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________________ 166 जिन सूत्र भाग: 1 सब एक हो जाते हैं । तुम्हारा जो जैन धर्म है, वह राजनीति है। वह हिंदू के खिलाफ है, वह मुसलमान के खिलाफ है। तुम्हारा जो जैन धर्म है, वह एक संप्रदाय है, धर्म नहीं। वह एक जड़, मरी हुई वस्तु है । निश्चित ही, जैसे सत्य एक जीवंत आग है, लपटें जल रही हैं — ऐसे ही प्रेम भी, आनंद भी, ध्यान भी, समाधि भी, जो भी जीवंत है, वह लपट की तरह बहता हुआ है, गंगा की तरह प्रवाहमान है। जो भी मर गया, वह राख की तरह है। फिर उसमें कोई गति नहीं । तुम मुर्दा से जरा सावधान रहना ! और मुर्दे तलों को बहुत मत पकड़ना, अन्यथा तुम उन्हीं के नीचे दबोगे और मर जाओगे। कब्रों में तो लोग बहुत बाद में प्रवेश होते हैं, उनके बहुत पहले मर जाते हैं। मरने के बहुत पहले मर जाते हैं, क्योंकि मुर्दे से साथ जोड़ लेते हैं। बहुत सजग होना; क्योंकि मुर्दे का बड़ा आकर्षण है; क्योंकि मुर्दा प्राचीन है, उसकी परंपरा है। अगर मैं कुछ कहता हूं तो नयी बात होगी। मुझ पर भरोसा करने में खतरा भी हो सकता है; यह आदमी कुछ जाना-माना तो नहीं है। महावीर की बात में भरोसा करना आसान होता है; पच्चीस सौ साल से जानी-मानी बात है। अगर गलत होता तो पच्चीस सौ साल तक हजारों-लाखों लोग इसे मानते क्यों ? जब इतने लोग मानते हैं, तो ठीक ही मानते होंगे। फिर शास्त्र गवाह होंगे कि ठीक है; परंपरा गवाह होगी कि ठीक है; लंबी धारा जो लोगों ने अनुकरण की पैदा की है, वह गवाह होगी कि ठीक है । मेरी बात तो तुम्हें सीधी-सीधी स्वीकार करनी होगी, बिना किसी परंपरा के । बड़ी हिम्मत चाहिए! हां, पच्चीस सौ साल बाद मेरी बात भी इतनी ही आसान हो जायेगी। तब मेरे माननेवाले फिर धर्म के विपरीत खड़े हो जायेंगे। जो अतीत को पकड़ता है, वह हमेशा धर्म का दुश्मन है। क्योंकि धर्म तो सदा नित नूतन है, नया है, अभी है, ताजा है— अभी खिलते फूल की भांति ! धर्म तो सदा खिलता हुआ फूल है ! जिसको तुम धर्म कहते हो, वह तो मुर्दा फूलों का निचोड़ा हुआ इत्र है। फूल तो कभी के खो गये। उनका खिलना तो कभी का बंद हो गया। फूल तो बचे भी नहीं, लेकिन तुमने मुर्दा फूलों का लहू निचोड़ लिया है। उसको पकड़कर तुम बैठे हो। और तुमने निश्चित ही अपने मतलब से निचोड़ लिया है। Jain Education International एक आदमी जुआरी है, बड़ा जुआरी है! सब गंवा दिया है। एक रात घर लौटा देर से। जुआ खेलकर ही लौटा था। पत्नी नाराज थी। उसने कहा, 'तुम फिर पहुंच गये जुआ घर ! अब बचा क्या है?' उसने कहा, 'जुआ घर नहीं गया था, महाभारत हो रही थी रास्ते में, वहां बैठकर सुन रहा था। रास्ते से निकला, वहां महाभारत हो रही थी, वह देखता आया था।' कुछ और बहाना न मिला तो यही उसने कह दिया। पत्नी ने कहा, 'मैं मान नहीं सकती, तुम और महाभारत सुनने गये ! तुम्हारे कपड़े से, तुम्हारे चेहरे से जुए घर की बास आती है।' उसने कहा, 'सुन देवी! और वहां मैंने यह भी सुना महाभारत में कि युधिष्ठिर खुद जुआ खेलते थे। धर्मराज ! और जुआ खेलते थे । तू मेरे पीछे नाहक पड़ी है। इससे साफ सिद्ध होता है कि जुआ एक धार्मिक कृत्य है— युधिष्ठिर खेलते थे और धर्मराज थे । ' पत्नी ने कहा, 'तो फिर ठीक है। तो सोच राखिओ, कि द्रौपदी के पांच पति थे।' लोग अपने मतलब की बातें निकाल रहे हैं। तुम जो धर्म खड़ा कर लेते हो, वह तुम्हारा मतलब है। तुम बड़े चालाक हो, होशियार हो, बड़े कुशल हो- अपने को धोखा देने में। जब कोई जीवित गुरु होता है, महावीर जब जिंदा होते हैं, तब तो तुम धोखा नहीं दे सकते। क्योंकि महावीर जगह-जगह कहेंगे, 'गलत ! यह मैंने कहा नहीं। यह तुमने सुन लिया होगा।' जब महावीर जा चुके, फिर कोई कहने वाला न रहा; फिर तुम्हें जो कहना है, तुम्हें जो मानना है, उसे तुम बनाये चले जाओ, माने चले जाओ। 'पूछा है कि क्या जैन धर्म में चौबीस ही तीर्थंकर हो सकते हैं, ज्यादा नहीं ? एक मित्र ने सभी धर्म अपने दरवाजे बंद कर लेते हैं देर-अबेर । क्योंकि अगर दरवाजा खुला रहे तो धर्म पुराना कभी भी न हो पायेगा । और अगर दरवाजा खुला रहे तो धर्म संज्ञा कभी न बन पायेगा, क्रिया ही बना रहेगा। तो इतने तूफान और उथल-पुथल होते रहेंगे कि तुम कभी आश्वस्त न हो पाओगे। तो सभी धर्म अपने दरवाजे बंद कर लेते हैं; कोई देर, कोई अबेर । और जब दरवाजे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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