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________________ HAMARHTET तुम्हारी संपदा-तुम हो URI AAR जीवन-दृष्टि है। भजन का अर्थ है जो डूबा! भजन का अर्थ है जिसने अपने तु और तेरी चंचल सखियां, जब पानी भरने जाती हैं को खोया! भजन का अर्थ है: जिसने अपने को छोड़ा उसके तब साये धानी होते हैं, तब धूप गुलाबी होती है। हाथ में! भजन का अर्थ है जो उसके आसपास नाचा और रास वह जो भक्त है, वह प्रत्येक खेल में परमात्मा को देख रहा है। में सम्मिलित हुआ। भक्त को तो लगता है: यह सारा खेल, यह तू और तेरी चंचल सखियां जब पानी भरने जाती हैं सारी लीला, चाहे कैसा ही ढंग रखती हो-यह कोयल की तब साये धानी होते हैं, तब धूप गुलाबी होती है। कुहू-कुहू, ये वर्षा के बादल, यह वर्षा की रिमझिम टाप-यह धूप भी गुलाबी हो जाती है, साये भी धानी हो जाते हैं। और जो सब अनेक-अनेक रूपों में उसी का आगमन है! यह उसी के भी जा रहा है पनघट की तरफ, वह वही है-उसकी चंचल पैरों में बंधे हुए धुंघरुओं की आवाज है! सखियां हैं। भक्त संसार को सिर्फ संसार की तरह नहीं देखता-परमात्मा सारा जगत अनेक-अनेक रूपों में उसी की लीला है। जिसने की अभिव्यक्ति की तरह देखता है। यह उसका प्रगट रूप है। ने पहचानना शुरू कर दिया, वह हर जगह उसे पहचान लेगा। यह उसी चित्रकार का चित्र है। ये रंग उसी के हाथ ने फैलाए हैं। मोहतसिब की खैर ऊंचा है उसी के फैज से ये गीत उसी ने रचे हैं। वेद कहते हैं : यह काव्य उसी का है। यह रिंद का, साकी का, मय का, खुम का, पैमाने का नाम। वही गुनगुनाया है। वही गुनगुना रहा है! भक्त तो कहता है, भगवान है रसाध्यक्ष उस मधुशाला का! साधक के मार्ग पर संसार और सत्य विपरीत हैं। संसार से इस जीवन की मधुशाला का रसाध्यक्ष! और उसी की कृपा का हटना है अगर सत्य में जाना हो। फल है। भक्त के मार्ग पर संसार सत्य का ही परिधान है, उसी की रिंद का, साकी का, मय का, खमका, पैमाने का नाम वेषभषा है। ये जो मोर नाच रहे हैं, ये मोर पंख उसी के मुकुट -इन सबके नामों की महिमा उसी के कारण है। पर लगे हैं। यह जो बांसुरी बज रही है, चाहे तुम्हें उसके ओंठ मोहतसिब की खैर ऊंचा है उसी के फैज से।। दिखायी पड़ते हों न दिखायी पड़ते हों, यह बांसुरी उसी के ओंठों -उस रसाध्यक्ष की अनुकंपा कि उसी की अनुकंपा से रिंद | पर रखी है; नहीं तो कभी की बजनी बंद हो जाती। का, पियक्कड़ का...। मय भी है, मीना भी है, सागर भी है, साकी नहीं भक्त तो पियक्कड़ है। वह तो भगवान की शराब पी रहा है। जी में आता है लगा दें आग मयखाने को हम। जीवन को तो उसने मधुसिक्त भाव से देखा है। 'प्यारे' को और अगर तुम्हें दिखायी न पड़े वह, तो फिर ऐसा लगेगा कि पहचानने की तरह उसने जीवन की खोज की है। वह सत्य की संसार में आग ही लगा दो। खोज में नहीं है-'प्यारे' की खोज में है! महावीर सत्य की | मय भी है, मीना भी है, सागर भी है, साकी नहीं-सब है खोज में हैं। 'प्यारा' शब्द उनके ओंठ से निकलेगा भी नहीं। । लेकिन पिलानेवाला नहीं है, ढालनेवाला नहीं. साकी नहीं है। मोहतसिब की खैर ऊंचा है उसी के फैज से जी में आता है लगा दें आग मयखाने को हम! रिंद का, साकी का, मय का, खुम का, पैमाने का नाम।। तो फिर यह सब व्यर्थ है। लेकिन अगर उसके हाथ तुम्हें जिस गागर में सागर भरी, जिस गागर में मधु का सागर भरा दिखायी पड़ जायें कि उसी ने ढाली है सुरा, तो फिर सुरा भी है, जिस पात्र में मधु पड़ा है, जो पिलानेवाला है, जो पीनेवाला | अमृत है। अगर उसके हाथ दिखायी पड़ जायें तो जहर भी अमृत है—इन सबकी महिमा उसी के कारण है-उसकी ही अनुकंपा है! क्योंकि उसके हाथों में जहर हो ही कैसे सकता है। __ भक्त की दृष्टि बड़ी अलग है। भक्त की दृष्टि को तुम साधक भक्त की भाषा सुरा की, सुगंध की, संगीत की भाषा है। भक्त | की दृष्टि के साथ गडमगड्ड न करना। उन्हें अलग-अलग की भाषा प्रेम की, प्रियतम की, प्रियतमा की भाषा है। भक्त की रखना, साफ-सुथरा रखना। फिर तुम्हें जो प्रीतिकर लगे, उस भाषा रास की, रस की भाषा है। पर चले जाना; मगर मन में कभी भी यह खयाल मत रखना कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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