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________________ परमात्मा के मंदिर का द्वार : प्रेम प्रतिपल, ऐसे ही प्राणों को प्रेम चाहिए प्रतिपल। लेकिन तुम घर आधार गिर जाता। प्रेम से तो भक्तों ने भगवान को ही खोजा है। के बाहर जाते हो तो भी डरे हो। किसी से प्रेम से बात भी करते हो और तुम कहते हो, प्रेम में समस्या है! तो तुम जरा फिर से विचार तो भीतर एक भय खड़ा है कि कहीं पत्नी को पता न चल जाये। करना। प्रेम में कुछ और मिश्रित होगा। उस मिश्रित के कारण यह कैसा प्रेम हुआ, जो तुम्हारी प्रसन्नता के विपरीत आ रहा है? समस्या खड़ी होगी। उस मिश्रित को गिरा दो। यह कैसा प्रेम हुआ, जो तुम्हें दुखी देखना चाहता है, प्रसन्न नहीं ईर्ष्या मत करो प्रेम के माध्यम से और महत्वाकांक्षा मत करो। देखना चाहता? यह कैसा प्रेम हुआ जो तुम्हें बांधता है, मुक्त और प्रेम के माध्यम से किसी की मालकियत मत करो। और प्रेम नहीं करता? नहीं, यह प्रेम का नाम है। इसके पीछे कुछ और के माध्यम से किसी तरह की गुलामी मत थोपो। प्रेम पर्याप्त है। है-मालकियत है, पजेसिवनेस है, एकाधिकार है। इसमें प्रेम प्रेम से कुछ और मत चाहो। प्रेम अपने में साध्य है; उसे साधन कम, अर्थशास्त्र ज्यादा है। मत बनाओ। फिर तुम देखोगे कि जीवन बड़ी शांति से विकसित पत्नी डरी है कि अगर कहीं तुम किसी दूसरे में उत्सुक हो गये होने लगा। और शांति से ही नहीं, क्योंकि सिर्फ शांति भी थोड़ी तो मेरी व्यवस्था का, धन का, मेरे बच्चों का, घर का क्या होगा! मुर्दा मालूम होती है। तुममें कोई उत्सुकता नहीं है-आर्थिक व्यवस्था का सवाल है। मैं तुम्हें तुम्हारे जीवन को शांति-मात्र का लक्ष्य नहीं देता हूं; अर्थ के नियोजन में गड़बड़ पड़ जायेगी। न तुम पत्नी में उत्सुक | क्योंकि जिस शांति में आनंद की पुलक न हो, वह शांति पर्याप्त हो। कुछ और बातें हैं, जिनके कारण तुम उत्सुक हो। प्रतिष्ठा नहीं। जिसमें आनंद की लहरें भी उठती हों, वही शांति ठीक है। है। समाज में आदर-सम्मान है। लोग कहते हैं कि ऐसा एक नहीं तो शांति का अर्थ केवल इतना होगा कि अशांति नहीं है। पत्नी-व्रती कोई दूसरा देखा नहीं। राम के बाद बस तुम्हीं हुए कुछ होगा नहीं; कुछ नहीं है, इस पर जोर होगा। फिर तुम्हारी हो। तो एक रिस्पेक्टेबिलिटी है, एक सम्मान है। अगर शांति अहिंसा जैसी होगी। फिर तुम्हारी शांति उपद्रव का अभाव यहां-वहां नजर गई, सम्मान बिखर जायेगा। प्रतिष्ठा दांव पर होगी; जैसे कि रास्ता न चलता हो, रेलगाड़ी न गुजरती हो, लगेगी। बाजार में नाम नीचा गिरेगा। दुकान कम चलेगी। सब हवाई जहाज न निकलता हो। या तुम दूर हिमालय पर चले गये गड़बड़ हो जायेगी। हजार और बातें हैं। | तो वहां एक तरह की शांति है, सन्नाटा है। लेकिन उस सन्नाटे में फिर इन्हीं बातों के कारण अड़चन होती है। तो तुम कहते हो, बहुत मूल्य नहीं है क्योंकि वह सिर्फ अभाव है। प्रेम के कारण समस्या खड़ी हो रही है। | फिर एक और शांति है, जो संगीत की तरह है: तुम्हारे चारों अब तक मैने ऐसी कोई घटना नहीं देखी और हजारों लोगों के तरफ वीणा बजने लगे; बाहर-भीतर एक नृत्य होने लगे; शांति चित्त के निरीक्षण से तुमसे कहता हूं कि जब प्रेम ने समस्या खड़ी गाये भी नाचे भी, उमंग से भरी हो, हर्षोन्माद हो तो ही, तो ही की हो, समस्या किसी और चीज ने खड़ी की है। लेकिन ठीक है। बुनियादी भूल तो तुम यह मानकर चलते हो कि वही प्रेम था। तो इतना ही काफी नहीं कि तुम शांत हो जाओ। इसे समझना। फिर जब समस्या खड़ी होती है तो प्रेम पर ही दोष थोप देते हो। जो लोग प्रेम के जीवन को छोड़कर हट जायेंगे, इस खयाल से प्रेम ने तो लोगों को मुक्त किया है। प्रेम ने तो जीवन में स्वाद कि वहां समस्या थी, वे शांत तो हो जायेंगे, लेकिन आनंदित न दिया है परमात्मा का। प्रेम के माध्यम से ही लोग धीरे-धीरे हो पायेंगे। उनकी आंखों में चिंता के बादल तो न होंगे, लेकिन प्रार्थना की तरफ सरके हैं, आकर्षित हुए हैं। प्रार्थना में स्वाद | आनंद-अश्रुओं की वर्षा भी न होगी। उनकी आंखों में तनाव, मिला है अनंत का, अज्ञात का। प्रेम ने बल दिया है। प्रेम ने | बेचैनी, परेशानी, चिंता-इसकी धूल-धवांस तो न होगी; अभियान दिया है, साहस दिया है। लेकिन प्रेम ने समस्या कभी | लेकिन उनकी आंखों में तुम किसी अनंत का नृत्य न देख भी नहीं दी। | पाओगे। उनकी आंखें झरोखे न बनेंगी परमात्मा की। उनकी अगर प्रेम समस्या देता होता तो जीसस कैसे कहते कि आंखें रूखी-रूखी, सूखी-सूखी, मुर्दा-मुर्दा होंगी। परमात्मा प्रेम है? तो तो फिर भक्ति-शास्त्र का सारा का सारा जीवन को शांति का लक्ष्य मत देना। शांति जरूरी है, काफी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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