SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भाग : 2 कबतर. बनाते हैं एटम और हाइडोजन बम। इधर कबतर उडाते हासिले-जिंदगी जनं ही नहीं रहते हैं, उधर बम की फैक्ट्रियां चलाते रहते हैं। इधर शांति की जीवन का लक्ष्य पागल हो जाना थोड़े ही है। जीवन का लक्ष्य बातें करते रहते हैं, उधर युद्ध की तैयारी करते रहते हैं। शांति की तो प्रज्ञा को उपलब्ध होना है। अगर संघर्ष ही करना है, तो करो बातें सब बकवास मालूम होती हैं। अगर शांति की बात में प्रज्ञा के लिए। अगर युद्ध ही लड़ना है, तो लड़ो अंधेरे से, तो सचाई है, तो शांति की तैयारी तो करो। शांति की तैयारी करोगे लडो क्रोध से. तो लडो हिंसा से। शत्र भीतर है। करुक्षेत्र बाहर तो महावीर की बात सुननी पड़ेगी। लेकिन शांति की बात करने मत बनाओ। भीतर ही बनाओ। में कोई अड़चन नहीं है। शांति की बात युद्ध को, युद्ध की प्रवृत्ति गीता शुरू होती है तो कहती है, कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र है। बड़ा को ढांकने के लिए बड़ा सुगम उपाय हो जाती है। बमों के ढेर पर | गहरा इंगित है। कुरुक्षेत्र बाहर नहीं। धर्म का क्षेत्र। धर्म का क्षेत्र खड़े हैं, कबूतर उड़ा रहे हैं। तो भीतर है। जंग तो खुद ही एक मसला है आओ इस पीरावक्त दुनिया में जंग क्या खाक मसलों का हल देगी फिक्र की रोशनी को आम करें युद्ध तो खुद ही एक समस्या है। उससे हम हल खोज रहे हैं, अमन को जिससे तकवियत पहुंचे समाधान खोज रहे हैं। ऐसी जंगों का एहतमाम करें इसलिए ऐ शरीफ इंसानो आओ इस पीरावक्त दुनिया में जंग टलती रहे तो बेहतर है। इस भाग्यहीन दुनिया में, इस अंधेरे से भरी दुनिया में आप और हम सभी के आंगन में फिक्र की रोशनी को आम करें शमा जलती रहे तो बेहतर है ध्यान-चिंतन की, मनन की, स्वाध्याय की रोशनी जलायें। कौन-सी शमा? महावीर की शमा। अहिंसा की शमा। प्रेम अमन को जिससे तकवियत पहुंचे की शमा। और शांति से जिनको सहारा मिले, शक्ति मिले, बल मिले। आप और हम सभी के आंगन में ऐसी जंगों का एहतमाम करें शमा जलती रहे तो बेहतर है और ऐसे युद्धों का इंतजाम करें। ऐसे युद्धों का प्रबंध करें। बरतरी के सुबूत की खातिर जिनसे शांति बढ़े। खू बहाना ही क्या जरूरी है उसी युद्ध की तरफ महावीर का इशारा है। उसी युद्ध को घर की तारीकियां मिटाने को जीतकर वे महावीर बने। वह युद्ध भीतर है। वह दूसरे से नहीं, घर जलाना ही क्या जरूरी है वह अपनी ही अधोगामी वृत्तियों से है। वह अपने को ही नीचे घर में अंधेरा है, माना। लेकिन घर के अंधेरे को मिटाने के खींचनेवाली वासनाओं से है। वह अपने को ही अंधेरे में ले लिए क्या पूरे घर को जलाना जरूरी है! और जानेवाली आदतों से है। वह अपनी ही बेहोशी और मूर्छा से बरतरी के सुबूत की खातिर... है। आदमी तो इतना लड़ता रहा है, और बड़े अच्छे बहाने बड़प्पन, अहंकार, मैं बड़ा हूं, यह बताने के लिए... खोज-खोजकर लड़ता रहा है। बहानों पर मत जाओ! आदमी खू बहाना ही क्या जरूरी है लड़ने के लिए बड़ी गहरी आतुरता रखता है। राजनीति में तो क्या कोई और उपाय नहीं? लड़ता ही है, धर्म तक के लिए लड़ता है। इस्लाम खतरे में है। जंग के और भी तो मैदां हैं जैसे कि धर्म कभी खतरे में हो सकता है! हिंदू-धर्म खतरे में है। सिर्फ मैदाने-कुस्तखू ही नहीं ये सब आवाजें आदमी के भीतर हिंसा को भड़कानेवाली आवाजें और भी तो मैदान हैं युद्ध के। हैं। मंदिर-मस्जिद लड़ते हैं। यहां तक हालत पहुंच गयी हासिले-जिंदगी खिरद भी है। है...कल रात मैं किसी कवि की पंक्तियां पढ़ता था 168 | JainEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy