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________________ - भी न पड़े। पर दोनों ही रास्तों से वहीं पहुंचना हो जाता है। जो समर्पण से बहते हैं, जो धारा बनते हैं, आखिर सागर से बादलों पर चढ़ कर गंगोत्री पहुंच ही जाते हैं। उन्होंने सुगम मार्ग चुना। नारद की यात्रा बड़ी सरल है। महावीर की यात्रा बड़ी कठिन | है | इसीलिए तो 'महावीर' ! वह योद्धा का मार्ग है, प्रेमी का नहीं; संघर्ष का । लेकिन कुछ हैं जिनके लिए वही स्वाभाविक है। इसलिए अपने भीतर देखना। इसकी फिक्र मत करना कि किस घर में पैदा हुए। वह तो सांयोगिक है। जैन घर में पैदा हुए कि हिंदू घर में कि मुसलमान घर में कि ईसाई घर में, वह तो सांयोगिक है। अपने जीवन की अंतर्दशा समझना । योद्धा बनने की रुझान है ? योद्धा बनने की तरफ सहज प्रवाह है ? योद्धा होने में लगता है स्वरूप खिलेगा ? तो योद्धा बनना ! तो फिर महावीर के पीछे चलना। और लगे कि लड़ना अपने से न होगा, वह अपनी भाषा नहीं है, लगे कि समर्पण ही उचित है, तो फिर नारद को चुन लेना । नारद एक छोर हैं, महावीर दूसरे छोर हैं। और कहीं न कहीं नारद और महावीर के बीच सारे महापुरुष हैं - बुद्ध हों, कृष्ण हों, राम हों, मुहम्मद हों, जरथुस्त्र हों, जीसस हों - महावीर और नारद के बीच कहीं न कहीं ! लेकिन महावीर और नारद परम छोर हैं। और इसलिए जैसा नारद ने भक्ति को उसकी परम प्रगाढ़ता में प्रगट किया है, शरणागति को आखिरी रूप दिया, आखिरी परिभाषा दे दी - उसके पार परिष्कार संभव नहीं है— वैसे महावीर ने संघर्ष को आखिरी रूप दिया है। अब उसको और ऊपर उठाने का कोई उपाय नहीं है। महावीर ने आखिरी बात कह दी है संघर्ष के रास्ते पर । चुनाव तुम्हें यह नहीं करना है कि कौन ठीक है। दोनों ठीक हैं। चुनाव तुम्हें यह करना है कि कौन हमें जंचता है। फूल, गुल, शम्मोकमर सारे ही थे पर हमें उनमें तुम्हीं भाए बहुत । -इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कितने फूल खिले ! फूल, गुल, शम्मोकमर सारे ही थे ! चंपा है, चमेली है, जूही है, केतकी है, गुलाब है, कमल है। फूल, गुल, शम्मोकमर सारे ही थे पर हमें उनमें तुम्हीं भाए बहुत ! Jain Education International जाए, तुम्हारे बेटे को गुलाब भा जाए, तो तुम्हें भा जाए, वही तुम्हारे लिए मार्ग है। जिन शासन की आधारशिला : संकल्प लोग अकसर उलटा करते हैं। लोग सोचते हैं, 'कौन ठीक ?' गलत प्रश्न उठा लिया। 'महावीर ठीक कि नारद ठीक ? ' - तुमने प्रश्न ही गलत पूछ लिया । यही पूछो, कौन जंचता है। ठीक गलत, तुम कैसे निर्णय करोगे ? उस परम की बातें, वे ही जानें जो परम को उपलब्ध हुए हैं। तुम तो इतना ही तय कर लो, कौन-सा तुमको जंचता है, कौन-सा तुम्हारे मन को भा जाता है। फिर तुम्हें जो भा जाए वही तुम्हारा फूल है। तुम्हें कमल भा ठगे रह जाओगे । झगड़ा मत करना। जो मैं, अगर मुझसे पूछो, तो कहूंगा, सभी ठीक। लेकिन सभी ठीक से तो हल न होगा। क्योंकि सभी रास्तों पर तो तुम चल न सकोगे। द्वार तो तुम्हें चुनना ही होगा। सभी द्वार उसी के मंदिर के हैं। लेकिन फिर भी तुम एक ही द्वार से गुजर सकोगे, सभी द्वारों से न गुजर सकोगे। सभी द्वारों से गुजरने में तो तुम बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे । एक पैर एक द्वार में डाल दोगे, एक हाथ दूसरे द्वार में डाल दोगे - तुम अटक जाओगे। एक से ज्यादा द्वार चुन लिये तो द्वार पहुंचाएंगे न, अटकाएंगे। तुम अपना द्वार चुन लेना। तुम अपना फूल चुन लेना। तुम अपनी रुझान को पहचानो । तुम्हें जो भा जाए वही सत्य है । जो तुम्हारे आ जाए वही सत्य है। जो द्वार तुम्हें पहुंचा दे वही गुरुद्वारा है। पहुंचकर तो तुम भी पाओगे, अरे ! सभी द्वार यहीं आ गए। पहुंचकर तो तुम मिलोगे उनसे जो दूसरे द्वारों से आते थे और दुश्मन मालूम पड़ते थे। क्योंकि मैंने तो उस मंदिर में महावीर और नारद को आलिंगन करते देखा है। लेकिन तुम चुन लेना । तुम्हारा चुनाव यह न हो कि कौन ठीक है । वह तो बात ही अभद्र हो गई। तुम्हारा चुनाव तो बस इतना हो : फूल, गुल, शम्मोकमर सारे ही थे पर हमें उनमें तुम्हीं भाए बहुत ! जब देखिए कुछ और ही आलम है तुम्हारा हर बार अजब रंग है, हर बार अजब रूप ! बहुत रूपों में सत्य प्रगट हुआ है। बहुत रंगों में, बहुत ढंगों में प्रगट हुआ है। और हर बार जब प्रगट हुआ है तो अजब ही! तो बड़ा आश्चर्यचकित करनेवाला है, अवाक कर जानेवाला है। नारद को समझोगे, अवाक रह जाओगे। महावीर को समझोगे, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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