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________________ RE A जिन सूत्र भागः1AREERPREEEEEEE नहीं। जीवन और बड़े द्वार खोलता है आनंद के। आनंद के पीछे जब तुम अकेले हो तो तुम बेईमान नहीं हो सकते, न ईमानदार शांति तो अनिवार्य होती है, लेकिन शांति के साथ जरूरी रूप से हो सकते हो; क्योंकि अकेले में क्या बेईमानी और क्या आनंद नहीं होता। तुम ऐसा मत सोचना कि बीमार न हुए तो ईमानदारी! दूसरा चाहिए। तो अकेले आदमी को ऐसा भ्रम हो स्वस्थ हो गये। बीमार न होना स्वस्थ होने के लिए जरूरी है, सकता है कि मैं ईमानदार हूं। इसलिए तो लोग जंगलों में भाग लेकिन काफी नहीं। क्योंकि यह भी हो सकता है कि बीमार तुम गये, गुफाओं में छिप गये। नहीं हो, लेकिन स्वास्थ्य की कोई पुलक नहीं है। स्वास्थ्य बड़ी अकेले में बड़ी सुविधा है; क्योंकि न बेईमानी है, तो साफ हो अलग बात है। जब कभी तुम स्वस्थ हुए हो, तो तुम्हें पता है कि गया कि ईमानदार हैं। लोगों ने अभाव को परिभाषा बना लिया। वह बीमारी न होने का ही नाम नहीं है, कुछ विधायक ऊर्जा लेकिन तुम ईमानदार भी नहीं हो जब तुम अकेले में हो। क्योंकि तुम्हारे भीतर तरंगें लेती है। यह जरूरी है कि बीमारी न हो तो अकेले में किसके साथ ईमानदारी, कैसी ईमानदारी? स्वास्थ्य के उतरने में सहायता आती है। लेकिन जिसने यह आओ वापस संबंधों में करीब लोगों के। वहां तत्क्षण पता समझ लिया कि बीमारियों का अभाव ही स्वास्थ्य है, उसने चलेगा, तुम ईमानदार हो कि बेईमान; तुम झूठ बोलते हो कि जीवन के संबंध में बड़ी भूल कर ली। सच। यह अकेले में कैसे पता चलेगा? किससे बोलोगे? तुम तो मैं तुमसे कहंगा, प्रेम पर फिर से विचार करना, ध्यान करुणावान हो या कठोर, यह कैसे पता चलेगा? करीब आओ! करना। और प्रेम से भयभीत मत होना। भय है। उसी भय के किसी जीवन को निकट आने दो। कारण बहुत लोग भाग गये हैं। भय है। . और तत्क्षण तुम्हारे भीतर कुछ घटने लगेगा, जिससे साफ और भय क्या है? होगा कि तुम में कठोरता है या करुणा है। जब भी तुम किसी व्यक्ति के प्रेम में उतरते हो, दूसरा व्यक्ति अब तुम देखो, जैन मुनि हैं! अहिंसा और करुणा उनके जीवन तुम्हारे लिए दर्पण बन जाता है और तुम्हारा चेहरा उसमें दिखाई | का मूल आधार होना चाहिए, लेकिन है नहीं। क्योंकि जब तुम पड़ने लगता है। दर्पण से लोग डरते हैं; क्योंकि दर्पण में वे बातें अपने को जीवन से तोड़ लोगे तो करुणा का पता कैसे चलेगा? दिखाई पड़ने लगती हैं जो तुम नहीं देखना चाहते। अकेले थे तो किस हिसाब से तुम्हारे भीतर करुणा प्रगट होगी? कोई उपाय क्रोध का पता न चलता था; किसी के प्रेम में पड़े तो क्रोध का नहीं है। जैन मुनि रास्ते से गुजरता हो तो अगर एक भिखमंगा पता चलेगा। दूसरा दर्पण बन गया। और दूसरा चुनौती बन उसके सामने हाथ फैला दे, तो उसके पास देने को भी कुछ नहीं गया। और चारों तरफ स्थितियां खड़ी होंगी, जिनमें तुम्हारा क्रोध है। तो तुम यह तो न कहोगे, यह कृपण है। तुम कहोगे, यह तो प्रगट होने लगेगा, तुम्हारे धोखे जाहिर होने लगेंगे। तुम्हारे झूठे त्यागी है, इसके पास कुछ है ही नहीं; देने को ही कुछ नहीं है तो चेहरे कभी-कभी खिसक जायेंगे और गिर जायेंगे। कुछ ऐसी देने का सवाल नहीं उठता। लेकिन क्या जरूरी है कि इसके पास स्थितियां बनने लगेंगी जिसमें तुम निर्वस्त्र हो जाओगे। तुम्हारे देने को कुछ नहीं है, लेकिन यह देना चाहता था? कैसे पता भीतर की नग्नता झांकने लगेगी। डर लगता है! चलेगा कि देना चाहता था? कहीं ऐसा तो नहीं है इस त्याग में अकेले में आदमी अपने को ढांककर बैठा रहता है। संबंध बड़े कृपणता ही छिपी हो? सूचक होते हैं। संबंधों में ही पता चलता है तुम कौन हो। क्योंकि अकसर मैंने देखा है, कुपण त्यागी हो जाते हैं। त्याग से दूसरे की आंख में तुम्हारी जो छवि बनती है, उसी को तो तुम देख बढ़िया उपाय नहीं है कृपणता को छिपाने का। क्योंकि जब कुछ पाते हो; खद की तो कोई छवि देखने का सीधा उपाय नहीं है। है ही नहीं तो देने का सवाल ही समाप्त हो गया। जैन मुनि से तुम तुम सीधे तो अपने को देख ही न सकोगे। देखने के लिए दर्पण अपेक्षा तो न रखोगे कि गरीब को कुछ दे, भिखमंगे को कुछ दे, चाहिए। और दर्पण तो मुर्दा है-संबंधों का दर्पण जीवंत है। बीमार को कुछ दे। देने की छोड़ो, तुम यह भी अपेक्षा नहीं रखते जब दूसरे की आंख में तुम्हारी छवि बनती है, तब तुम्हारा सत्य कि बीमार का पैर दबा दे या बीमार को पानी भरकर ला दे। प्रगट होने लगता है। इसे थोड़ा समझो। क्योंकि जैन मुनि कहता है, उसमें तो राग है। ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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