SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बंद करते हैं, तब याद रखना, ऐसी घड़ी में करते हैं जब उनका सबसे ऊंचा शिखर आ जाता है। महावीर पर जैन दृष्टि ने सबसे ऊंचे शिखर को छू लिया। बस, फिर पीछे चलनेवालों को लगा कि अब दरवाजे बंद कर दो। अब बहुत हो चुका। सबसे ऊंचा शिखर छू लिया - अब दरवाजे बंद ! अब कोई तीर्थंकर न होगा। क्योंकि तीर्थंकर और होते रहेंगे, इसका अर्थ है कि नित- नूतन धर्म होता रहेगा। कोई नया तीर्थंकर नयी बात कहेगा। महावीर ने भी बहुत-सी नयी बातें कहीं, जो पार्श्वनाथ ने न कही थीं। महावीर ने बहुत-सी बातें नयी कहीं, जो आदिनाथ ने न कही थीं। और अब तो मजा यह है कि जो महावीर ने कहा, उसी के आधार पर हम सोचते हैं कि ऋषभ ने, आदि ने, नेमी ने क्या कहा होगा। अब तो महावीर प्रमाण हो गये। अंतिम प्रमाण हो जाता है, वह सबको रंग देता है। लेकिन महावीर ने कुछ बातें कही हैं, जो निश्चित ही ऋषभ ने नहीं कही होंगी। कारण भी साफ है। | हिंदुओं के ग्रंथ हैं। ऋषभ का बड़े सम्मान से उल्लेख करते हैं। लेकिन महावीर का किसी हिंदू-ग्रंथ ने उल्लेख नहीं किया। ऋषभ में अड़चन मालूम न हुई होगी; कोई बहुत क्रांतिकारी व्यक्ति न रहे होंगे । तो वेद भी उनका उल्लेख करता है— सम्मान से, बड़े सम्मान से। लेकिन महावीर की बात भी नहीं उठाता । महावीर की बात भी कोई हिंदू - शास्त्र में नहीं है। महावीर के अगर माननेवाले न हों, तो महावीर का कोई प्रमाण भी नहीं रह जायेगा। क्योंकि हिंदू-धर्म के ग्रंथों ने कोई उल्लेख नहीं किया। महावीर निश्चित ही बड़े खतरनाक रहे होंगे। इस आदमी की बात भी उठानी खतरनाक थी । बुद्ध से ज्यादा खतरनाक रहे होंगे, क्योंकि बुद्ध को तो हिंदुओं ने बाद में धीरे-धीरे अपना एक अवतार स्वीकार कर लिया। लेकिन महावीर का तो नाम भी उल्लेख न किया। इस आदमी का नाम भी खतरनाक रहा होगा। यह आदमी खतरनाक था ! तुम जरा थोड़ा सोचो! जैन धर्म ने अपनी आखिरी क्रांति छू ली। फिर पीछे चलनेवाला अनुयायी घबड़ा गया कि अब बहुत हो चुका; अब द्वार- दरवाजा बंद करो; अब कहो कि अब और कोई तीर्थंकर न होगा। अन्यथा तीर्थंकर आते रहेंगे। अन्यथा नये-नये उन्मेष, नयी-नयी क्रांतियां - तो हम ठहरेंगे कहां? रोज कोई आयेगा और पुराने भवन को गिरायेगा और नये बनाने Jain Education International सम्यक ज्ञान मुक्ति है। की योजना रखेगा, तो भवन बनेगा कब ? मुहम्मद के साथ मुसलमानों ने अपने दरवाजे बंद कर लिये । मुहम्मद के साथ ही इस्लाम ने अपनी आखिरी ऊंचाई छू ली। मुहम्मद पहले और आखिरी तीर्थंकर हैं इस्लाम के पहले और आखिरी पैगंबर। फिर इस्लाम ने इतनी भी हिम्मत न की, जितनी हिम्मत जैनियों ने की थी, कम से कम चौबीस को तो बरदाश्त किया ! मुसलमानों ने इतनी भी हिम्मत न की; बड़ा कमजोर धर्म साबित हुआ। दरवाजे बंद कर लिये । ईसाइयों ने भी यही किया, दरवाजे बंद कर लिये। अब कोई नहीं होगा। आखिरी पैगाम आ गया परमात्मा का, अब इसमें कोई तरमीम न होगी, कोई सुधार न होगा, कोई संशोधन न होगा। जिंदगी रोज चली जाती है, तुम्हारे धर्म कहीं न कहीं रुक जाते हैं। जो धर्म जिंदगी के साथ नहीं चलता, वह अधर्म हो जाता है। तो मैं तो तुमसे कहता हूं, प्रतिपल तीर्थंकर होंगे, प्रतिपल पैगंबर होंगे। और तुम्हें अब जब भी कभी मौका मिले और तुम्हें दो पैगंबरों के बीच में चुनना तो नये को चुनना, पुराने को मत चुनना । क्योंकि पुराने को चुनने में तुम अपने को चुनोगे। नये को चुनने में तुम अपने को छोड़ोगे तो ही चुन सकोगे। जब तुम पुराने को चुनते हो तो तुम अपने को ही चुनते हो, क्योंकि पुराने के साथ तो तुम आत्मसात हो गये हो। तुमने पुराने को तो पिघला लिया है। तुमने पुराने को तो अपने ही ढंग का बना लिया है। तुमने तो पुराने में काफी तरमीम और कांट-छांट कर ली है। पुराने से तुम्हें कोई खतरा नहीं रहा है; नया फिर तुम्हें डगमगाता है, फिर तुम्हारी जड़ें उखाड़ता है, फिर तुम्हें जलाता है, फिर अग्नि में फेंकता है। जब भी चुनना हो तो नये को चुनना । एक और मित्र ने पूछा है कि आप कहते हैं, धर्म परंपरा नहीं है; लेकिन क्या परंपरा की जरूरत नहीं है? क्या परंपरा से हानि ही हानि हुई कि कुछ लाभ भी... ? यह मैंने कहा नहीं कि परंपरा की जरूरत नहीं है। अगर तुम्हें जड़ रहना हो, परंपरा की बड़ी जरूरत है। अगर तुम्हें मुर्दा रहना हो, तो परंपरा औषधि है। अगर तुम्हें रूपांतरित न होना हो तो परंपरा बड़ी सुरक्षा है। कायरों के लिए, कमजोरों के लिए, परंपरा शरण स्थल है। बड़ी जरूरत है, क्योंकि कायर हैं दुनिया For Private & Personal Use Only 167 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy