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________________ 30 जिन सूत्र भाग: 1 बाहर के शोरगुल से शून्य हो जाओ। और अभी तो तुम जो भी जानते हो, सब बाहर का शोरगुल है। इसलिए कहते हैं, तुम जो हो उससे बिलकुल शून्य हो जाओ ! अभी तो तुमने व्यर्थ को ही जोड़-जोड़कर अपनी प्रतिमा बनायी है। अभी तो तुमने कागज-पत्तर को जोड़-जोड़कर अपनी प्रतिमा बनायी है। अभी तो शाश्वत का तुम्हारी प्रतिमा से कोई भी संबंध नहीं है। अभी तो तुम कहते हो, यह मेरा नाम है, यह मेरी जाति है, यह मेरा धर्म है, यह मेरा घर है; यह मेरा कुल है, यह मेरा देश है, यह मैं हिंदू हूं कि जैन हूं, कि मुसलमान हूं कि ईसाई हूं, कि मैं गरीब हूं कि अमीर हूं, कि शिक्षित कि अशिक्षित, कि गोरा कि काला, कि सम्मानित कि अपमानित, कि साधु कि असाधु - अभी तो तुमने जो भी जोड़ा है, बाहर से जोड़ा है। यह तो दूसरों ने जो कहा है, उसको ही तुमने इकट्ठा कर लिया है। इसलिए कहते हैं, तुम अपने से खाली हो जाओ। यह सब कूड़ा-कर्कट हटाओ। और घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं । तुम बेफिक्र कूड़ा-कर्कट हटाओ, क्योंकि जो कूड़ा-कर्कट नहीं है, उसे तुम हटाओ भी, तो भी हटा न सकोगे। इसलिए भय की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए डर-डरकर हटाने की जरूरत नहीं कि कहीं ऐसा न हो कि हीरे खो जाएं। वे हीरे कुछ ऐसे हैं कि खो ही नहीं सकते। इसलिए तुम आग भी लगा दो इस मकान में, तो भी कुछ बिगड़ेगा नहीं । तुम खालिस, साबित निकल आओगे; क्योंकि तुम्हारा स्वभाव जलता नहीं। I नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः ! न आग उसे जलाती, न शस्त्र उसे छेदते हैं। अमरत्व तुम्हारा कहां मिटती है ? स्वभाव है। लेकिन अनुयायी की भाषा है, वह घबड़ाता है। वह कहता है, इससे तो संसार में बने ही रहे; चलो झूठे ही सही, कुछ तो हैं सुख! मान्यता ही सही, मिलते नहीं, आशा ही बंधाते हैं, कुछ तो हैं! दुख हैं, चलो कोई हर्जा नहीं, हम तो हैं ! कांटे भी चुभते हैं, चलो सह लेंगे, जूते पहन लेंगे, दवा खोज लेंगे, मलहम कर लेंगे, ऐसे रास्तों पर न जाएंगे जहां कांटे हैं - लेकिन कम से कम हम तो हैं! लेकिन इस 'हम' को करोगे क्या? इस अहं को करोगे क्या ? मुश्किल नहीं है मौत, आजमाओ तो सही मर जाने से पहले क्यों मरे जाते हो? Jain Education International महावीर का सारा शिक्षण मृत्यु का शिक्षण है— शून्य होने की कला है। पर शून्य होने की कला ही पूर्ण होने की कला है। चाहे दोनों में से कुछ भी शब्द चुन लो; लेकिन मैं कहूंगा, तुम शून्य ही चुनना । पूर्ण को चुना कि तुम चूके। क्योंकि पूर्ण के साथ लोभ आया । तुमने कहा, 'अरे! तो हम पूर्ण हो जाएंगे ! गजब ! ' पकड़ा अहंकार ने रस ! वही अहंकार जिसको छुड़ाना है, छूटना है जिससे, पूर्ण होने की आकांक्षा से भर गया ! फिर तुम्हारे गुब्बारे में और हवा भरने लगेगी। फिर अहंकार और बड़ा होने लगेगा। पूर्ण होने का नशा छा गया ! इसलिए ज्ञानियों ने शून्य की भाषा कही है - जानते हुए कि अंतिमतः पूर्ण घटता है लेकिन तुमसे कहना उचित नहीं । तुमसे कहना खतरनाक है 1 महावीर ने जो कहा, उसको तुमने वैसा ही नहीं सुना है जैसा उन्होंने कहा था। अन्यथा ये दुर्दिन, यह दुर्दशा, यह दारिद्र, यह दीनता न घटती। इसलिए जो लोग ऐसा लांछन लगाते हैं, ऐसा विवाद खड़ा करते हैं, उनके विवाद में तथ्य तो है; लेकिन तथ्य का इशारा तुम्हारी तरफ है, उन्हीं की तरफ है। तथ्य का इशारा महावीर की तरफ नहीं है। काश ! तुम महावीर को समझते तो इस देश में जैसा धन्यभाग फलता, इस देश में जैसे महिमावान फूलों का जमघट जुड़ जाता, वैसा कहीं भी नहीं हो पाता। अगर महावीर को समझे होते तो तुम्हारे भीतर जो अपरिसीम है, वह प्रगट होता । तुम्हारे चारों तरफ प्रकाश - मंडल निर्मित होता । न भी कुछ तुम्हारे पास होता तो भी तुम समृद्ध होते। और अभी तो हालत ऐसी है कि सब कुछ भी तुम्हारे पास हो, तो भी दरिद्रता तुमने धनी आदमियों की दरिद्रता नहीं देखी, तो फिर तुमने कुछ भी नहीं देखा ! तुमने शक्तिशालियों की शक्तिहीनता नहीं देखी ! तुमने पदधारियों की नपुंसकता नहीं देखी ! अकड़ के झंडों के पीछे कमजोरी के सिवाय और क्या है? जितने बड़े झंडे हाथ में हैं, जितने ऊंचे डंडे हाथ में हैं, उतनी ही हीनता भीतर छिपी है। हीनता न हो तो कौन डंडे और झंडे लेकर यात्राएं करता है! क्या जरूरत है ? किसको दिखाना है ? जिसको अपना स्वरूप दिख गया, उसको दिखाने को अब कुछ भी न बचा। फिर तुम जिसे जिंदगी कहते हो, और कहते हो जीवन का स्वीकार, उसमें जिंदगी जैसा क्या है ? था ख्वाब में खयाल को तुझसे मुआमला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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