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________________ जीवन एक सुअवसर है लपटें, और लोग जलाए जा रहे हैं। लेकिन तुमने जरा गौर से विषयरूपी वृक्षों से प्रज्वलित कामाग्नि तीनों. लोकरूपी अपने आसपास देखा, यहां क्या हो रहा है। लपटें यहां भी हैं | अटवी को जला रही है।' और लोग जल रहे हैं! लपटें जरा सूक्ष्म हैं-वासना की हैं, नर्क तो जल ही रहा है; साफ-साफ लपटें हैं उसकी। पृथ्वी काम की हैं, दिखाई नहीं पड़तीं। शायद नर्क की लपटें ज्यादा भी जल रही है। लपटें उतनी साफ नहीं हैं। स्वर्ग भी जल रहा स्थूल होंगी। लेकिन स्थूल लपटों के साथ तो कुछ उपाय भी है; लपटें और भी सूक्ष्म हैं स्वर्ग में। पृथ्वी पर तो लपटें पाप की किया जा सकता है, क्योंकि दिखाई पड़ती हैं। | हैं। स्वर्ग में लपटें पुण्य की हैं-और भी सूक्ष्म हैं। देवता भी मैंने सुना है, एक धनपति मरा। कंजूस था बहुत। तो मरते जल रहे हैं। देवताओं की भी भाग-दौड़ मची है—वही वासना, वक्त उसने अपनी पत्नी से कहा कि मेरे कपड़े पहनाने की लाश | वही उपद्रव, वही नाच-गान। और वहां भी घबड़ाहट है। वहां को कोई जरूरत नहीं है। सम्हालकर रखना, बच्चों के काम आ भी तृप्ति मालूम नहीं होती। जाएंगे। पत्नी ने कहा, 'क्या बात करते हो! नंगे जाने का सोचते कथा है उर्वशी की। पृथ्वी पर विचरण करने आई थी, पुरुरवा हो?' धनपति ने कहा, 'मुझे पता है, कहां जाना है। वहां काफी | के प्रेम में पड़ गई—एक मृत्य के प्रेम में, एक पृथ्वीवासी के प्रेम गर्मी है। तू फिक्र मत कर।' मर गया, लेकिन दूसरे ही दिन रात में। देवताओं से तृप्ति न मिली। देवता नहीं तृप्त कर पाए। जो आकर दरवाजे पर उसने खटखट की। पत्नी घबड़ाई। उसने | भी मिल जाए उससे तृप्ति नहीं होती। अप्सराएं तड़पती हैं पृथ्वी कहा कि सुन, मेरा कोट कमीज सब निकालकर दे। पत्नी ने कहा के पुरुषों के लिए। यह कथा है उर्वशी की। पृथ्वी के लोग तड़फ कि तुम तो कहते थे ऐसी जगह जाना है, जहां काफी गर्मी है। रहे हैं अप्सराओं के लिए। कुछ मामला ऐसा है कि जो जहां है उसने कहा, 'वहीं गया; लेकिन सभी धनी वहां गए हैं, उन्होंने वहां अतृप्त है। कहीं और, कहीं और होते तो तृप्ति हो जाती! सब एयरकंडीशन्ड कर डाला। मरा जा रहा हूं ठंड में, सिकुड़ा 'किंतु यौवनरूपी तृण पर संचरण करने में कुशल जिस जा रहा हूं। कपड़े दे। शीत सर्दी के सब कपड़े दे दे।' महात्मा को वह नहीं जलाती या विचलित नहीं करती, वह धन्य भूत लेने आया है कपड़े। तो नर्क में तो संभव भी है कि एयरकंडीशनिंग हो सके; क्योंकि तीनों लोक जल रहे हैं। जो इस विराट दावानल में अलिप्त लपटें बाहर हैं। यहां इस पृथ्वी पर लपटें बहुत अदृश्य हैं। बाहर खड़ा है, अनजला खड़ा है, जिसे कोई लपट भीतर से नहीं इतनी नहीं हैं जितनी भीतर हैं। रोएं-रोएं में हैं। तुम्हें कोई आग में | पकड़ती, जिसके भीतर कामवासना की लपट नहीं उठती-वह फेंक नहीं रहा है, तुम आग में ही खड़े हो।। धन्य है। कामवासना जलाती है, इसे देखा नहीं! कितना जलाती है। एक ही धन्यता को महावीर जानते हैं और वह धन्यता है किस बुरी तरह जलाती है! तृप्त होती ही नहीं। और तुम जो भी वासना की दौड़ से छूट जाना। क्योंकि वासना की दौड़ से छूटते कामवासना की तृप्ति के लिए आयोजन करते हो, वह सब अग्नि ही तुम आत्मा में थिर हो जाते हो। वासना ऐसे है जैसे हवा के में डाले गए घी की तरह सिद्ध होता है। और बढ़ती है, और थपेड़े, और लौ को डगमागाते हैं तुम्हारी ज्योति की, तुम्हारे दीये लपटें लेती है। एक स्त्री से तृप्त नहीं, दो स्त्री से तृप्त नहीं, तीन को। और वासना से छूट जाना ऐसे है जैसे हवाएं बंद हो गईं और स्त्री से तृप्त नहीं-किससे कौन तृप्त है! | ज्योति निष्कंप हो गई। वासना यानी आत्मा का डगमगाना। पश्चिम के एक बहुत बड़े विचारक मार्शल ने लिखा है कि आत्मा यानी वासना से मुक्त हो जाना। डगमगाहट गई, अकंप जीवन भर के अनुभव के बाद मैं यह कहता हूं कि मुझे सारी हुए! धन्य है वह व्यक्ति! स्त्रियां भी संसार की मिल जाएं, तो भी मैं तृप्त न हो सकूँगा। 'जो-जो रात बीत रही है, वह लौटकर नहीं आती। अधर्म तप्त कोई हो ही नहीं सकता, क्योंकि तप्ति के लिए हम जो करने वाले की रात्रियां निष्फल चली जाती हैं।' करते हैं वह घी सिद्ध होता है। अभ्यास और बढ़ता है। और जड़ें बहादुरशाह जफर ने मरने के पहले कुछ वचन कहे: मजबूत होती हैं मूढ़ता की। न किसी की आंख का नूर हूं 153 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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