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________________ 'अधर्म करने वाले की रात्रियां निष्फल चली जाती हैं।' निष्फल मत जाने दो! ये दिवस-रात महंगे हैं। ये दिवस-रात बड़ी मुश्किल से मिले हैं। मनुष्य का जन्म दुर्लभ है। कोटि-कोटि योनियों के बाद मनुष्य हो पाता है। कितनी आकांक्षाओं, कितनी अभीप्साओं को लेकर तुम मनुष्य हुए हो ! अब इसे ऐसे ही मत गुजर जाने देना ! कितनी चेष्टाओं और कितने जन्मों के यात्रा - पथों के बाद, कितनी देहें, कितनी योनियों में भटकने के बाद, सौभाग्य का क्षण आया है कि तुम मनुष्य हुए हो? इसे ऐसे ही मत गंवा देना! ये दिन फिर लौटकर नहीं आते ! ये रातें गईं तो गईं। इनमें एक-एक क्षण को इस ढंग से जीना कि क्षण तो जाए, लेकिन अमृत की तुम्हें खबर दे जाए। क्षण तो जाएगा ही, लेकिन इस ढंग से निचोड़ लेना कि क्षण तो चला जाए, लेकिन सार तुम्हारे साथ रह जाए। क्षण तो जाए, लेकिन अमृत का द्वार खोलता जाए। यह जीवन तो जाएगा ही, लेकिन जाते-जाते तुम जीवन का ऐसा उपयोग कर लेना कि तुम इसके कंधों पर चढ़ जाओ और इसके पार देख लो। इसके पार जो है वही असली जीवन है। मनुष्य संक्रमण है, एक सेतु है। पीछे अतीत है---जानवरों का, पशु-पक्षियों का, पत्थरों का, पहाड़ों का। आगे परमात्मा है। तुम बीच के सेतु हो । यह मनुष्य कुछ घर नहीं है, जहां बस जाना है - यह धर्मशाला है, जहां रात टिके, सुबह जाना है। याद रखना, यात्रा अभी होने को है— हो नहीं गई ! अभी कुछ घटने को है, घट नहीं गया। तुम सिर्फ एक अवसर हो । अवसर को ही सत्य मत मान लेना । तुम सिर्फ एक संभावना हो, अनंत संभावना, जिसमें अगर ठीक से तैयारी चली, अगर तुम अपने को मंदिर बना पाए, तो किसी दिन, सत्य कहो, ब्रह्म कहो, या जो नाम तुम्हें पसंद हो, जीवन का वह भगवत रूप, भगवत्ता तुममें उतरेगी । तो इस जीवन को तुम भोग ही मत समझना - यह जीवन योग भी है । भोग का अर्थ है : गुजार दो; यह कर लो, वह कर लो; यह भोग लो, वह भोग लो। योग का अर्थ है : गुजारो ही मत, सुधारो भी। योग का अर्थ है; सजाओ, कोई मेहमान आने को है ! अतिथि आ रहा पास। ऐसा न हो कि वह आए और तुम्हें तैयार न पाए। तुम तैयार रहना, द्वार खोले ! सिंहासन सजाकर रखना! धूप-दीप, अर्चा, फूल, वंदनवार ! तुम्हारे क्षण अमृत Jain Education International जीवन एक सुअवसर है की तैयारी में लगें ! तुम्हारे दिवस और रात्रि ध्यान बन जाएं। धीरे-धीरे समाधि का संगीत तुम्हारे भीतर उठे, बजे! तो ही, तुम किसी दिन जान पाओगे —उसे, जो तुम हो ! जान पाओगे उसे, जो जीवन का अर्थ है, प्रयोजन है! जान पाओगे उसे, जो जीवन का गंतव्य है। उसे जाने बिना जो जीते हैं, वे नाममात्र को जीते हैं। उसे जानकर जो जीते, वही जीते हैं। उसे बिना जाने जो जीते, वे तो सिर्फ मरते। उसे जानकर जो मरते भी हैं, तो भी अमृत को उपलब्ध होते हैं। For Private & Personal Use Only आज इतना ही। 155 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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