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________________ जिन सूत्र भागः1 दूसरा गलत है। अगर तुमने यह सोचा कि दूसरा गलत है तो मैं होगा तुम्हारा! लेकिन अतीत की सीमा है। जो हो चुका उसकी तुमसे कहूंगा : तुम्हें अपने मार्ग पर संदेह है। दूसरे से तुम्हें क्या सीमा है। जो अभी नहीं हुआ, वह असीम है। हमारी भीड़ कल लेना-देना? होगा, वह भी ठीक होगा। और अगर उसे वहीं से | देखना! तुम तो गये-गुजरे हो! सूर्यास्त हो रहा है! डूबते सूरज आनंद के द्वार खुल रहे हैं, तो तुम कौन हो रोकनेवाले? और को कौन नमस्कार करता है। तुम इस नये सूरज को देखो! अगर उसे वहीं से परमात्मा की पहचान आ रही है, तो तुम कौन तो नये धर्म जब पैदा होते हैं तो वे भविष्य की बात करते हैं। हो बाधा डालनेवाले? क्योंकि वह ही एक रास्ता है भीड़ को बढ़ाने का। उनके पास न सत्य के एकाधिकारी, मोनोपोलिस्ट मत बनना। इसी तरह अतीत है, न भीड़ आज मौजूद है। दुनिया में धर्म नष्ट हुआ, क्योंकि सभी धर्म सत्य के एकाधिकारी लेकिन मैं धार्मिक आदमी उसको कहता हूं, जिसे भीड़ की बन गये। और जब भी धर्म सत्य का एकाधिकारी बनता है, भ्रष्ट जरूरत नहीं किसी भी रूप में, अभी, कल या कभी! जो हो जाता है; संप्रदाय रह जाता है; धर्म मर जाता है, लाश रह कहता है, अकेला काफी हूं। अकेला भी चला तो भी पहुंच जाती है। सत्य पर किसी की बपौती नहीं है। यही महावीर का | जाऊंगा। उसके और परमात्मा के बीच सीधा संबंध है; भीड़ के स्यादवाद है। सत्य सबका है; सब ढंगों से पाया जा सकता है; माध्यम से नहीं है। सब मार्गों से पाया जा सकता है। ऐसा अगर तुम कह पाओ तो _और अच्छा ही है कि इतने मार्ग हैं क्योंकि इतने प्रकार के मनुष्य उसका अर्थ हुआ कि तुम्हें अपने मार्ग पर श्रद्धा है, श्रद्धान है। । हैं। एक-एक व्यक्ति इतना भिन्न है कि यह बड़ा कठिन हो जाता | इसलिए तम्हें दसरे के मार्ग को गाली देने की जरूरत नहीं। तुम्हें कि एक ही मार्ग होता। तो कुछ लोग तो जाते, कुछ और लोग अपने मार्ग पर इतना भरोसा है कि इस भरोसे को दूसरे को गाली इसलिए ही न जा पाते क्योंकि वह उस मार्ग पर ठीक न बैठते।। दे दे कर बढ़ाने की जरूरत नहीं है। तुम अपने मार्ग के प्रति इतने | तुमने खयाल किया। स्कूल में बच्चे पढ़ते हैं। चूंकि हमने मान आश्वस्त हो कि अगर सारी दुनिया भी तुम्हारे मार्ग को छोड़ दे तो रखा है कि जो बच्चा गणित में होशियार है वही होशियार! तो जो तुम अकेले ही गीत गुनगुनाते चले जाओगे। इससे कुछ फर्क न बच्चा गणित में होशियार नहीं वह गधा हो जाता है। तुम जरा पड़ेगा। तुम्हें भीड़ की अपेक्षा नहीं है, जरूरत नहीं है। एक दूसरी दुनिया सोचो! जल्दी ही वह दुनिया आयेगी, जबकि कमजोर आदमी को भीड़ की जरूरत है। भरोसे की कमी हम गणित की बहुत जरूरत न रह जायेगी। कंप्यूटर पैदा हो गये हैं। भीड़ से परा कर लेते हैं। कमजोर आदमी को परंपरा की जरूरत | आनेवाली सदी में छोटे-छोटे बच्चे भी कंप्यूटर अपनी जेब में है। तो हम कहते हैं, पांच हजार साल पुरानी है हमारी परंपरा! रख सकेंगे। गणित का बड़े से बड़ा सवाल कंप्यूटर क्षण में पूरा इस तरह भीड़ को हम पांच हजार साल पुराना बना देते हैं। कर देगा। उसके लिए करने की जरूरत न रह जायेगी। तो भीड़ दो तरह से हो सकती है या तो अभी हो; जैसी ईसाइयों गणित की प्रतिभा समाप्त हो जायेगी। तब हम कहेंगे, जो बच्चा के पास है। एक अरब आदमी! तो वे जरा अतीत की बात नहीं काव्य में गुणवान है वह प्रतिभा-संपन्न है। तब सारा नक्शा करते. क्योंकि अतीत की कोई जरूरत नहीं-भीड़ अभी है। बदल जायेगा। फिर भीड़ को बढ़ाने का दूसरा ढंग यह है कि हिंदू कहते हैं हमारा अभी जो बच्चा गधा है वह भविष्य में गुणवान हो सकता है; धर्म सनातन है। माना कि हम बीस ही करोड़ हैं, इससे क्या होता और अभी जो गुणवान है, भविष्य में व्यर्थ हो सकता है। जब है; लेकिन हम सनातन से हैं। तो उन सारे लोगों को जोड़ लो जो मूल्य बदलते हैं तो लोगों की स्थिति बदल जाती है। अब तक हिंदू रहे, तब तुम्हें पता चलेगा कि हिंदुओं की भीड़ | तुमने देखा! जैसे-जैसे मूल्य बदलते जाते हैं, वैसे-वैसे स्थिति कितनी है! बदलती जाती है। अगर धर्म भी ऐसा हो कि किन्हीं खास लोगों जिनके पास ये दोनों उपाय नहीं, वे कहते हैं, 'भविष्य! अभी के पहुंचने के लिए हो जाये तो उतनी ही संकीर्ण हो जायेगी धारा; छोड़ो-अतीत!' नये-नये धर्म जब पैदा होते हैं, तो वे भविष्य फिर बहुतों का क्या होगा, जो उस तरह से नहीं जा सकते? की बात करते हैं। वे कहते हैं, भविष्य हमारा है। अतीत रहा उनकी तो सोचो। अगर महावीर का ही अकेला मार्ग हो, तो जो 568 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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