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________________ जिन सूत्र भागः1 न किसी के दिल का करार हूं लाओत्सु। कुछ हैं थोड़े-से धन्यभागी, जिन्होंने जीवन इस तरह जो किसी के काम न आ सके से साधा कि मौत से बचकर निकल गये। मैं वो एक मुश्ते-गुबार हूं। उनकी साधना की कला क्या है? -एक मुट्ठी भर धूल! उनकी कला का सूत्र महावीर कह रहे हैं: न किसी की आंख का नूर हूं! 'यौवनरूपी तृण पर संचरण करने में कुशल जिस महात्मा को -अब किसी के आंख की रोशनी नहीं हं मैं। वह नहीं जलाती या विचलित नहीं करती, वह धन्यभागी है।' न किसी के दिल का करार हूं! जो जीवन में रहते-रहते जीवन की वासना के पार हो जाता है, -न किसी के प्रेम, लागत, चाहत का विषय हूं, विषयवस्तु उसे मौत के आगे रास्ता मिल जाता है। क्योंकि मौत सिर्फ वासना की है, तुम्हारी नहीं है। जो किसी के काम न आ सके। अगर तुमने वासना को जीते-जी त्याग दिया, तो फिर तुम्हारी -अब तो बस हालत ऐसी है कि एक मुट्ठी भर धूल हूं जो कोई मौत नहीं है। अन्यथा, जिसको तुम जिंदगी कहते हो वह किसी के भी काम की नहीं है। बस नाममात्र को जिंदगी है—कहने को। जिंदगी जैसा क्या है आदमी की देखी हालत! जानवर मर जाते हैं तो कुछ काम भी वहां? कहां हैं अंगार? राख ही राख है। आ जाते हैं। हाथी मर जाए तो हजारों में बिकता है। जिंदा हाथी मुझसे जो पूछिए तो बहरहाल शक्र है की कीमत कम है, मरे की ज्यादा है। जिंदा को पाले कौन! न यूं भी गुजर गई मेरी यूं भी गुजर गई। राजा-महाराजा रहे, न महंत-अधिपति रहे-हाथी को पाले | बस ऐसी ही गुजरी जाती है। कौन! मर जाता है तो भी कीमत है लेकिन, हड्डियां बिक जाती लोग कहते हैं, सब ठीक है। पर कभी गौर से देखा, जब लोग हैं। आदमी अकेला प्राणी है संसार में जिसका मरने पर कुछ भी, कहते हैं सब ठीक है; तब उनके चेहरे पर कैसी उदासी होती है! कुछ काम नहीं आता; सब जलाने-योग्य सिद्ध होता है; सब | जब वे कहते हैं, सब ठीक है, तो जैसे कहते हैं, कुछ भी ठीक व्यर्थ सिद्ध होता है! कहां! मगर अब कहने से भी क्या सार है! सब ठीक है! जो किसी के काम न आ सके किसी से पूछो, कहो, क्या हालचाल हैं?— कहता है, सब मैं वो एक मुश्ते-गुबार हूं। ठीक है, सब मजे में चल रही है! दिन रात बीते चले जाते हैं.... मुझसे जो पूछिए तो बहरहाल शुक्र है। बजुज गोरेगरीबां नक्शे-पा थे फिर नहीं आगे यूं भी गुजर गई मेरी यूं भी गुजर गई। यहीं तक हर मुसाफिर ने पता पाया है मंजिल का। बस किसी तरह ले-देकर गुजर जाती है। ऐसे-वैसे गुजर जाती लोगों को देखो! बस उनके पैर उनके मरघट तक जाते हैं। है। इसको तुम जिंदगी कहते हो जो ऐसे गजर जाती है? और वहां सब खो जाता है। अगर इसको जिंदगी कहते हो, तो किसी दिन रोओगे, तड़फोगे बजुज गोरेगरीबां नक्शे-पा थे फिर नहीं आगे-बस मौत तक और कहोगेः लोगों के पैरों के चिह्न दिखाई पड़ते हैं। यहीं तक हर मसाफिर ने मैं वो एक मश्तेगबार हं पता पाया है मंजिल का। जो किसी के काम न आ सके...! पर मौत मंजिल है कि कब्र गंतव्य है?...कि चले और गिरे गुजारो मत-जीयो! काटो मत-जीयो! गंवाओ कब्र में, तो जीवन का अर्थ क्या हआ, सार्थकता क्या हुई? नहीं, मत-जीयो। कुछ और भी लोग हुए हैं, थोड़े-से धन्यभागी लोग, जिन्होंने | 'जा जा वज्जई रयणी, ण सा पडिनियत्तई। मौत के आगे का भी पता पाया है। उन्हीं की हम यहां चर्चा कर अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ।।' रहे हैं—महावीर, बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट, मोहम्मद, जरथुस्त्र, जो-जो रात बीत रही, लौटकर नहीं आएगी, नहीं आती है। 154 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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