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________________ जिन सत्र भाग: 1 - जब देखिए कुछ और ही आलम है तुम्हारा लौटने लगे तो वह कहने लगा, 'ऐसा आशीर्वाद दें कि एक दफा हर बार अजब रंग है, हर बार अजब रूप बंबई देखनी है!' मगर ये रूप सब एक के ही हैं। यह यात्रा एक ही है। 'तू बंबई देखकर क्या करेगा?' ईसाइयत कहती है, अदम को परमात्मा ने स्वर्ग से बहिष्कृत उसने कहा, 'यहां मन नहीं लगता। और बंबई बिना देखे मर किया। निकाला स्वर्ग के राज्य से; क्योंकि आज्ञा उसने न मानी | गए तो एक आस रह जाएगी।' । थी, अनाज्ञाकारी था। फिर जीसस ने आज्ञा मानी। जीसस जो मेरे साथ आए थे, वे बंबई के मित्र थे। वे चौंके। वे आए वापिस समारोहपूर्वक स्वर्ग में प्रविष्ट हुए। जिसे अदम में थे कश्मीर। वे आए थे हिमालय की शरण में। और जो हिमालय निकाला था, वही जीसस में लौटा। अदम पहला आदमी है, की शरण में पैदा हुआ था, वह बंबई आना चाह रहा था। जीसस आखिरी आदमी हैं। अदम संसार की तरफ यात्रा तुम अगर अपने मन को भी पहचानोगे तो यही पाओगे। है-धारा। जीसस संसार से विपरीत यात्रा है-राधा। परमात्मा की कथा वस्तुतः तुम्हारी ही कथा है। कोई परमात्मा यहूदियों की कथाएं थोड़ी कठोर हैं। पूरब में लोग ज्यादा | और तो नहीं। तुम कोई और तो नहीं। परमात्मा की कथा शुद्ध कोमल भाषा बोलते हैं। चेतना के स्वभाव की कथा है। ठीक ही कहते हैं वेद, 'ऊब यहदी कहते हैं, परमात्मा ने बहिष्कृत किया अदम को। हम गया, अकेला था। कहा, बहत को रचं । उसने बहत रचे।' ऐसा नहीं कहते। हम कहते हैं, स एकाकी न रेमे। वह अकेला | महावीर कहते हैं, अब हम बहुत से ऊब गए; अब घर वापिस था। एकोऽहं बहुस्याम। उसने कहा, बहुत को रचूं। बहिष्कृत | जाने की आकांक्षा पैदा होती है। नहीं हुआ, अवतरित हुआ। आया, मर्जी से आया। इसलिए महावीर के सूत्रों में लौटती यात्रा के सूत्र हैं। निश्चित और इसे भी समझ लेना जरूरी है। तुम जहां हो, अपनी मर्जी | ही वे भिन्न होंगे। रस की बात न होगी यहां। यहां विरसता की से हो। संसार में हो तो अपनी मर्जी से हो। तुम्हारे भीतर के | बात होगी। यहां कामना की, वासना की बात न होगी। यहां परमात्मा ने यही चुना। कुछ परेशान होने की बात नहीं। बेमर्जी | त्याग, वैराग्य की बात होगी। यहां राग नहीं, वीतरागता लक्ष्य से तुम नहीं हो। अपने ही कारण हो। अपनी ही आकांक्षा से हो। होगा। मगर ध्यान रखना, राग ही वीतरागता बनता है। वही है और यह बड़े सौभाग्य की बात है कि बेमर्जी से नहीं हो। क्योंकि ऊर्जा, जो सागर की तरफ जाती है। वही है ऊर्जा, जो गंगोत्री की जिस दिन चाहो, उसी दिन घर का द्वार खुला है, लौट आ सकते | तरफ जाती है। ऊर्जा वही है। पर महावीर का मार्ग थोड़ा कठिन हो। जब तक चाहो, जा सकते हो दूर। जिस दिन निर्णय करोगे, | है, क्योंकि धारा के विपरीत लड़ना होगा। उसी दिन लौटना शुरू हो जाएगा। किश्ती को भंवर में घिरने दे, मौजों के थपेड़े सहने दे ब्राह्मण-संस्कृति परमात्मा के फैलाव की कथा है। जिंदों में अगर जीना है तुझे, तूफान की हलचल रहने दे श्रमण-संस्कृति परमात्मा के घर लौटने की कथा है। तो निश्चित धारे के मुआफिक बहना क्या, तौहीने-दस्तो-बाजू है ही, जो अकेले में थक गया था, वह भीड़ में भी थक ही जाएगा। परवर्द-ए-तूफां किश्ती को धारे के मुखालिफ बहने दे! तुमने अपने भीतर भी देखा! यही होता है। बाजार में थक जाते किश्ती को भंवर में घिरने दे! हो, मंदिर की आकांक्षा पैदा होती है। भीड़ में ऊब जाते हो, महावीर कहते हैं, संघर्ष न हो तो सत्य आविर्भूत न होगा। जैसे बस्ती से ऊब जाते हो, हिमालय जाने की आकांक्षा पैदा होती है। सागर के मंथन से अमृत निकला, ऐसे जीवन के मंथन से सत्य हिमालय पर जो बैठे हैं, एकांत में, उनके मन में बाजार आकर्षण निकलता है। सत्य कोई वस्तु थोड़े ही है कि कहीं रखी है, तुम निर्मित करता है। गए और उठा ली, कि खरीद ली, कि पूजा की, प्रार्थना की और मैं कुछ मित्रों को लेकर कश्मीर की यात्रा पर था। कश्मीर के मांग ली! सत्य तो तुम्हारे जीवन का परिष्कार है। सत्य तो तुम्हारे वे बडा आनंद अनभव कर रहे थे। डल | ही होने का शद्धतम ढंग है। सत्य कोई संज्ञा नहीं है, क्रिया है। झील पर उनके साथ मैं ठहरा था। हमारा जो माझी था, जब हम सत्य कोई वस्तु नहीं है, भाव है। तो तुम जितने संघर्ष में उतरोगे, Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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