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________________ 152 जिन सूत्र भाग: 1 नहीं है। एक हिस्सा है, लेकिन पूरा नहीं है। पूरा अर्थ तो ब्रह्मचर्य शब्द में छिपा हुआ है – ब्रह्म जैसी चर्या, ईश्वर जैसा आचरण । तुम्हारे भीतर जो ईश्वर छिपा है उससे जब तुम जीने लगोगे तो ब्रह्मचर्य। स्वभावतः वीर्य नियमन अपने से आ जाएगा, उसे लाना भी न पड़ेगा। वह उसके साथ आया हुआ अनुषंग है। अभी तो हम ऐसे जीते हैं जैसे शरीर हैं। शरीर में हैं, ऐसे भी नहीं - शरीर ही हैं, ऐसे जीते हैं। अभी तो कोई तुम्हारा शरीर काट दे तो तुम समझोगे कि तुम कट गए। अभी तो कोई शरीर को मार डाले तो तुम समझोगे कि तुम मर गए। अभी तो शरीर से तुमने अपने पृथक 'होने' को जरा भी नहीं जाना, रत्तीभर फासला नहीं कर पाए। काट कर पर मुतमईन सैयाद बेपरवा न हो कि हे जल्लाद ! पंख काटकर तू निश्चित मत बैठ! रूह बुलबुल की इरादा रखती है परवाज का । पंखों से क्या लेना-देना है, आत्मा उड़ने का इरादा रखती है आकाश में। पंखों को काटकर तू निश्चित मत हो जा । जिस दिन ऐसी घड़ी आती है कि तुम मौत से कह सकोगे कि काट डाल शरीर को, लेकिन इससे निश्चित होकर मत बैठना, क्योंकि मैं अनकटा पीछे हूं। शरीर से थोड़े ही चलता था - शरीर मेरे कारण चलता था। मैं चलता रहूंगा। शरीर से थोड़े ही उड़ता था - शरीर मेरे कारण उड़ता था। मैं उड़ता रहूंगा। काट कर पर मुतमईन सैयाद बेपरवा न हो रूह बुलबुल की इरादा रखती है परवाज का । लेकिन जब तुम अपनी रूह को पहचान सको, आत्मा को अलग शरीर से, तब तुम मौत से भी हंसकर दो बातें कर सकोगे। धीरे-धीरे उतरो भीतर। शरीर को देखो और पहचानो - मेरी खोल है, मेरे घर की दीवाल है । और भीतर उतरो - विचार को पकड़ो और पहचानो । विचार तुम नहीं हो, क्योंकि तुम उसे भी देख सकते हो। और थोड़े भीतर उतरो - वासना, भावना को पकड़ो, पहचानो। यह भी तुम नहीं हो, क्योंकि तुम काट कर पर मुतमईन सैयाद बेपरवा न हो रूह बुलबुल की इरादा रखती है परवाज का। ऐसी घड़ी अभी तुम्हारे पास नहीं आई कि तुम मौत से कह पहचाननेवाले हो, देखनेवाले हो, द्रष्टा हो। ऐसे चलते चलो, सकोचलते चलो-उस घड़ी तक, जब केवल द्रष्टा रह जाए, और देखने को कुछ भी न बचे, शुद्ध दर्शन हो ! जिसके पीछे तुम न जा सको - वही तुम हो। जिसके और पीछे तुम न जा सको― वही तुम हो। ऐसे पीछे उतरते-उतरते-उतरते साक्षी पकड़ में आता है। बस उसके पार फिर कोई नहीं जा सकता। साक्षी के साक्षी तुम नहीं हो सकते हो । आखिरी घड़ी आ गई। बुनियाद आ गई अस्तित्व की । भूमि आ गई, जिस पर सब खड़ा है, सारा महल खड़ा है। जिसने इस अस्तित्व की बुनियाद को पकड़ लिया, आत्मा को पकड़ लिया, वही ब्राह्मण है। और उसके जीवन की चर्या ब्रह्मचर्य है। 'जीव ही ब्रह्म है।' जो अपने भीतर उतरेगा, पाएगा। लेकिन जिनको तुमने धर्म जाना है, वे तुम्हें भीतर तो उतरने की तरफ नहीं ले जाते, वे तुम्हें बाहर के मंदिरों-मस्जिदों में भटकाते हैं। वे तुम्हारे हाथ में कुछ झूठे धर्म पकड़ा देते हैं। इन्हीं धर्मों के कारण दुनिया में इतना अधर्म है। हम तो 'ताबां' हुए हैं लामजहब मजहला देख सब के मजहब का । Jain Education International — यह सब उपद्रव और अज्ञान देखकर, मजहब के नाम पर जो चलता है, बहुत-से धार्मिक व्यक्ति अधार्मिक हो जाते हैं। तुम्हें पहुंचाना है तुम्हारे भीतर; कहीं और मंदिर नहीं है। तुम्हें लगाना है तुम्हारी पूजा और अर्चना में; कहीं और देवता नहीं है। तुम्हें जगाना है वहां, जहां तुम्हारी चैतन्य की धारा उठती है— उसी गंगोत्री में। 'विषयरूपी वृक्षों से प्रज्वलित कामाग्नि तीनों लोकरूपी अटवी को जला देती है, किंतु यौवनरूपी तृण पर संचरण करने में कुशल जिस महात्मा को वह नहीं जलाती या विचलित नहीं करती, वह धन्य है । ' 'जो रात बीत रही है वह लौटकर नहीं आती। अधर्म करनेवाले की रात्रियां निष्फल चली जाती हैं।' विषयरूपी वृक्षों से प्रज्वलित कामाग्नि तीनों लोकरूपी अटवी को जला रही है। तीनों लोक जल रहे हैं एक ही कामना में। नर्क तो जल ही रहा है। तुमने नर्क की कथाएं सुनी हैं- अग्नि की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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