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________________ निजी है, वैयक्तिक है। एक-एक जाता है उसकी तरफ, अकेला-अकेला जाता है। और जब भी कोई जाता है तो भीड़ को छोड़कर जाना पड़ता है; क्योंकि भीड़ चलती है राजपथ पर, चौड़े सीमेंट-पटे पथ पर, सुरक्षित और परमात्मा बड़ा जंगली है। परमात्मा अभी भी सभ्य नहीं हुआ, सौभाग्य है कि सभ्य नहीं हुआ। परमात्मा अभी भी सरल और प्राकृतिक है। तो जिसे परमात्मा को खोजना है उसे सरल और प्राकृतिक होना पड़ता है। उसे उतरना पड़ता है राजपथ से, अपनी पगडंडी खोजनी पड़ती है झाड़-झंखाड़ में, कांटों भरे रास्ते पर । न कोई मार्गदर्शक, न कोई हाथ में नक्शा, न कोई किताब - अकेले, सिर्फ जीवन पर भरोसा ! मैं तुम्हें जीवन पर भरोसा दे रहा हूं और सारे भरोसे छीन रहा हूं। तुम्हारे और सारे भरोसों ने तुम्हें नपुंसक बना दिया है। तुम्हारा आत्मविश्वास खो गया है। जीवन पर तुम्हारी श्रद्धा खो गई है। मैं कहता हूं, एक ही श्रद्धा करने योग्य है और वह जीवन की श्रद्धा है। तुम यह मानकर चलो कि जिसने तुम्हें जन्माया है, जो | तुम्हारे भीतर जन्मा है, वह तुम्हें मंजिल की तरफ भी ले जाएगा। तुम सुनो उसकी, गुनो उसकी। डरो मत। भीड़ को मत पकड़ो। जो तुम्हें यहां तक ले आया है, वह वहां भी पहुंचा देगा। लेकिन डर के कारण हम भीड़ से चिपटते हैं। 'अगर तुम हिंदू नहीं हो, जैन नहीं हो, मुसलमान नहीं हो तो तुम्हें डर लगेगा, तुम हो कौन ! कोई सहारा चाहिए, कोई नाम-पट चाहिए, कोई व्याख्या- परिभाषा चाहिए। हिंदू होने से लगता है, मैं कुछ हूं। मुसलमान होने से लगता है, मैं कुछ हूं। शूद्र, ब्राह्मण, क्षत्रिय होने से लगता है, मैं कुछ हूं । त्याग किया, मंदिर गए, पूजा की - लगता है, मैं कुछ हूं। मैं तुम्हें यहां सिखा रहा हूं कि तुम कुछ भी नहीं हो, परमात्मा है। तुम हो ही नहीं, तुम जगह दो। तुम जगह खाली करो। तुम सिंहासन पर बहुत बैठ चुके हो, उतरो । तो मेरी पुकार तो केवल उनके लिए है, जो अतिदुस्साहसी होंगे। धर्म आत्यंतिक साहस है — कमजोरों का रास्ता नहीं। इसलिए कमजोर धर्म के नाम पर भी राजनीति चलाते हैं। हिंदू हैं, मुसलमान हैं, जैन हैं, ईसाई हैं, ये सब राजनीतियां हैं। नाम धर्म के पताकाएं धर्म की हैं—भीतर राजनीति है। चर्च हैं, मंदिर हैं, पुजारी हैं, Jain Education International जिंदगी नाम है रवानी का पंडे-पुरोहित हैं - बातें धर्म की हैं; भीतर अगर थोड़ा गहरे उतरोगे, राजनीति पाओगे। संसार की दौड़ है, पद की, प्रतिष्ठा की, संपदा की, साम्राज्य की । ईसाइयत चाहती है, सारे संसार पर छा जाए। परमात्मा पाने में उतना रस नहीं है, जितना संसार पर छाने में रस है । इस्लाम चाहता है, सारी दुनिया को मुसलमान बना ले। तलवार के बल तो तलवार के बल सही। चाहे काटने पड़ें लोग, लेकिन उनके हित में उन्हें काटना ही पड़ेगा ! जलाने पड़ें गांव, बस्तियां उजाड़नी पड़ें; लेकिन आदमी को मुसलमान बनाना ही पड़ेगा ! यह क्या पागलपन है ? आदमी आदमी होने से पर्याप्त है। उसे हिंदू और मुसलमान और ईसाई बनाने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन सब राजनीतियां हैं। इधर हिंदू परेशान रहते हैं। मेरे पास आ जाते हैं लोग। वे कहते हैं, 'आप कुछ करिए! ईसाई मिशनरी हिंदुओं को ईसाई बना रहे हैं।' मैं उनसे कहता हूं, अगर वे जितने अच्छे आदमी पहले थे उससे अच्छे आदमी ईसाई होकर हो रहे हैं, तो क्या हर्जा है ? हां, अगर जैसे पहले थे, उससे बुरे हो रहे हैं तो कुछ करें। अगर वे वैसे के वैसे ही रह रहे हैं, जैसे हिंदू थे वैसे ईसाई होकर रहेंगे, तो क्या चिंता है? होने दो! इससे क्या फर्क पड़ता है ? नहीं, लेकिन वे कहते हैं, फर्क पड़ता है, हमारी संख्या कम होती जाती है। संख्या कम होती है तो राजनीति में बल कम होत चला जाता है। संख्या कम होती है तो मत कम हो जाते हैं। अगर ऐसा ही होता रहा तो ईसाइयों का राज्य हो जाएगा। गौर से देखो तो धर्म के भीतर तुम राजनीति छुपी पाओगे। हिंदू कहता है, हिंदू धर्म को बचाना है। धर्म से कुछ लेना देना नहीं-हिंदू राजनीति को बचाना है! ईसाई कहता है, ईसाइयत को फैलाना है । ईसाइयत से क्या लेना देना है? ईसा से क्या ईसाइयत का संबंध रहा है ! वह यह कह रहा है, अपनी राजनीति को फैलाना है, अपने साम्राज्य को, शक्ति को फैलाना है । कोई भी बहाना हो, आदमी राजनीति में डूबा है। ध्यान रखना, जहां तुम्हारा भीड़ में रस हुआ, वहां राजनीति आई । तुम अपने में रस लो । धर्म नितांत वैयक्तिक घटना है। परमात्मा घटेगा तुम्हारे अंतर्तम में, तुम्हारे एकांत में। किसी को कानों कान खबर भी न होगी। तुम्हारी पत्नी भी पास होगी, उसे भी पता न चलेगा। तुम्हारे बेटे को पता न चलेगा, जो तुम्हारा ही For Private & Personal Use Only 209 www.jainelibrary.org.
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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