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________________ प्रेम है आत्यंतिक मुक्ति बुद्ध और महावीर का तो पश्चिम में तो ईसाई शास्त्री समझ ही न हजार-हजार आयाम दिये। उसने तुम्हें प्रेम दिया, राग-रंग सका यह, कि धार्मिक और नास्तिक, यह हो कैसे सकता है! | दिए। स्वीकार करो! और स्वीकार करते ही तुम पाओगे कि दंश क्योंकि पश्चिम में इस्लाम, यहूदी, ईसाई, तीनों ही भक्ति के चला गया। कांटा नहीं चुभता फिर। भक्त तो कहता है : संप्रदाय हैं। वो ज्ञान के संप्रदाय, उनमें कोई भी नहीं है। तो पकड़े जाते हैं फरिश्तों के लिखे पर, नाहक उन्होंने एक ही तरह का ढंग जाना था-भक्त का। यह उनके आदमी कोई हमारा दमे-तहरीर भी था? लिए असंभव था कि भगवान के बिना भक्त हो कैसे सकता है! भक्त तो भगवान से कहता है कि फरिश्तों ने जो हमारे संबंध में तो प्रथम-रूप जो किताबें लिखी गयीं जैन धर्म और बौद्ध धर्म खबर दी हैं, उनका भरोसा मत करना। हमारे पाप-पुण्यों का जो पर, पश्चिम के लेखकों ने लिखीं, उन्होंने लिखाः ये नीतिशास्त्र लेखा-जोखा तुम्हारे फरिश्तों ने बताया है उसका भरोसा मत की व्यवस्थाएं हैं, धर्म नहीं हैं। मारल कोड्स! क्योंकि धर्म तो करना। 'आदमी कोई हमारा दमे-तहरीर भी था?' अगर ईश्वर के बिना होगा कैसे? लेकिन धर्म ईश्वर के बिना हो पूछना हो तो आदमियों से पूछना, क्योंकि आदमी ही समझ सकता है। वस्तुतः साधक का धर्म ईश्वर के बिना ही होगा। पाएंगे कि तुमने हमें ऐसा बनाया था। फरिश्तों को क्या पता कि भगवान, भक्त के हृदय का आविर्भाव है। वह पूजा का ही तुमने कितना प्रेम भर दिया था हमारे रग-रेशे में? फरिश्तों को सघन रूप है। वह प्रार्थना ही पर्त दर पर्त जमती जाती है, तब क्या पता कि कितना नाच और कितनी तरंगें तुमने दी थीं? नहीं, परमात्मा बनती है। वह लहरें, तरंगें अस्वीकार नहीं की गयीं, इनकी बात पर भरोसा मत करना। अगर हमने भूल-चूक की हो तभी सागर मिलता है। ज्ञानी तो धीरे-धीरे लहरों को अस्वीकार तो तुमने करवायी थी। और अगर गवाह चाहिए हो तो आदमियों करके सागर को भी छोड़कर मरुस्थल में विराजमान हो जाता है। से पूछना, क्योंकि वे हमें समझ सकेंगे। क्योंकि जैसे वे हैं वैसे ऋतस्य यथा प्रेत! हम हैं। तो घबड़ाओ मत! उसने तरंगें दी हैं, उसी को समर्पित कर दो। पकड़े जाते हैं फरिश्तों के लिखे पर, नाहक और उसी की बात उसे लौटा देने में लगता क्या है? आदमी कोई हमारा दमे-तहरीर भी था? सामवेद में भी एक वचन है : देवस्य पश्य काव्यम्! यह जो अगर कोई चश्मदीद आदमी हमारा गवाह हो तो ही बात का दिखायी पड़ रहा है, यह परमात्मा का प्रगट काव्य है। छिपा है भरोसा करना। वही पीछे। यह जो गुनगुनाहट दिखायी पड़ती है प्रकृति के नाम ईसाइयत कहती है कि जीसस होंगे तुम्हारे गवाह। जीसस से, इसके पीछे उसी का कंठ छिपा है। चाहे कोयल की कुहू कुहू बाइबिल में जगह-जगह दो वचनों का उपयोग करते हैं। में और चाहे कौवों की शिकायत में वही छिपा है। कांव-कांव कभी-कभी वे कहते हैं, मैं हूं ईश्वर-पुत्र! लेकिन इससे भी हो कि कुहू कुहू, अंधेरी रात हो कि प्रकाश से भरा हुआ दिवस ज्यादा बार वे कहते हैं, मैं हूं मनुष्य का पुत्र! सन आफ मैन! हो, और जन्म हो कि मृत्यु हो-सब तरफ उसी के हाथ हैं। यह बड़ा जोर है उनका इस बात पर कि मैं आदमी का बेटा हूं; जैसे काव्य उसका है। ईश्वर का बेटा होना नंबर दो है। और जीसस कहते हैं कि मैं देवस्य पश्य काव्यम्! यह जो दिखाई पड़ रहा है संसार, यह | तुम्हारा गवाह हूं। यह थोड़े सोचने जैसी बात है। उसी का प्रगट काव्य है। जैसे कवि तो छिपा है और हमें केवल इस्लाम मुहम्मद को ईश्वर का अवतार नहीं मानता न तीर्थंकर कविता हाथ लग रही है। | मानता है-इतना ही मानता है, ईश्वर का भेजा हुआ दूत; तुम्हारे भीतर भी जो तरंगें उठा रहा है वह वही है। तुम भी उसी । लेकिन आदमी। यह बात महत्वपूर्ण है। यह महत्वपूर्ण इसलिए की तरंग हो। तुममें उठी तरंगें भी उसी की तरंगें हैं। है कि आदमी ही आदमी का गवाह हो सकेगा। अगर राम तुम्हारे तो यदि भक्त का तुम्हारे पास मन हो तो चिंता मत करो। उसने लिए गवाही देंगे तो गड़बड़ हो जायेगी, क्योंकि वे अपने मापदंड तरंगें उठाने योग्य तुम्हें समझा, इसके लिए धन्यवाद दो। उसने से सोचेंगे। उनके मापदंड बड़े कठोर हैं, अति कठोर हैं, तुम्हें जीवन दिया। उसने तुम्हें रस दिया। उसने तुम्हें होने के | अमानवीय हैं, असंभव हैं। कोई धोबी कह देता है अपनी पत्नी 647 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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