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जिन सुत्र
सकती है। पूरा सत्य आंख के वश में नहीं है। तुम्हारे हाथ में मैं ज्यादा देर तक गपशप में लगा रहा। रात बहुत बीत गयी। एक छोटा-सा कंकड़ दे दूं और तुमसे कहूं इसे पूरा एक-साथ | चौंककर उठा, उसने कहा बहुत देर हो गयी, अब घर जाऊं। देख लो, तो तुम न देख पाओगे। आंख इतनी कमजोर है! एक मित्र ने कहा, आज भाभी तो बहुत इत्र-पान करेंगी। मुल्ला ने हिस्सा देखेगी, दूसरा हिस्सा दबा रह जाएगा। एक छोटा-सा | कहा तूने मुझे समझा क्या है? अगर घर जाते ही पहला शब्द कंकड़ भी तुम पूरा नहीं देख सकते, तो पूरे परमात्मा को, पूरे पत्नी से प्रीतम न निकलवा लूं, तो मेरा नाम बदल देना। या तेरी सत्य को कैसे देख सकोगे? इसलिए जिन्होंने देखने पर जोर | जिंदगी भर गुलामी कर दूंगा। मित्र भलीभांति मुल्ला की पत्नी दिया है, उन्होंने अधूरे दर्शनशास्त्र जगत को दिये हैं। महावीर का को जानता है, उसने कहा कोई फिक्र नहीं, दो मील चलना दर्शनशास्त्र परिपूर्ण है, समग्र है। जोर बड़ा भिन्न है। सनो। पडेगा-इस अंधेरी रात में लेकिन मैं आता हं. शर्त रही। । सत्य को देखना नहीं, सत्य को सुनना है। सत्य कोई वस्तु थोड़े नसरुद्दीन घर गया। उसने जाकर द्वार पर दस्तक दी और जोर ही है कि तुम उसे देख लोगे। सत्य तो किसी व्यक्ति का अनुभव से बोला, 'प्रीतम आ गये हैं।' पत्नी चिल्लायी अंदर से, है। वह कहेगा तो तुम सुन लोगे। महावीर खड़े रहें तुम्हारे | 'प्रीतम जाएं भाड़ में।' उसने मित्र से कहा, 'देखा, कहलवा समक्ष, तुम कुछ भी न देख पाओगे। बहुतों ने महावीर को देखा लिया न! पहला शब्द प्रीतम निकलवा लिया न।' था और कुछ भी न देखा। गांव-गांव खदेड़े गये। पत्थर मारे अगर कोई धारणा है, अगर पहले से कोई पक्षपात है, तो तुम गये। गांव-गांव निकाले गये। महावीर को देखने में क्या कुछ का कुछ सुन लोगे। तुम सत्य को अपने हिसाब से ढाल अड़चन आती थी?
| लोगे। तुम उसे असत्य कर लोगे। ऐसे ही तो लोग चूके महावीर इस महिमावान पुरुष को ऐसा तिरस्कार क्यों झेलना पड़ा? को, बुद्ध को, कृष्ण को, जरथुस्त्र को, जीसस को। कुछ का लोग अंधे हैं। दिखायी उन्हें पड़ता ही नहीं। सुन सकते हैं। कुछ सुन लिया। कहा था कुछ, सुन लिया कुछ। सुननेवाले के इसलिए सुनने की कला को सीख लेना धर्म के जगत में पहला पास अपना मन था, अपना मजबूत मन था, उसने मन के माध्यम कदम है।
से सुना। मन को हटाकर सुनो, तो महावीर का श्रवण समझ में क्या है सुनने की कला? कैसे सुनोगे? जब सुनो, तो सोचना आयेगा। मन को किनारे रख दो, जहां तुम जूते उतार आये हो मत। क्योंकि तुमने अगर सोचा सुनते समय, तो तुम वह न सुन वहीं मन को उतार आना। एक बार जूते भी मंदिर में ले आओ तो पाओगे जो कहा गया। कुछ और सुन लोगे। सुनते समय इतना अपवित्र नहीं, मन को मंदिर में मत लाना। नहीं तो मंदिर में पूर्व-धारणाओं को लेकर मत चलना। नहीं तो पर्व-धारणाएं पर्दे | कभी आ ही न सकोगे। का काम करेंगी। रंग घोल देंगी जो कहा गया है उसमें। तुमने "सुनकर ही कल्याण का, आत्महित का मार्ग जाना जा सकता कभी खयाल किया, रात तुम अलार्म लगाकर सो गये हो, चार है। सुनकर ही पाप का मार्ग जाना जा सकता है।' बजे उठना है ट्रेन पकड़ने। और जब अलार्म बजता है, तो तम श्रवण की कला आते ही तम दध और पानी को अलग-अलग एक सपना देखते हो कि मंदिर की घंटियां बज रही हैं। अलार्म करने में कुशल हो जाते हो। विवेक का जन्म होता है। तुम हंस खतम! तुमने एक सपना बना लिया।
हो जाते हो। इसीलिए तो हमने ज्ञानियों को परमहंस कहा है। अब घड़ी एलार्म बजाती रहे, क्या करेगी घड़ी? तुमने एक | परमहंस का अर्थ है, गलत को और सही को वे तत्क्षण अलग तरकीब निकाल ली। तुमने कुछ और सुन लिया! सुबह तुम कर लेंगे। उनकी आंख, उनकी दृष्टि, उनकी भावदशा बड़ी हैरान होओगे कि हुआ क्या? अलार्म भरा था, अलार्म बजा भी, साफ है, निर्मल है। जो जैसा है उसे वे वैसा ही देख लेते हैं। जैसे मैं चूक क्यों गया? तुम्हारे पास अपनी एक धारणा थी, एक को तैसा देख लेते हैं। उसमें कुछ जोड़ते नहीं। फिर कोई भ्रांति सपना था। तो अगर तुमने सुना कोई पक्षपात के साथ, तो तुम खड़ी नहीं होती। कुछ का कुछ सुन लोगे।
बतानेवाले वहीं पर बताते हैं मंजिल मैंने सुना है, एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन अपने मित्र के साथ __ हजार बार जहां से गुजर चुका हूं मैं
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