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________________ जिन सूत्र भागः1 में। आखिर उनके लिए भी तो कोई जगह होनी चाहिए। थोड़ा-सा रहस्य, थोड़ा-सा राज इकट्ठा कर पाओगे। सस्ता आत्महीन लोग हैं दुनिया में आखिर उनके लिए भी तो कोई | उपाय है, तुम मार्गदर्शक को साथ ले लेते हो, वह बताये चला सहारा होना चाहिए। आत्मवंचक हैं दुनिया में आखिर उनको जाता है कि यह मूर्ति कितनी पुरानी है, किसने बनाई, कब बनाई भी तो कोई उपाय होना चाहिए कि अपने को धोखा दे लें! परंपरा इसका क्या इतिहास है। तुम भी बहरे की भांति सुनते चले जाते की बड़ी जरूरत है। हो, अंधे की भांति देखे चले जाते हो। घंटे दो घंटे में सब मंदिर मैंने नहीं कहा कि जरूरत नहीं है! जरूरत न होती तो परंपरा | देख डाले-चले आये। जिन मंदिरों को बनने में सदियां लगीं, होती ही न। है, जरूरत होगी कहीं! कहीं बड़ी जरूरत होगी, जिन मूर्तियों पर हजारों लोगों के जीवन निछावर हुए तब बनीं, क्योंकि इतने महापुरुष हुए, जिन्होंने परंपरा को तोड़ने की तुम उनको घड़ी भर में निपटाकर घर आ जाते हो, कहते हो, हजार-हजार कोशिशें की, परंपरा नहीं टूटती। महावीर कोशिश 'खजुराहो हो आये हैं। अजंता देख डाला। ऐलोरा घूम आये।' करते, बुद्ध कोशिश करते, कृष्ण कोशिश करते, क्राइस्ट | सारी पृथ्वी का चक्कर लगा लेते हो।। कोशिश करते-परंपरा तोड़ने की; कुछ नहीं होता, परंपरा नहीं | अगर तुम अपने ही हिसाब से चलो तो बड़ी मुश्किल होगी। टती। लोग इन्हीं को छोड़ देते हैं, परंपरा को नहीं छोड़ते। या और यह कोई जिंदगी मूर्तियों का, मंदिरों का हिसाब नहीं है। यहां इन्हीं को परंपरा में आत्मसात कर लेते हैं, लेकिन परंपरा को नहीं एक-एक पल तुम्हें अपना निर्णय लेना पड़ेगा, अगर तुम्हारे पास छोड़ते। वे इन्हीं को परंपरा में रंग देते हैं। वे कहते हैं, हम तुम्हारी | कोई परंपरा न हो। किसी ने गाली दी, अब क्या करना? तुम्हें भी पूजा करेंगे, लेकिन हमें बख्शो। हमें परेशान मत करो! तुम खुद ही जागकर प्रतिध्वनि करनी होगी। कोई परंपरा नहीं है। तुम भी परंपरा के हिस्से बन जाओ। और तुम्हारे लिए भी हमारे मंदिर परंपरा में मानते नहीं हो। न तुम किसी और की बनाई परंपरा में में जगह है। तुम्हारी प्रतिमा भी रख देंगे। तुम ज्यादा शोरगुल न | मानते हो, न अपनी बनाई हुई लीक को मानते हो-क्योंकि कल मचाओ। तुम भी स्वीकार! किसी ने गाली दी थी, तुमने क्रोध किया था; परसों भी किसी ने परंपरा की जरूरत जरूर होगी, अन्यथा टूट गयी होती | गाली दी थी, तुमने क्रोध किया था—क्रोध तुम्हारी परंपरा है। परंपरा। बहुत थोड़े-से लोग, बड़े हिम्मतवर, जिंदादिल लोग, आज फिर कोई गाली देता है, तुम परंपरा की सुनोगे या आज तुम बिना परंपरा के जीते हैं। क्योंकि बिना परंपरा के जीने का अर्थ जागकर इस गाली को समझोगे और तय करोगे, क्या करूं? होता है: जागरण से जीना। तब तुम्हें प्रतिपल अपना | परंपरा के आधार पर नहीं-होश के आधार पर। बीते कल के जीवन-निर्णय करना होगा। परंपरा बड़ी सुविधापूर्ण है, बड़ी आधार पर नहीं-आज के, इस क्षण के आघात के आधार पर। सुरक्षापूर्ण है। तुम्हें कुछ तय नहीं करना होता। परंपरा ने तय कर यह जो प्रत्याघात अभी हुआ है, इसको तुम सीधा-सीधा दर्पण दिया है, तुम चुपचाप अंधे की तरह अनुसरण किये चले जाते की तरह लोगे? इसका उत्तर दोगे? कठिन होगा। तब तो हो। सब लिखा है किताब में, नक्शे हाथ में हैं-तुम उनका प्रतिपल तुम्हारी जिंदगी लहरों में होगी, तूफानों में होगी, आंधियों अनुसरण कर लेते हो। परंपरा मार्गदर्शक जैसी है। वह तुम्हें में होगी। कुछ तय न हो पायेगा। कुछ बंधी लकीरें न होंगी। बताये चली जाती है। तम कभी गये? कुछ पिटी लकीरें न होंगी। राज-पथ न होगा, पगडंडियां होंगी। कल एक मित्र ने संन्यास लिया। वे खजुराहो में मार्गदर्शक तुम्हीं को बनाना पड़ेंगी। हैं। खजुराहो के मंदिर-मूर्तियों को, आए यात्रियों को, अतिथियों | लोग सस्ता रास्ता चुनते हैं। परंपरा को मान लेते हैं। ठीक है, को समझाते हैं, दिखाते हैं। अगर तुम खजुराहो के मंदिर में बिना परंपरा की जरूरत है; क्योंकि दुनिया में कायर हैं। दुनिया में बड़े किसी मार्गदर्शक के जाओ तो बड़ी अड़चन होगी। वर्षों लग कमजोर दीन-हीन लोग हैं। दुनिया में ऐसे लोग हैं जो अपनी जायेंगे। क्योंकि तुम्हें एक-एक चीज की खुद ही खोजबान करना होगी। तुम्हें एक-एक मूर्ति को भर आंख स्वयं देखना होगा। श्रद्धा जीवन में नहीं है, मृत्यु में है; जो मर जाओ, तभी भरोसा तुम्हें एक-एक मूर्ति पर स्वयं ध्यान करना होगा। तभी शायद तम | करते हैं। 168 Jair Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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