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________________ HI LALIS GREH Crimalini ऐसा मान लिया तो अपने जीवन में एक ऐसे पत्थर को रख लिया के हटते ही सारी समझ हट जायेगी। तो समझ उनकी शब्दों का कि उसको पार करना फिर असंभव हो जायेगा। ही जोड़ है। कोई प्रेम को जानता नहीं; प्रेम करता है तब जानता है। और न और एक ज्ञानी की समझ है; तुम उससे सब शब्द छीन लो तो ही कोई परमात्मा को जानता है, जब तक उतरता नहीं उस गहराई भी उसकी समझ न छीन सकोगे। क्योंकि उसकी समझ अनुभव में। और न ही कोई आत्मा को जानता है, जब तक डूबता नहीं की है, शब्दों की नहीं। अगर शब्दों का उसने उपयोग भी किया अपने आत्यंतिक केंद्र पर। है तो अपनी समझ को तुम तक पहुंचाने के लिए किया है। शब्दों तो समझ नहीं है, इसको पत्थर की तरह उपयोग मत कर के उपयोग से उसने समझ को पाया नहीं है। वह बौद्धिक नहीं लेना। समझ आयेगी ही अनुभव से। इसलिए समझ से भी | है-अस्तित्वगत है, एक्जीसटेंशियल है। उसने जाना है. जीया ज्यादा जरूरी है साहस। इसे मैं फिर से दोहराऊंः अध्यात्म के है। तो तुम उसके सारे शब्द छीन लो, तब भी तुम उसकी समझ मार्ग पर समझ से भी ज्यादा जरूरी है साहस। क्योंकि साहस हो न छीन पाओगे। उसकी समझ शब्दों से बहुत गहरी है। उसने तो आदमी अनुभव में उतरता है; अनुभव में उतरे तो समझ आती मौन में समझ पायी है। उसने तो खुद ही शब्द छोड़ दिये थे, तब है। इसलिए जिनको तुम समझदार कहते हो वह वंचित ही रह | समझ आयी है। जाते हैं। क्योंकि समझदार यह कहेगा, यह अपनी समझ में नहीं तो इसे खयाल रखना। और एक खतरा है कि कुछ लोग ऐसे आती। जो समझ में नहीं आती, चलूं कैसे? पता नहीं कोई भी हैं जो इन वचनों को समझ लेंगे, समझते मालूम पड़ेंगे; भटकाव न हो जाये। पता नहीं जो हाथ में है, कहीं वह भी न खो | क्योंकि ये वचन कोई बहुत दुरूह नहीं हैं। इनकी दुरूहता अगर जाये! ये बड़ी दूर की बातें, आकाश की बातें, कहीं मेरी पृथ्वी कहीं है तो अनुभव में है, वचनों में नहीं है। वचन तो बड़े को उजाड़ न दें! एक छोटा घर बनाया है-वासना का, तृष्णा सीधे-साफ हैं। महावीर ने एक भी जटिल विचार का उपयोग का-एक छोटा संसार रचाया है। ये कहीं परमात्मा और आत्मा | नहीं किया-कोई ज्ञानी पुरुष कभी नहीं किया है। जटिल के खयाल, यह दिव्य प्यास, कहीं मेरी सारी घर-गृहस्थी को विचारों का उपयोग तो वे लोग करते हैं जिनके पास कुछ भी नहीं डांवाडोल न कर दे। है; और केवल बड़े-बड़े शब्दों की छाया में अपने अंधकार को तो समझदार आदमी कहता है, जब समझ में आयेगी तब छिपा लेना चाहते हैं। करेंगे। साहसी कहता है, समझ में नहीं आती तो करेंगे और दार्शनिक बड़े-बड़े शब्दों का उपयोग करते हैं; बड़े-बड़े लंबे देखेंगे और समझेंगे। | वचनों का उपयोग करते हैं। तुम उनके वचनों के बीहड़ में ही खो साहस! वस्तुतः दुस्साहस चाहिए! इसलिए तो महावीर को जाओगे। तुम्हें यह पक्का हो ही न पायेगा कि वे क्या कहना हमने महावीर नाम दिया। उन्होंने बड़ा दुस्साहस किया। वह चाहते थे। उनके पास कहने को कुछ था भी नहीं। लेकिन जो समझ के लिए न रुके। वह अनुभव में उतर गये।...जुआरी की नहीं था उनके पास कहने को, उसको उन्होंने इस ढंग से फैलाया हिम्मत! सब दांव पर लगा दिया। फिर समझ भी आयी। कि शब्द-जाल ऐसा बड़ा हो गया कि तुम समझ ही न पाये। न क्योंकि समझ अनुभव की छाया की तरह आती है। समझने के कारण कई बार तुम्हें लगता है, बड़ी गहरी बात है। तो दुनिया में दो तरह की समझ है। एक तो समझदारों की, महावीर जैसे पुरुष सुलझाने को हैं, उलझाने को नहीं। उनके जिनको तुम समझदार कहते हो-उनकी समझ अनुभव से नहीं वचन सीधे-साफ हैं; दो टूक हैं; गणित की तरह स्पष्ट हैं। दो आती; उनकी समझ सिर्फ बौद्धिक है, सिर्फ बुद्धि की है। वह और दो चार-बस ऐसे ही उनके वचन हैं। शब्दों को समझ लेते हैं; शब्दों का संयोजन समझ लेते हैं; शब्दों | तो खतरा यह भी है कि तुम्हें वचन सुनकर ऐसा लगे कि अरे, का व्याकरण समझ लेते हैं; शब्दों का अर्थ भी बिठा लेते समझ गये। वहां मत रुक जाना। वह समझ कुछ काम न हैं लेकिन बस सब खेल शब्दों का होता है! आयेगी। अगर तुम महावीर के वचनों को सुनकर समझ गये तो शब्दों को हटा लो तो उनके पीछे कोई समझ बचेगी नहीं; शब्द फिर महावीर ने बारह वर्ष मौन और ध्यान साधा, तो बहुत कम 15801 Jail Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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