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________________ जितने मथे जाओगे, जितने जलोगे, जितने तूफानों की टक्कर लोगे, उतना ही तुम्हारे भीतर सत्य आविर्भूत होगा; उतनी ही तुम्हारी धूल झड़ेगी; गलत अलग होगा; निर्जरा होगी व्यर्थ से। झाड़-झंखाड़ ऊग गए हैं, घास-फूस ऊग आया है-आग लगानी होगी, ताकि वही बचे, जिसके मिटने का कोई उपाय नहीं । अमृत ही बचे; मृत्यु को तो खाक कर देना होगा। यह बैठे-बैठे न होगा। इसके लिए बड़े प्रबल आह्वान की, बड़ी प्रगाढ़ चुनौती की जरूरत है। किश्ती को भंवर में घिरने दे, मौजों के थपेड़े सहने दे ! भंवर दुश्मन नहीं है। महावीर के रास्ते पर भंवर मित्र है, | क्योंकि उसी से लड़कर तो तुम जगोगे; उसी से उलझकर तो तुम उठोगे । उसी की टक्कर को झेलकर, संघर्ष करके, विजय करके, तुम उसके पार हो सकोगे। इसलिए महावीर का मार्ग कहा जाता है, 'जिन का मार्ग', जिनों का मार्ग; उनने, जिन्होंने | जीता। जिन शब्द का अर्थ है : जिसने जीता। जैन शब्द उसी जिन से बना । जिन का अर्थ है : जिसने जीता । सभी शब्द बड़े अर्थपूर्ण होते हैं। बुद्ध का अर्थ है : जो जागा । जिन का अर्थ है : जो जीता। जिंदों में अगर जीना है तुझे, तूफान की हलचल रहने दे। — यह प्रार्थना मत कर कि तूफान को हटा लो ! फिर तू क्या करेगा ? धारे के मुआफिक बहना क्या, तौहीने - दस्तो - बाजू है। - यह तो तेरे बाहुओं का अपमान हो जाएगा, अगर तू धारा साथ बहा । धारे के मुआफिक बहना क्या... —फिर तेरे हाथों का क्या होगा ? फिर तेरी बाजुओं का क्या होगा? फिर तेरे बल को चुनौती कहां मिलेगी ? यह तो अपमान होगा तेरी ऊर्जा का ! समर्पण नहीं ! परवर्द-ए-तूफां किश्ती को धारे के मुखालिफ बहने दे ! यह किश्ती तो तूफान से ही पैदा होती है। यह किश्ती तो तूफान में ही पलती है। यह किश्ती तो जन्मती ही तूफान में है। परवर्द-ए-तूफां किश्ती को... - इस तूफान में पैदा हुई जीवन की किश्ती को, धार के मुखालिफ बहने दे, उलटा चलने दे। चल गंगोत्री की यात्रा पर ! महावीर का मार्ग योद्धा का मार्ग है- क्षत्रिय थे, स्वाभाविक Jain Education International जिन - शासन की आधारशिला : संकल्प है! जैनों के चौबीस ही तीर्थंकर क्षत्रिय थे। लड़ाकों की बात है। लड़ना ही जानते थे । तूफान में ही किश्ती पली थी। तलवार ही उनकी भाषा थी । युद्ध ही उनका अनुभव था । यद्यपि सब युद्ध छोड़ दिया, अहिंसक हो गए; पर क्या होता है, इससे क्या फर्क पड़ता है? चींटी को भी नहीं मारते थे, लेकिन योद्धा होना तो जारी रहा। अपने स्वभाव से कोई भिन्न हो नहीं पाता। संसार भी छोड़ दिया, प्रतियोगिता के सारे स्थान भी छोड़ दिये, जहां-जहां संघर्ष, युद्ध की बात थी, हिंसा थी, सब छोड़ दिया - लेकिन फिर भी योद्धा तो नहीं मिट पाता। जैनों के सारे तीर्थंकर क्षत्रिय हैं। यह आकस्मिक नहीं है। एक भी ब्राह्मण तीर्थंकर न हुआ । ब्राह्मण की भाषा लड़ने की भाषा नहीं है; समर्पण की भाषा है; शरणागति की भाषा है। बड़ी मधुर कहानी है। झूठ ही होगी, पर मधुर है। और माधुर्य इतना गहरा है उसमें कि झूठ की मैं फिक्र नहीं करता; मेरे लिए मधुर ही सत्य है । इतनी सुंदर है कि सत्य होनी ही चाहिए। वही कसौटी है सत्य की । कहानी है कि महावीर का जन्म तो हुआ था एक ब्राह्मणी के गर्भ में; पैदा तो हुए थे ब्राह्मणी के गर्भ में - लेकिन देवताओं ने कहा, 'ऐसा कभी हुआ है कि जैन तीर्थंकर और ब्राह्मण के घर पैदा हो ? ऐसा तो कभी सुना नहीं। और ब्राह्मण के घर पैदा होगा तो फिर जिन तीर्थंकर कैसे होगा? फिर तूफान में किश्ती पल ही न पाएगी। फिर संघर्ष की भाषा ही न होगी । फिर उसके जीवन में तलवार की धार और चमक न होगी । देवता बड़े बिबूचन में पड़े। और दुनिया का पहला आपरेशन हुआ। उन्होंने निकाल लिया ब्राह्मणी के गर्भ से महावीर को । तीन या चार महीने के थे, तब उन्होंने गर्भ निकाल लिया । बदल दिया गर्भ एक क्षत्राणी के गर्भ से। वहां एक लड़की पैदा होने को थी, उसे निकालकर ब्राह्मणी के गर्भ में रख दिया, महावीर को एक क्षत्रिय के गर्भ में रख दिया। यह भी बड़ी सूचक है बात । स्त्री स्वभावतः समर्पण की भाषा जानती है। इसलिए ठीक ही किया कि स्त्री को निकाल लिया क्षत्रिय के गर्भ से, ब्राह्मण के गर्भ में रख दिया । स्त्रैण भाषा समर्पण की है। जिनके मन कोमल हैं, फूल जैसे कोमल हैं, उनके लिए नारद का ही मार्ग है। पर जिनके हृदय में तलवार की चमक और कौंध For Private & Personal Use Only 9 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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