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________________ - प्यास ही प्रार्थना है ये राज है मैखाने का इफ्शां न करेंगे। आखिरी प्रश्नः जब आपको सुनता हूं तो आपका प्रत्येक क्या हमने छलकते हुए पैमाने में देखा शब्द दिल की गहराई तक उतर जाता है और हलचल पैदा वहां जाकर लोग चुप हो गए हैं। करता है। लेकिन जब आपको पढ़ता है तो वह दिमागी खेल वाणी की एक सीमा है। बुद्धि की एक सीमा है। जहां तक बनकर रह जाता है। कृपया बताएं कि ऐसा क्यों होता है? साधन है वहां तक बुद्धि की सीमा है। जहां साध्य आया, बुद्धि की सीमा गई। क्योंकि बुद्धि स्वयं साधन है। बुद्धि खोज का साफ-साफ है। गणित बिलकुल सीधा है। जब तम पढ़ते हो उपाय है। जब पहुंच गए, तो बुद्धि की कोई जरूरत न रही। तब तुम्हीं होते हो, तब मैं नहीं होता। जो तुम पढ़ते हो, वह तुम तो इस सौभाग्य को बढ़ाना! और बढ़ाने की कला यह है कि ही तुम हो। दिमागी खेल बनकर रह जाता है। जब तुम मुझे उसे अकारण ही रहने देना। कोई कारण मत खोजना, समझ में न सनते हो तो कभी-कभी तुम्हारे जाने-अनजाने मैं भी तुम में प्रवेश आए, नासमझी में रस लेना। समझने की जरूरत कहां है! | कर जाता हूं। कम ही तुम ऐसा मौका देते हो। लेकिन समझ कहीं खराब न कर दे, कहीं विश्लेषण खंडित न कर दे! कभी-कभी चूक तुमसे हो जाती है। कभी-कभी बे-भान, तुम उसे राज ही रहने देना। और तब धीरे-धीरे तुम पाओगे कि जो जरा दरवाजा खुला छोड़ देते हो, मैं भीतर आ जाता हूं। वह मिला ही नहीं, वह तुम्हारे भीतर आवास कर इसलिए तम जब मझे सन रहे हो तो बात और है। इसलिए लिया है। वह तुम्हारी आंखों में समा गया। वह तुम्हारी आंखों सत्य सदा कहा गया है, लिखा नहीं गया। लिखा जा नहीं का नूर हो गया। वह तुम्हारे हृदय की धड़कन बन गया। और | सकता। कहना भी बहुत मुश्किल है, लेकिन फिर भी कहा जा ऐसा ही नहीं कि तुम्हें मिला है; अगर तुमने उसे ठीक से पीया तो सकता है, थोड़ा-सा कहा जा सकता है। ऐसी थोड़ी-सी खबर तुम्हारे द्वारा दूसरों पर भी छलकने लगेगा। दी जा सकती है। क्योंकि कहने में कई बातें सम्मिलित हैं, जो हम लिए फिरते हैं आंखों में चमन ऐ बागवां लिखने में खो जाती हैं। जिस तरफ उठी निगाहे-शौक गलशन हो गया। जब तम किताब पढ़ोगे तो किताब तो मर्दा होगी। किताब और जहां आंख उठ जाती है ऐसे आदमी की, वहीं बगीचे हो | तुम्हारे पास कोई वातावरण तो पैदा न कर सकेगी। किताब का जाते हैं, वहीं बगीचे खिल जाते हैं। कोई माहौल तो नहीं होता। किताब तुम्हारे पास कोई जीवंत जिस तरफ देख लोगे, वहीं परमात्मा का फैलाव हो जाएगा। वातावरण निर्मित नहीं कर सकती। वातावरण तुम्हारा होगा; जिस पर तुम्हारी नजर पड़ जाएगी, वह भी चौंक जाएगा। उसमें ही किताब प्रवेश करेगी। जिसके हृदय में तुम गौर से देख लोगे, वहां भी कोई बीज जब तुम मेरे पास हो, जब तुम मुझे सुन रहे हो, यदि सच में तड़फकर टूट पड़ेगा और अंकुर हो जाएगा। सुन रहे हो, तो तुम्हारा वातावरण यहां नहीं है, वातावरण मेरा है, पर सम्हालना, मन की आदतें बड़ी पुरानी हैं। मन कर्ता बनना हवा यहां मेरी है। तुम मेहमान की तरह उसमें हो। और जो चाहता है। वह कहता है, मैंने किया; मेरे कर्मों का फल है, समझदार हैं वे अपने को वहीं रख आते हैं जहां जूते उतारते हैं; देखो! बस वहीं चूक हो जाएगी। जल्दी ही तुम पाओगे, आई | ताकि तुम यहां गड़बड़ी न कर सको; ताकि तुम पूरे मुझ में डूब थी जो झलक, खो गई; दिखा था जो प्रकाश अब दिखाई नहीं जाओ; ताकि निर्वस्त्र, नग्न; ताकि पूरे के पूरे, बिना किसी पड़ता; खुला था जो द्वार, बंद हो गया! आवरण के, अनावृत्त होकर तुम मुझ में डूब जाओ; यह ऐसा न हो पाए। अपने को अपात्र, और भी अपात्र, अपने को थोड़ी-सी देर को जो लहरें मैं तुम्हारे आसपास पैदा करता हूं, ये ना-कुछ, कर्ता नहीं, सिर्फ भोक्ता जानना-परमात्मा का तुम्हें छू लें! बोलना तो बहाना है। बोलना तो बहाना है, ताकि भोक्ता! प्यासा जानना, अधिकारी नहीं। और, और-और वर्षा तुम उलझे रहो सुनने में। यह तो ऐसा है, जैसे छोटा बच्चा होगी, और-और घने मेघ घिरेंगे, और-और तुम तप्त होओगे, उपद्रव करता है, खिलौना दे दिया कि खेल, उलझ गया। बिना महातृप्त होओगे। बोले, तुम मुश्किल में पड़ोगे। मैं न बोलूं तो तुम्हारा मन 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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