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________________ जिन सूत्र भाग खोजने की यात्रा पर निकले। भीड़ समझौतावादी है। भीड़ जब लोग विरोध करते हैं तो विरोध में उनका रस नहीं है, कहती है, हम धार्मिक हैं। लेकिन धर्म ऐसा मरा लाश की तरह | आत्मरक्षा कर रहे हैं वे। तुम उन पर दया करना। उनका कि उससे दुर्गंध उठती है, कोई सुगंध नहीं उठती। आक्रमण, उनकी आत्मरक्षा का उपाय है। वे कहेंगे यह व्यक्ति निश्चित ही मैं कहता हूं, इस लाश को फेंको। क्योंकि इस धर्म भ्रष्ट करता है। ऐसा कहेंगे, ऐसा मानेंगे, तो मेरे पास आने लाश के कारण तुम मरे जा रहे हो। लाश के साथ रहोगे तो से बच सकेंगे। ऐसा न कहेंगे, न मानेंगे तो फिर किसी दिन मेरे मरोगे। जो जिसके साथ रहेगा, वैसा हो जाता है। अगर तुम पास आना पड़े। वह सौदा करने की अभी उनकी तैयारी नहीं है। शास्त्र के साथ रहोगे तो धीरे-धीरे शब्द ही शब्द रह जायेंगे, सत्य | तो पहली तो बात, वे ठीक ही कहते हैं। मैंने तुम्हें धर्म की नई खो जाएगा। अगर तुम अतीत की परंपरा के पीछे ही चलते परिभाषा देनी शुरू की है। तुम उसे समझो। मैं तुम्हें हिंदू नहीं रहोगे, तुम्हारी आंखें धीरे-धीरे अंधी हो जाएंगी; उनके उपयोग बना रहा हूं, मुसलमान नहीं बना रहा हूं, ईसाई नहीं बना रहा की जरूरत ही न होगी। तुम सदा किसी के पीछे चलोगे। हूं-मैं तुम्हें सिर्फ धार्मिक बना रहा हूं। मैं तुम्हें कोई मंदिर, जो अपने पैरों से चलता है, जो खुद खोजता है, जो खुद खोजने मस्जिद नहीं दे रहा हूं। मैं तुम्हें आत्म-रूपांतरण की प्रक्रिया दे | का खतरा लेता है, उसकी आंखें सजग होती हैं। वह जागने | रहा हूं। मैं तुम्हें परमात्मा से सीधा जोड़ना चाहता हूं। बीच में लगता है। प्रतिपल चुनौती होती है। उसी चुनौती में आविष्कार कोई मध्यस्थ नहीं दे रहा हूं। क्योंकि मैं देखता हूं कि मध्यस्थ होता है। पहुंचानेवाले तो सिद्ध नहीं होते, रोकनेवाले सिद्ध हो जाते हैं। जो परिवार के लोग, पास-पड़ोस के लोग, तुम्हारे मित्र, | जिनको तुम बीच में ले लेते हो, वे ही दीवारें बन जाते हैं। प्रियजन, जिसे धर्म कहते हैं, वह संप्रदाय है— हिंदू, मुसलमान, | मैं तुम्हें ज्ञानी नहीं बना रहा हूं, क्योंकि सब ज्ञान अहंकार को ईसाई, जैन। मैं जिस धर्म की बात कर रहा हूं, वह न तो हिंदू है, भर देते हैं। मैं तुम्हें त्यागी नहीं बना रहा हूं, क्योंकि त्याग भी बड़े न मुसलमान है, न ईसाई है, न जैन है। मैं उस धर्म की बात कर सूक्ष्म अहंकार को जन्माता है। मैं तुम्हें सरल, सीधा, साफ रहा हूं, उस अंगारे की, जो बुझकर कभी ईसाई हो गया, बुझकर प्रामाणिक बना रहा हूं। मैं तुम से कह रहा हूं, आदमी हो जाना कभी हिंदू हो गया, बुझकर कभी जैन हो गया। लेकिन ये बुझे काफी है। अगर तुम आदमी ही हो जाओ तो परमात्मा आ जाए। हुए अंगारे हैं, राख के ढेर हैं। इतना काफी है कि तुम सरल हो जाओ, सीधे-साफ हो जाओ। मैं उस धर्म की बात कर रहा हूं, जो जीवंत है। लेकिन जीते हुए | तुम जीवन जैसा तुम्हें मिला है, उसे अंगीकार कर लो। और अंगारे को हाथ पर लेना, जीते हुए अंगारे को हृदय पर लेना तो जीवन तुम्हें जो अनुभव देने के लिए द्वार खोला है, उन अनुभवों थोड़े से दुस्साहसियों का काम है। भीड़ वैसा न कर सकेगी। तुम से गुजर जाओ, क्योंकि उससे बड़ा कोई और विश्वविद्यालय भीड़ से वैसी अपेक्षा भी न करना। नहीं है। वे ठीक ही कहते हैं। जब वे ऐसा कहते हैं तो वे अपनी रक्षा सबसे बड़ा विश्वविद्यालय अनुभव है कर रहे हैं। तुम्हारे कारण खतरा पैदा हो गया। तुम्हारे कारण | पर इसकी देनी पड़ती है फीस बड़ी। उनके जीवन में पहली दफा खलल पड़ा। तम्हारे कारण तरंगें लोग सस्ता अनुभव चाहते हैं, उधार चाहते हैं, कोई दे दे, खुद पैदा हुई हैं, उन्हें सोचने को मजबूर होना पड़ा है। | न लेना पड़े, खुद न गुजरना पड़े आग से। लेकिन न तो तुम्हारे वे सब तरह से झंझट करेंगे। वे सब तरह से तुम्हें गलत सिद्ध लिए कोई जी सकता है, न तुम्हारे लिए कोई प्रेम कर सकता है, न करने की कोशिश करेंगे। तुम्हें गलत सिद्ध करने में उनकी तुम्हारी जगह कोई मर सकता है तो तुम्हारी जगह कोई सत्य उत्सुकता नहीं है; उनकी उत्सुकता यह है कि हमारी सुरक्षा तो का अनुभव कैसे ले सकता है? मत छीनो। हम तो अब तक सोचते थे कि शास्त्र में धर्म है, तुम निजी है जीवन में जो भी श्रेष्ठ है। संप्रदाय का अर्थ होता है: कहते हो नहीं है, तो तुम हमारे पैर के नीचे की भूमि खींचे ले रहे भीड़। संप्रदाय का अर्थ होता है : संगठन। परमात्मा से भीड़ का हो। हमारा क्या होगा?' और संगठन का कुछ लेना-देना नहीं। परमात्मा से संबंध हमारा 208 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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