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________________ जिन सूत्र भागः 1. को कि 'मैं कोई रामचंद्र नहीं है कि सालों सीता रावण के घर रही स्वभाव है। अगर उसकी याद भी आती है तो भी थिर नहीं हो और फिर भी उसे स्वीकार कर लिया। एक रात भी अगर तू घर पाती। किसी क्षण बड़े जोर से आती है, रोएं-रोएं को कंपा जाती नहीं रही, मैं स्वीकार करनेवाला नहीं हूं।' यह खबर काफी हो है। और कभी भूल जाता है तो दिनों निकल जाते हैं और याद जाती है राम को सीता को त्याग देने के लिए।...मर्यादा! | नहीं आती। जब तुम्हें याद आती है, तब तुम चौंकते हो, रोते हो अब ऐसा व्यक्ति अगर तुम्हारे बाबत गवाही देगा तो तुम कि अरे, इतने दिन भूला रहा। मुश्किल में पड़ोगे। इसकी गवाही का मापदंड बड़ा ऊंचा होगा, लेकिन मनुष्य की यह नैसर्गिक स्थिति है। श्वास भीतर जाती अमानवीय होगा। तुम तो इसके सामने हर हालत में पापी सिद्ध है, फिर बाहर जाती है। तुम भीतर ही श्वास को रखना चाहोगे, हो जाओगे। मर जाओगे। भीतर जो आयी है वह बाहर जायेगी। बाहर जो इसलिए इस्लाम कहता है, मुहम्मद कोई ईश्वर के अवतार नहीं गयी है वह फिर भीतर आयेगी। ऐसा प्रतिपल श्वास का हैं। वे आदमी जैसे आदमी हैं। और आदमी की जो मुसीबतें हैं, | आंदोलन चलेगा। सभी स्थितियों में विरोध रहेगा। दिन काम उसकी मुसीबतें हैं। और आदमी की जो आंतरिक पीड़ाएं हैं! करोगे, रात सो जाओगे। एक क्षण तय करोगे, दूसरे क्षण उनकी आंतरिक पीड़ाएं हैं। और आदमी के मन के जो भाव हैं, निश्चय टूट जायेगा। ऐसे ही श्वास आती-जाती रहेगी। ऐसी वेग हैं, वह उनके भाव, वेग हैं। उनकी गवाही का अर्थ है। ही लहरों पर नौका डोलती रहेगी। भक्त तो कहता है, तुमने जैसा बनाया वैसा मैं हूं। मैंने स्वयं अब दो उपाय हैं। एक तो ज्ञानी का उपाय है, जो कि बड़ा दुर्गम को तो बनाया नहीं है। यह मन भी तुमने दिया है। मुझे तो सिर्फ है; क्योंकि स्वयं से चेष्टा करनी पड़ेगी। अपने छोटे-छोटे हाथों मिला है। इसका कर्ता मैं नहीं हूं। इसलिए तुम जानो, तुम्हारी से इस पूरे सागर को शांत करना पड़ेगा। इसलिए महावीर को जिम्मेवारी है। अगर हमने महावीर कहा तो ऐसे ही नहीं कहा। बड़ी घनघोर अगर भक्त को भगवान का स्मरण भी भूल जाता है तो भी वह | तपश्चर्या थी! दुर्धर्ष! जन्मों-जन्मों की तपश्चर्या थी, तब कहीं बहुत चिंता नहीं करता। वह कहता है, तुम्हीं भुला रहे हो। जाकर वह क्षण आया सौभाग्य का कि लहरें शांत हुईं। यह बड़ी तू है तो तेरी फिक्र क्या, लड़ाई थी। हां, जिन्हें लड़ने का शौक है वे इस रास्ते पर जा तू नहीं, तो तेरा जिक्र क्या? सकते हैं। यह रास्ता भी पहुंचा देता है। भक्त ने तो प्राकृतिक अगर तू है तो हमने तेरी फिक्र न भी की तो भी तू है! और अगर रास्ते को चुना है।। त नहीं है तो तेरा जिक्र भी करते रहे तो क्या सार? और अगर तुम नैसर्गिक और स्वाभाविक ढंग से, बिना बहत तू है तो तेरी फिक्र क्या, जद्दोजहद के, बिना व्यर्थ का संघर्ष किए पहुंच जाना चाहते हो तो तू नहीं, तो तेरा जिक्र क्या? भक्त का ही रास्ता है। उसी पर छोड़ दो। जो ज्ञानी जन्मों-जन्मों और निश्चित ही आदमी कमजोर है, असहाय है! क्षणभर में कर पाता है, भक्त क्षण में कर लेता है। और जो क्षण में हो भाव से भर जाता है; क्षणभर बाद भाव का तूफान उतर जाता है, | सकता है उसको जन्मों-जन्मों में करने की जिद्द, जिद्द ही है। जो ज्वार उतर जाता है, सब भूल जाता है। क्षण में हो सकता हो, उसे जन्मों-जन्मों तक करके क्या करना देखो मंदिर में आदमी को पूजा करते-कैसी पवित्रता है? इकट्ठा ही छोड़ सकते हो...। झलकती है उसके चेहरे से! नमाज पढ़ते देखो किसी रामकृष्ण के पास एक आदमी आया। वह हजार सोने की को-कैसा निर्दोष भाव आंखों में उतर आता है! चेहरे पर कोई अशर्फियां लाया। उसने उनके चरणों में रख दी और कहा कि अद्वितीय आभा आ जाती है। फिर इसी आदमी को बाजार में यह मुझे आपको देना है। रामकृष्ण ने कहा कि ठीक है, अब तू देखो, किसी से लड़ते-झगड़ते, दुकान चलाते, तो तुम भरोसा ही ले आया है तो लौटाऊंगा तो तुझे बुरा लगेगा, ले लिया। ये मेरी न कर सकोगे कि वही आदमी है! मन है प्रतिपल बदला जाता ः हो गयीं। अब तू इतना काम कर दे मेरी तरफ से इनको ले अभी कुछ, अभी कुछ। मन तरंगायित है। चंचल होना मन का जाकर गंगा में डाल आ। यह मेरी हो गयीं। अब तू इतना काम 648 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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