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________________ तुम्हारी संपदा--तुम हो इतना गहन होने लगता है कि भाव करनेवाला धीरे-धीरे भाव में | उसी किनारे पहुंचा देंगी; लेकिन दो नावों पर सवार आदमी डूब जाता है, अलग नहीं रह जाता-तो भक्ति। और भक्ति मुश्किल में पड़ जाता है। एक ही नाव पर सवार हुआ जा सकता जब इतनी सघन होती है कि स्वयं का तो दिखायी पड़ना है। इसका यह भी अर्थ नहीं है कि तुम यह घोषणा करो और बिलकुल बंद हो जाता है, स्वयं की जगह परमात्मा की प्रतीति चिल्लाओ और मानो कि मेरी ही नाव पहुंचाती है। वह भी होने लगती है, चारों तरफ उसका दर्शन होने लगता है तो पागलपन है। वह भी कमजोरी है। जो आदमी कहता है मेरी ही भगवान। और भगवान को पा लेने की जो खुशी है, वह भजन नाव पहुंचाती है, उस आदमी को संदेह है अभी। उसे अपनी नाव है। उसको पा लेने से जो नाच पैदा होता है कि मिल गया!... | पहुंचाएगी, इसमें संदेह है। चिल्ला-चिल्लाकर वह विश्वास आर्किमिडीज के जीवन में एक कथा है कि वह एक वैज्ञानिक जगा रहा है। वह कहता है, 'कहां जा रहे हो दूसरी नाव में? यह खोज कर रहा था। अपने टब में बैठा था स्नान करने, तब उसको कभी न पहुंचाएगी। आओ, मेरी ही नाव पहुंचाती है!' वह डरा सूझ आ गयी। तो नग्न बैठा था स्नानागार में, छलांग लगाकर है अपने से कि कहीं दूसरी भी नाव पहुंचाती हो तो उसका खुद उठा। भूल ही गया कि नग्न हूं। भूल ही गया कि स्नानागार है। का इस नाव में बैठना मुश्किल हो जाएगा। खोज का मजा ऐसा था कि दौड़ा सड़कों पर और चिल्लायाः तुम हैरान होओगे! जो लोग दूसरों को कनवर्ट करने चलते 'इरेका। मिल गया!' राजमहल पहुंच गया नंगा, भीड़ लग हैं—जैसे ईसाई हिंदओं को ईसाई बनाने में लगे रहते हैं, आर्य गयी। सम्राट ने भी कहा कि 'तुम पागल हो गये हो! मिल भी समाजी ईसाइयों को हिंदू बनाने में लगे रहते हैं ये सब संदिग्ध गया तो इतने पागल होने की क्या बात है? नग्न क्यों हो?' तब लोग हैं, इनको अपनी नाव पर भरोसा नहीं है। ये जब तक दूसरे उसे याद आया। उसने कहा, 'क्षमा करें! मिलने का क्षण इतना की नाव खाली न करवा लें तब तक इन्हें भरोसा नहीं। ये कहते गहन था कि मैं भूल ही गया; अपना मुझे होश ही न रहा।' हैं, दूसरी भी नावें हैं, इनमें भी लोग जा रहे हैं-कहीं ये लोग तो भजन तो ऐसा क्षण है : इरेका! मिल गया! | पहुंच तो नहीं जाते! ये खुद तो पहुंचे नहीं हैं अभी। इनकी नाव जब भगवान की पहली दफा झलक मिलती है, जब उसकी कहीं जाती नहीं मालूम हो रही है इनको। दूसरे! तो दो ही उपाय छवि पहली दफा दिखाई पड़ती है, जब उसका रूप पहली दफा हैं या तो ये सही हैं, या हम सही हैं। अगर ये सही हैं तो हमक प्रगट होता है, जब उसकी सुगंध नासापुटों में पहली बार भरती अपनी नाव में से उतरना पड़ेगा। अगर हम सही हैं तो इनको है-इरेका! तो भक्त नाच उठता है, गुनगुना उठता है, | इनकी नाव से उतार लें। आंसुओं की धार बह जाती है-आनंद के आंसुओं की! सारी दुनिया में धर्मों के बीच जो संघर्ष चलता है वह स्वयं की सम्हाले नहीं सम्हलता! मस्ती भर जाती है। प्याला छलकने | नाव पर विश्वास नहीं है, इसलिए चलता है। दूसरे को जब तुम लगता है!-तो भजन! समझाने जाते हो तब तुम गौर करनाः कहीं तुम दूसरे के बहाने भजन बिलकुल दूसरी धारा का हिस्सा है। दोनों धाराएं पहुंचा | अपने को ही तो नहीं समझा रहे हो? कहीं दूसरे के बहाने अपने देती हैं, लेकिन दोनों के रास्ते बड़े अलग-अलग हैं। ही संदेहों को तो शांत नहीं कर रहे हो? जब तुम दूसरे को शेख काबे से गया उस तक बिरहमन दैर से समझाने में राजी हो जाते हो कि तुम सही हो, तो तुम्हें बड़ा एक थी दोनों की मंजिल फेर था कुछ राह का। हलकापन मालूम होता है, तुमने खयाल किया। क्यों? एक लेकिन वह कुछ फर्क बड़ा फर्क है! कोई मस्जिद से गया, कोई बोझ था भीतर : कौन जाने हम गलत हों! दूसरे को समझा मंदिर से गया; कोई तप से गया, कोई भाव से गया-थोड़ा-सा लिया, चलो एक आदमी और राजी हो गया! अपने पर तो फर्क है; लेकिन थोड़ा-सा फर्क भी बहुत बड़ा फर्क है। पहुंचकर भरोसा नहीं था; अब एक और राजी हो गया, शायद ठीक हों! तो सब रास्ते उसी पर मिल जाते हैं। लेकिन बीच में बड़े-बड़े दो राजी हो गये, तीन राजी हो गये, भीड़ इकट्ठी हो गयी, तो अंतर हैं। और बीच में तुम दो रास्तों के बीच अपने को डांवाडोल भरोसा पक्का हो गया कि नहीं, हम गलत कैसे हो सकते हैं! मत करना। दो नावों पर कभी सवार मत होना। यद्यपि दोनों नावें इतने लोग कैसे राजी हो जाते! हो सकता था हम भूल में होते, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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