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आपरेशन में ही मरा, लेकिन फिर भी उसकी कोई भावदशा न थी। द्रव्य-हिंसा तो हुई, आदमी मरा, लेकिन कोई अभिप्राय न था। इसलिए पाप का कोई कारण नहीं है।
‘किसी प्राणी का घात हो जाने पर जैसे संयत या असंयत | व्यक्ति को द्रव्य तथा भाव दोनों प्रकार की हिंसा का दोष लगता है, वैसे ही चित्तशुद्धि से युक्त, समितिपरायण साधु द्वारा मनःपूर्वक किसी का घात न होने के कारण उसके द्रव्य तथा भाव, दोनों प्रकारों की अहिंसा होती है।'
'यत्नाचार धर्म की जननी है । यत्नाचारिता ही धर्म की पालनहार है। यत्नाचारिता धर्म को बढ़ाती है । यत्नाचारिता एकांत सुखावह है।'
जया उ धम्मजणणी, जयणा धम्मस्स पालणी चेव ।
यत्नपूर्वक जीना धर्म की जन्मदात्री है। यत्नपूर्वक जीना धर्म की पालनकर्ता है, धारणकर्ता है । यत्नाचारिता धर्म को बढ़ाती है । यत्नपूर्वक – राह चलते, उठते-बैठते सब तरफ होश रखना, | तुम्हारे कारण किसी को दुख न पहुंचे। फिर भी किसी को दुख पहुंचे, वह उसका अपना भीतरी कारण होगा, तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं।
दुखतो महावीर के कारण तक लोगों को पहुंच जाता है। वह तो नग्न खड़े हैं। किसी को दुख हो जाता है कि यह आदमी नंगा क्यों खड़ा है? यह जिम्मेवारी उस आदमी की है। महावीर उसके लिए नग्न नहीं खड़े हैं। यह उसकी ही भावदशा है।
एक मित्र ने प्रश्न किया है कि वह यहां संन्यास लेने आये थे। लेकिन उनका भरोसा, विश्वास 'स्वामी नारायण संप्रदाय' में है। तो उन्होंने पूछा है कि 'स्वामी नारायण संप्रदाय' में संन्यास लूं या यहां ? क्योंकि वहां तो ब्रह्मचर्य पर बड़ा जोर है, सख्ती है। और यहां ऐसा लगता है कि आपका ब्रह्मचर्य पर कोई जोर नहीं है । और आपके संन्यासी शिथिल मालूम होते हैं । उनको | दुविधा पैदा हुई है। पूछा है कि बड़े द्वंद्व में पड़ गया हूं । द्वंद्व में पड़ने की कोई जरूरत नहीं । तुम संन्यास लेना भी चाहो, तो मैं न दूंगा । इसलिए द्वंद्व छोड़ो। तुम रुग्ण । दूसरे संन्यासी क्या कर रहे हैं, इससे तुम्हारा प्रयोजन ही नहीं है। कौन शिथिल है, कौन शिथिल नहीं है, तुमसे किसी ने पूछा नहीं है। तुम अपने लिए ही निर्णय लो। जिनने पूछा है, इस व्यक्ति ने निश्चित 'स्वामी नारायण संप्रदाय' के प्रभाव में कामवासना का दमन
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प्रेम का आखिरी विस्तार : अहिंसा
किया होगा । दबाया होगा जबर्दस्ती । जो व्यक्ति कामवासना को दबा लेता है, उसे सब तरफ कामवासना दिखायी पड़ने लगती है । जिस व्यक्ति ने कामवासना को दबाया नहीं, समझा है, उसे फिर कहीं कामवासना नहीं दिखायी पड़ती। जिसे तुमने दबाया, वही तुम्हारी आंख से उभर उभरकर तुम्हें सब जगह दिखायी पड़ेगी। दमन मुक्ति नहीं है। दमन बड़ा गहरा बंधन है। अब सोचो, अगर यह 'स्वामी नारायण संप्रदाय' को माननेवाले सज्जन महावीर को मिल जाएं, तो यह तो घबड़ा ही जाएंगे कि यह आदमी नग्न खड़ा है! यह तो बड़ी अनैतिक बात है, बड़ी अश्लील बात है। अशोभन है। अशिष्ट है। ऐसा ही हुआ था। महावीर को गांवों से खदेड़ा गया, मारा गया। क्योंकि उनका नग्न होना दूसरों को पीड़ादायी हो गया। महावीर किसी को पीड़ा नहीं देना चाहते। वह वस्तुतः नग्न इसलिए हुए कि वे नैसर्गिक होना चाहते हैं । स्वाभाविक होना चाहते हैं। नग्न आदमी पैदा हुआ है, नग्न विदा होगा, तो बीच में वस्त्र ढांकने का क्या प्रयोजन! इसलिए महावीर नग्न हुए । महावीर की नग्नता वैसी निर्दोष है, जैसे छोटे बालक की। लेकिन देखनेवालों को जो वही दिखायी पड़ा तो उनकी आंखों में भरा था। उन्होंने तो देखा कि यह बात कुछ गड़बड़ है। यह आदमी तो समाज को तुड़वा देगा । शिथिल करवा देगा। जिस व्यक्ति के आधार पर समाज सदा के लिए सुदृढ़ स्तंभ रख सकता था, वह अनैतिक मालूम पड़ा लोगों को। उसे हटाया लोगों ने अपने गांवों से ।
खयाल रखो, जो तुम्हारे भीतर है, वही दिखायी पड़ता है। यह भी हो सकता है तुम किसी को दुख न देना चाहो, लेकिन फिर भी किसी को दुख पहुंच जाए। पर यह उसकी बात है। यह वह जाने। यह उसकी समस्या है। तुम अपने भीतर किसी को दुख देने का भाव न रखना। तुम अपने भीतर किसी के विध्वंस की आकांक्षा न करना । तुम किसी के विनाश का बीज अपने भीत मत बोना । तुम निखालिस, तुम पवित्र रहना । तुम प्रेमपूर्ण रहना। और तुम यत्नपूर्वक जीना। और एक-एक कदम रखना होगा । पहले तो भाव में बदलाहट करनी होगी। तभी बाहर बदलाहट होगी।
जमी सख्त है, आसमां दूर है
बसर हो सके तो बस कीजिए
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