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________________ 114 जिन सूत्र भाग: 2 रहे हैं। हमारी चेष्टा है कि घर मंदिर हो जाए । तो कितनी देर लगेगी उनको समझाने में? जल्दी ही वे समझ जाएंगे। और अगर तुम्हारे व्यवहार ने उन्हें प्रमाण दिया, तो दुबारा जब तुम आओगे, वे भी संन्यास लेने आ जाएंगे। रस्सी मैं उनको दूंगा । उनको क्यों...। माला यानी रस्सी ! फांसी है। तो उनको समझाना कि अगर रस्सी ही लेनी है, तो माला । जब मरने की ही तैयारी हो गयी, तो फिर संन्यास में ही मर जाओ। संन्यास की मृत्यु महाजीवन का द्वार है। मगर ध्यान रखना, अपने हृदय पर। तुम अगर स्वयं भयभीत हो और मां-बाप का सिर्फ बहाना खोज रहे हो, तो फिर अभी संन्यास मत लेना। फिर अभी आओ, ध्यान करो, जाओ। धीरे-धीरे रस को गहन होने दो। सदा अपने ही हृदय के ठीक से निरीक्षण और निदान के बाद कुछ करना। दूसरे के कारण आंदोलित और परेशान होने की कोई भी जरूरत नहीं है। रजकण को बिना चूमे कंचन है मिला किसको ? रजकण को बिना चूमे कंचन है मिला किसको ? कांटों में बिना घूमे मधुवन है मिला किसको ? तू देख के कुछ मुश्किल क्यों हार गया हिम्मत, देहरी को बिना लांघे आंगन है मिला किसको ? तो थोड़ी कठिनाइयां स्वाभाविक हैं। वे चुनौतियां हैं। वे न होतीं, बुरा होता। वे हैं, तो अच्छा है। उन्हीं चुनौतियों से पार होकर तो जीवन उठता है। राह पर जो पत्थर पड़े हैं, वे ही तो सीढ़ियां बन जाते हैं। पत्थरों से घबड़ाओ मत, सीढ़ियां बनाओ। अच्छा है कि मां-बाप ने एक चुनौती दी। अब इस चुनौती को समझो। इस चुनौती के योग्य अपने को बनाओ। इस चुनौती को स्वीकार करो। एक मौका मिला। एक संघर्ष हुआ । इस संघर्ष से कैसे ऊपर जाओ, इसका मार्ग खोजो। इसका कैसे अतिक्रमण हो, इसकी विधि खोजो। इससे घबड़ाकर बैठ मत जाओ। इससे घबड़ाकर डर मत जाओ । अन्यथा तुम सदा के लिए मुर्दा रह जाओगे। जीवन चुनौतियों को स्वीकार करने से आगे बढ़ता है। धन्यभागी हैं वे जिन्हें बहुत चुनौतियां मिलीं। क्योंकि उन्हीं के जीवन में निखार आया। रजकण को बिना चूमे कंचन है मिला किसको ? कांटों में बिना घूमे मधुवन है मिला किसको ? Jain Education International 2010_03 तू देख के कुछ मुश्किल क्यों हार गया हिम्मत, देहरी को बिना लांघे आंगन है मिला किसको ? तीसरा प्रश्न : मा योग लक्ष्मी ने कहा है कि भगवान श्री ने कुछ पुतलियां, कठपुतलियां बनायी हैं खेल के लिए। तो क्या हम लोग भगवान के हाथ की कठपुतली भर हैं? हो तो नहीं हो जाओ तो तुम्हारा बड़ा सौभाग्य! कठपुतली होना कुछ आसान बात नहीं । कठपुतली होना इस संसार में सबसे कठिन बात है। वही तो कृष्ण का पूरा उपदेश है अर्जुन को, कठपुतली हो जा। अगर गीता को एक शब्द में रखना हो, तो इतना ही कहा जा सकता है— कठपुतली हो जा। तू सिर्फ निमित्त मात्र हो जा । उपकरण मात्र। करने दे उसे जो कर रहा है। खींचने दे उसे धागे, तू नाच | उसकी मर्जी जैसा नचाये! आंगन टेढ़ा हो, तो ठीक। ठीक हो, तो ठीक, न ठीक हो तो ठीक। जैसी उसकी मर्जी । तू बीच में बाधा मत डाल । शरणागति का और अर्थ क्या है ? समर्पण का और अर्थ क्या है? समर्पण का इतना ही अर्थ है अब मैं अपनी मर्जी छोड़ता । लक्ष्मी ने ठीक ही कहा है। लेकिन होना आसान नहीं है। आमतौर से लोग सोचते हैं, कठपुतली होने में क्या रखा है, बिलकुल आसान बात है। सबसे कठिन बात अहंकार का समर्पण है! अपने को हटाकर रख देना ! अपने हृदय के मंदिर में किसी और को विराजमान कर लेना! अपने अतिरिक्त ! सिंहासन से स्वयं उतर जाना और किसी और को बैठ जाने देना सिंहासन पर ! बहुत कठिन इसीलिए तो प्रेम कठिन है। क्योंकि प्रेम में हम किसी को अपने सिंहासन पर विराजमान करते हैं । फिर प्रार्थना तो और भी कठिन है। क्योंकि प्रेम में तो हम आधा-अधूरा विराजमान करते हैं, प्रार्थना में पूरा विराजमान करते हैं । प्रार्थना में हम पूरे मिट जाते हैं। कठपुतली हो जाओ, फिर कुछ करने को नहीं बचता । आखिरी करना कर लिया। कठिन से कठिन बात जीत ली। छू लिया गौरीशंकर का शिखर । ऐसे हो जाओ जैसे नहीं हो। जहां जाये प्रभु, चलो। अपनी मर्जी अलग हटा लो। जैसे कोई नदी में बहता हो। देखा है, जिंदा आदमी कभी - कभी डूब जाता है, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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