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प्रेम का आखिरी विस्तार : अहिंसा
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रहा है...यतन से जीने का अर्थ समझ लेना-उसी को कबीर ने छिपाओ, तो भी खुल जाता है। सच को बचाओ, छिपाओ, तो | जतन कहा है। जतन को रतन कहा है। जतन से जीना। यत्न से भी प्रगट हो जाता है। जीना! क्या अर्थ है? होश से जीना! चलना काफी नहीं है, तुम अपने बावजूद बहुत-सी बातें कह जाते हो। पीछे पछताते भीतर दीया जलता रहे, फिर चलना। बोलना काफी नहीं है, हो। निश्चित ही तुम्हारे बोलने में होश का दीया नहीं है। बोलो | जतन से बोलना। होश से बोलना।
होश से, जाग्रत हुए। इसको महावीर कहते हैं, यत्न। बोधपूर्वक तुम्हें कभी ऐसा मौका आता है या नहीं, जब तुम ऐसी बात कह जीने का नाम, येत्न। देते हो जो नहीं कहना चाहते थे? यह कैसा बोलना हुआ! तुम आंसू से कहो बरसे, मगर रोये नहीं कहना नहीं चाहते थे और कह गये। तय करके आये थे कि यह शबनम से कहो बिखरे, मगर खोये नहीं बात कहेंगे नहीं, और निकल गयी। तुम कहते हो, मेरे बावजूद पीने का मजा तो है तभी ऐ साकी निकल गयी। कहना नहीं चाहता था, फिर भी निकल गयी। मयखाना सभी झूमे मगर सोये नहीं
अकसर तो यह होता है, जो तुम नहीं कहना चाहते हो, वह मस्ती से कुछ हर्जा नहीं है, नींद भर न आये। निकल ही जाता है। वह कोई रास्ता खोज लेता है।
मयखाना सभी झूमे, मगर सोये नहीं एक मुल्ला नसरुद्दीन का मित्र बीमार था। मरने के करीब था। उठो, बैठो, चलो, जागे रहो! गीत गाओ, कि हंसो, कि रोओ, मित्र जाकर उसको समझाते थे कि कोई फिकिर नहीं, मौत आ जागे रहो! जागरण को धीरे-धीरे तुम्हारे जीवन की शैली बना नहीं रही, तुम रोज-रोज ठीक हो रहे हो। आखिरी रात भी आ लो; इसको महावीर यत्न कहते हैं। गयी, डाक्टरों ने कहा, अब बचेगा नहीं। मल्ला उसे देखने गया 'जीव मरे या जीए।' था। मित्रों ने उसे समझाया कि देखो भूल से भी उसके मरने की हिंसा से इसका कोई संबंध नहीं है। आमतौर से लोग सोचते बात मत कहना। वह वैसे ही मर रहा है, अब उसे और दुखी क्यों हैं, दूसरे को मत मारो, क्योंकि मर जाएगा तो पाप लगेगा। करना! घड़ी-दो घड़ी सुख से, शांति से रह ले। जाना तो है ही। महावीर कहते हैं, जीव मरे या जीए, इससे कुछ हिंसा का संबंध उसको दुख क्यों देना! सदमा मत पहुंचाना। मुल्ला ने कहा, नहीं है। तुम्हारे मन में जो मारने की वृत्ति उठी, जो तुमने मारने की क्या तुमने मुझे नासमझ समझा है? मुझे पता है।
वृत्ति उठने दी, वह तुम्हारे सोये होने का सबूत है। जो जागा हुआ मुल्ला गया उसने बड़ी इधर-उधर की हांकी, मित्र को खूब है, वह तो जानता है यहां सभी अमृतधर्मा हैं। प्रसन्न किया, इतना कि वह मरनेवाला आदमी हंसने लगा। जो समितियों में प्रयत्नशील है, उससे बाह्य हिंसा हो जाने पर उसके गप-सड़ाका, उलटी-सीधी कहानियां, वह बिलकुल भी उसे कर्मबंध नहीं होता।' | उठकर बैठ गया मरनेवाला, तभी मुल्ला, जोर-जोर से सिर महावीर बड़ी अनूठी बात कह रहे हैं। वह कह रहे हैं, जो हिलाने लगा, उसने पूछा क्या हुआ? उसने कहा, पूछो मत! होशपूर्वक जी रहा है, उससे कभी बाह्य हिंसा हो भी जाए...तुम यह तुम किस चीज के लिए सिर हिला रहे हो? उसने कहा कि चल रहे थे, एक चींटी दबकर मर गयी। लेकिन तुमने चलने में तुमसे मैं बात जरूर कर रहा हूं, लेकिन एक प्रश्न मेरे मन में उठ | होश रखा था। तुमने अपनी तरफ से पूरा होश रखा था...तो रहा है कि यह तुम्हारे घर की जो सीढ़ियां हैं, मर जाओगे तो अर्थी | महावीर कहते हैं, फिर कोई हर्जा नहीं। निकाली कैसे जाएगी? यह सीढ़ियां इरछी-तिरछी हैं। तो मैं | कुछ हिंसा तो होती है जीवन के होने में ही। श्वास लोगे। बार-बार उसी को इनकार कर रहा हूं कि मुझे क्या मतलब! यह | प्रत्येक सांस में लाखों जीवाणु मर जाते हैं। सांस तो लेनी ही जब मरेगा, जब मरेगा! और जिनको उतारना होगा, वे समझें! होगी। जीवाणु तो मरेंगे ही। पानी पीयोगे, भोजन करोगे, हाथ मगर यह प्रश्न मेरे मन में बार-बार आ रहा है कि इन सीढ़ियों से भी हिलाओ-डुलाओ, तो पूरा वायुमंडल सूक्ष्म-जीवाणुओं से अर्थी निकालना बड़ा मुश्किल है। छिपाना चाहता था | भरा है, वे मरते हैं। चलोगे, तो जीवाणु मरेंगे। हिंसा तो होगी। जो...सत्य के प्रगट होने के रास्ते हैं! झूठ को बचाओ, लेकिन तुम सावधानीपूर्वक बरतना।
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