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________________ जिन सूत्र भाग : 2 कोई तुम्हें गाली देता है, समस्या गाली देनेवाले की है। तुम्हारा | कहीं से गिरोगे। क्या है! तुम इस सारी दुनिया को कैसे बदलोगे? यह दुनिया | ध्यानी व्यक्ति धीरे-धीरे अपने हृदय की सुनकर चलता है। कुछ ऐसी है! वह अपने भीतर से अपना राग नहीं छूटने देता। वह भीतर के बड़ी प्रसिद्ध कथा है कि शिव और पार्वती एक पूर्णिमा की रात | धागे को पकड़े रखता है। कौन क्या कहता है, कौन क्या करता | विहार पर निकले। स्वभावतः शिव नंदी पर बैठे हैं. पार्वती है, यह बिलकल गौण है। इसका कोई भी मल्य नहीं है। साथ-साथ चल रही हैं। राह से दो आदमी आये और उन्होंने | 'आभ्यंतर-शुद्धि होने पर बाह्य-शुद्धि नियमतः होती है।' कहा, यह देखो, मुस्तंड खुद तो चढ़ा बैठा है बैल पर और स्त्री | वह अपने भीतर को निखारता है, जगाता है, शुद्ध करता है। को नीचे चला रहा है। यह कैसा शिष्टाचार! तो शिव ने कहा, वह अपने भीतर मंदिर बनाता है। वह अपने भीतर की प्रतिमा को देख, मैं नीचे आ जाता हूं, तू ऊपर बैठ जा। वे नीचे चलने लगे, | साफ करता है। बस वहां जब शुद्धि हो जाती है, उसके बाहर भी पार्वती नंदी पर बैठ गयीं। फिर कुछ लोग मिले, उन्होंने कहा, | शुद्धि की झलक आने लगती है। वहां जब धूप-दीप जलने देखो, यह औरत पति को नीचे चलवा रही है, खुद चढ़कर बैठी | लगते हैं, बाहर भी रोशनी और गंध आने लगती है। मगर, है। यह कैसा पति, और यह कैसी पत्नी, और यह कैसा प्रेम! तो उसका सारा उपक्रम और सारा काम भीतर है। शिव ने कहा, अब क्या करें? चलो हम दोनों ही बैठ जाएं। तो धर्म का कोई संबंध बाहर से नहीं। धर्म का सारा संबंध भीतर वे दोनों ही नंदी पर सवार हो गये। कुछ लोग मिले, उन्होंने कहा से है। धर्म तुम्हारे और तुम्हारे ही बीच की बात है। धर्म का कुछ इन मूों को देखो, नंदी को मार डालेंगे। दोनों के दोनों चढ़े हैं। लेना-देना किसी और से नहीं है। धर्म नितांत वैयक्तिक है। यह कोई ढंग हुआ! आखिर पशुओं पर भी कुछ दया होनी 'अप्पा अप्पणे सुरदो।' आत्मा का आत्मा में आत्मा के लिए चाहिए। तो शिव ने कहा, अब तो एक ही उपाय है। वे दोनों | तन्मय हो जाना। उतर गये और उन्होंने कहा, अब नंदी को हम अपने कंधों पर उठा | 'इसीलिए कहा गया है कि जैसे शुभ चरित्र के द्वारा अशुभ लें। नंदी को बांधकर डंडों में कंधों पर रखकर चले। बड़ा | प्रवृत्ति का निरोध किया जाता है, वैसे ही शुद्ध उपयोग के द्वारा मुश्किल था! | शुभ प्रवृत्ति का निरोध किया जाता है। अतएव इसी क्रम से योगी फिर कुछ लोग मिल गये। और उन्होंने कहा, ये पागल देखो! आत्मा का ध्यान करे।' रहे थे जब ये लोग मिले। उन्होंने कहा. ये महावीर कहते हैं. पहले शभ चरित्र पैदा होता है। जैसे तम पागल देखो. अच्छा भला नंदी, उस पर बैठकर यात्रा कर सकते भीतर प्रवेश करते हो, शांत होते हो, तम्हारे चरित्र में एक शभता थे, तो उसको कंधे पर लादकर चले रहे हैं। तो शिव और पार्वती आती है, शुभ चरित्र पैदा होता है। शुभ चरित्र से अशुभ चरित्र दोनों खड़े हो गये, और उन्होंने कहा अब हम क्या करें? अब तो | अपने-आप कट जाता है। जैसे प्रकाश से अंधेरा कट जाता है। कछ करने को बचा नहीं। जो-जो कहा लोगों ने, हमने किया। | शुभ चरित्र के द्वारा अशुभ का निरोध हो जाता है। और फिर, शुभ तो वे वहीं खड़े थे, नंदी भी घबड़ा गया लटका-लटका। उसने के भी ऊपर शुद्ध चरित्र है। क्योंकि शुभ में भी अशुभ से थोड़ा जोर से लातें फड़फड़ायीं, वह पुल के नीचे! नदी में गिर गया। जोड़ है। संबंध तो अशुभ से बना ही है, उसी के विपरीत है शुभ। कहानी का अर्थ है, लोग क्या कहते हैं, इस पर बहुत ध्यान देने एक आदमी लोभी है, वह दान करता है। तो लोभ अशुभ है, की जरूरत नहीं। लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे। लोग बिना कहे दान शुभ है। लेकिन दान जुड़ा है लोभ से ही। न लोभ किया नहीं रह सकते। असली सवाल अपने भीतर है। लोग जो कहते होता, तो दान कैसे करता। पहले धन इकट्ठा किया, फिर दान हैं, वह उनकी दृष्टि है। लोग जो कहते हैं, वह उनकी समस्या कर रहा है। तो यह जो शुभ है, यह अशुभ का ही संगी-साथी है। उसे तुम अपनी समस्या मत बनाना। और तुम लोगों का | है। अच्छा है, लेकिन है तो अशुभ का ही संगी-साथी। एक अनुकरण करके मत चलने लगना। अन्यथा तुम कहीं के न रह | आदमी ने क्रोध किया, फिर आकर पश्चात्ताप किया। क्षमा जाओगे। अन्यथा तुम्हारी वही गति होगी जो नंदी की हुई। तुम मांगी। क्रोध किया, वह अशुभ था; क्षमा मांगी, वह शुभ हुआ; 198 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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