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________________ हला प्रश्न : महावीर ने आत्मा को समय क्यों कहा? कृपाकर बतायें कि समय और आत्मा में क्या संबंध है? प है समय का । मनुष्य को बहुत बोध है समय का । तुम कहीं हो स्थान में, और कहीं हो समय में। इन दोनों रेखाओं का जहां कटने का बिंदु है, वहीं तुम्हारा अस्तित्व है। तो हम पदार्थ को कह सकते हैं स्पेस । क्योंकि वह सिर्फ क्षेत्र घेरता है। और चेतना को कह सकते हैं समय । चेतना और पदार्थ से मिलकर जगत बना। वस्तुएं हैं, उन्हें अपने होने का कोई पता नहीं । और जैसे ही हमें अपने होने का पता चलता है, वैसे ही समय का भी पता चलता है । हमारा होना अंतर्तम में समय की घटना है। अलबर्ट आइंस्टीन ने अस्तित्व के संघटक तत्व दो माने हैं। टाइम और स्पेस। समय और क्षेत्र । और फिर बाद में जैसे-जैसे आइंस्टीन की खोज गहरी होती गयी, उसे यह भी प्रतीत होने लगा कि इन दो तत्वों को दो कहना ठीक नहीं है। इसलिए फिर | उसने दोनों के लिए एक ही शब्द चुन लिया स्पेसियोटाइम । समय-क्षेत्र। | क्षेत्र बाहर है, समय भीतर है। जीवन को अगर हम ठीक से समझें, तो हमें होने के लिए दो चीजें चाहिए। कोई जगह चाहिए होने के लिए। हम कुछ जगह घेरेंगे। तुम यहां बैठे हो, तो तुमने थोड़ी जगह घेरी । वही है क्षेत्र, आकाश, स्पेस। लेकिन उतना काफी नहीं है। अगर उतना ही हो, तो तुम वस्तु हो जाओगे। फिर तुममें और टेबल और कुर्सी में कोई फर्क न रहेगा। टेबल और कुर्सी ने भी जगह घेरी है। जैसी तुमने जगह घेरी । तुम जिस फर्श पर बैठे हो, उसने भी जगह घेरी है। जैसी तुमने जगह घेरी है। फिर तुममें और पत्थर में फर्क क्या है ? कुछ और भी भीतर घेरा है, वही समय है। पत्थर के लिए कोई समय नहीं है, कुर्सी के लिए कोई समय नहीं है। मनुष्य के लिए समय है। पशु-पक्षियों के लिए थोड़ा-सा बोध है समय का, बहुत ज्यादा बोध नहीं है। वृक्षों को और भी कम बोध Jain Education International 2010_03 तो एक तो हम इस तरह समझ सकते हैं आधुनिक भौतिकी आधार पर कि आइंस्टीन ने जिस भांति अंतर-आकाश को समय कहा, वैसे ही महावीर ने भी आत्मा को समय कहा है। और जब मैं अलबर्ट आइंस्टीन का नाम लेता हूं महावीर के साथ, तो और भी कारण है। दोनों की चिंतनधारा एक जैसी है। महावीर ने अध्यात्म में सापेक्षवाद, रिलेटीविटी को जन्म दिया और आइंस्टीन ने भौतिक विज्ञान में रिलेटीविटी को, सापेक्षवाद को जन्म दिया। दोनों का चिंतन-ढंग, दोनों के सोचने की पद्धति, दोनों का तर्क एक जैसा है। अगर इस दुनिया में दो आदमियों मेल खाता हो बहुत निकट से, तो महावीर और आइंस्टीन का खाता है। महावीर का फिर से अध्ययन होना चाहिए, आइंस्टीन के आधार पर। तो महावीर में बड़े-बड़े नये तरंगों का, नये उद्भावों का जन्म होगा। जो हमें महावीर में नहीं दिखायी पड़ा था, वह आइंस्टीन के सहारे दिखायी पड़ सकता है। महावीर और आइंस्टीन में जैसे धर्म और विज्ञान मिलते हैं। जैसे महावीर For Private & Personal Use Only 143 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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