठा रहा है। मछलियां मारने में समय गंवा रहा हूं। • इसको ही अगर तुम ठीक से समझो, तो कर्म का, संस्कार का संयोग की बात, वह आदमी बाद में पायलट बना। तब उसने पूरा सिद्धांत है। तुमने जो कल किया था, वह तुम्हारे आज को देखा कि मैं बड़ा हैरान हुआ! अब मैं पायलट होकर उसी घाटी प्रभावित करेगा। अब कल तो गया, अब कल को तो बदलने | के ऊपर से हवाई जहाज लेकर उड़ता हूं, नीचे झांककर देखता हूं, का कोई उपाय नहीं, इतनी कृपा करो कि आज को बदल लो, | मेरे मन में खयाल उठता है, हे भगवान! कब रिटायर होऊंगा कि क्योंकि आज फिर कल सतायेगा। जो तुमने पिछले जन्म में फिर उन्हीं सुरम्य घाटियों में बैलूं, मछली मारूं, विश्राम करूं! किया था, वह तुम अभी भोग रहे हो। और अभी तुम अगले तब वह चौंका कि यह मैं कर क्या रहा हूं, क्योंकि मैं जब घाटी में जन्म का विचार कर रहे हो, और यह जन्म भी हाथ से जा रहा था तब मुझे घाटी का सौंदर्य न दिखायी पड़ा। तब मुझे हवाई है। यह खाली-खाली गया हुआ जन्म, फिर अंधेरे से भरे हुए जहाज में बैठे हुए पायलट की महिमा मालूम पड़ी। अब मैं रास्ते पर तुम्हें भटका देगा। पायलट हूं, तो विश्राम की आकांक्षा कर रहा हूं। और फिर सोच पूछते हो कि समता का दीया सदा कैसे जलता रहे? बस, | रहा हूं उन्हीं घाटियों की जिनमें मैंने कभी सुख न पाया था। अब क्षणभर तुम उसे भोगो। जब समता घनी हो, गुनगुनाओ, नाचो, | नीचे फैली हरी घाटी बड़ी सुंदर मालूम पड़ती है! ताल-तलैये, डूबो उसमें। जब समता घनी हो, पीओ, फिर देर न करो। इतना सरोवर स्फटिक-मणि जैसे चमकते हैं। उनके किनारे बैठने की Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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