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________________ RA जिन सत्र में चपरासी भी साढ़े पांच बजे चला गया-एंडरू कारनेगी सुबह एक गांव में एक लफंगे आदमी की लोगों ने नाक काट दी। आठ से लेकर रात नौ और दस और ग्यारह बजे रात तक दफ्तर | उससे बहुत परेशान थे। हर किसी से छेड़-खान...। गांव की में बैठा है। यह तो चपरासी से भी गई-बीती हालत हो गई। फिर | बहू-बेटियों का जीना दूभर हो गया था। नाक कट गई तो वह रात सो न सके क्योंकि चिंताओं का भार, सारी दुनिया में फैला बड़ा परेशान हुआ, अब क्या करना! वह साधु हो गया और हआ धन का साम्राज्य! और मरते वक्त भी जब किसी ने उससे दूसरे गांव चला गया। दूसरे गांव में एक वृक्ष के नीचे बैठ गया, पूछा कि 'तुम तृप्त मर रहे हो?' उसने कहा, 'तृप्ति कैसी! धूनी रमा कर। गांव के लोग...कुतूहल जगा, कौन है भाई! केवल दस अरब रुपये छोड़कर मर रहा हूं, सौ अरब की कुछ विचित्र भी है, नाक भी नहीं है, और बड़ी आंखें बंद किये आकांक्षा थी। पूरा न हो पाया, यात्रा अधूरी रह गई।' हुए, और ध्यानमग्न बैठा है! लोग आये। गांव के लोग इकट्ठे पर जो धन की दौड़ में है उसे नहीं दिखाई पड़ता; उसे एक नशा हो गये। किसी ने पूछा, 'महाराज! आप यहां क्या कर रहे है। अगर तुम इतना ही करो कि तुम अपने चारों तरफ दौड़ते हुए हैं?' उसने कहा कि परमात्मा का स्वाद ले रहे हैं; भोग कर रहे लोगों को गौर से देख लो, तो तुम्हारी दौड़ धीमी हो जाये। जो हैं प्रभु का। अहा! कैसा आनंद बरस रहा है। पहुंच गये हैं, जरा उनको तुम देख लो। जिन्होंने पा लिया है, जरा | लोगों ने भी आकाश की तरफ देखा। कहा कि हमें दिखाई नहीं उनको तुम देख लो, तो तुम्हारे सब सपने गिर जायें। पड़ता। उसने कहा, 'तुम्हें कैसे दिखाई पड़ेगा...! उसके लिए उनकी ऊपरी और झूठी शक्लों को मत देखना, उनकी भीतरी, | नाक कटवानी जरूरी है। और यह तो हिम्मतवरों का काम है। उनकी आंतरिक दशा को देखना। राष्ट्रपति है कोई, कोई यह तो कभी कोई...। तो धर्म तो खड्ग की धार है। प्रधानमंत्री है—उनकी भीतरी दशा को देखना, अखबारों में खानानिधार!' । छपती तस्वीर को मत देखना। वे तस्वीरें सब झूठी हैं। वे तस्वीरें एकाध हिम्मतवर खड़ा हो गया, क्योंकि यह तो चुनौती हो आयोजित हैं। गई। उसने कहा, 'क्या समझा है तमने? कोई नामों का गांव स्टेलिन और हिटलर कोई भी तस्वीर को ऐसे ही न छपने देते है! मैं तैयार हूं।' उसने कहा, 'तैयार हो तो बस ठीक।' वह थे। स्टेलिन और हिटलर की तस्वीरें पहले एक खुफिया विभाग उसे पास दूसरे खेत में ले गया, झाड़ की छाया के किनारे जाकर से गुजरती थीं, जहां उनकी जांच की जाती। वही तस्वीर छप उसने उसकी नाक काट दी। चीख पड़ा वह आदमी। उसने कहा पाती थी अखबार में, जो प्रसन्नता प्रगट करती हो, आनंद प्रगट | कि दिखाई तो कुछ पड़ता नहीं। उसने कहा, 'पागल! किसी से करती हो, खुशी प्रगट करती हो। स्टेलिन के चेहरे पर चेचक के कहना मत! क्या हमको दिखाई पड़ता है। मगर जब कट गई तो दाग थे; किसी फोटो में कभी नहीं छपे। वे चेचक के दाग कभी अपनी इज्जत तो बचानी है, अब तुम्हारी भी कट गई। अब अगर स्वीकार नहीं किये गये कि छपें। तुमने लोगों से जाकर कहा कि कुछ दिखाई नहीं पड़ता तो वह राजनेता बीमार पड़ जाते हैं, महीनों तक खबर नहीं दी जाती। लोग हंसेंगे, तुम बुद्ध समझे जाओगे। तुम्हारी मर्जी! अब तो राजनेता और बीमार कहीं पड़ता है? उससे प्रतिमा खंडित तुम हमारे साथ ही हो जाओ। अब तो तुम जाकर, नाचते हुए होती है। हाथ-पैर डगमगाने लगते हैं, तो भी इसकी खबर नहीं जाओ और कहना, अहा! जैसे हजारों सूरज एक साथ निकले दी जाती। हों, करोड़ों कमल खिले हों। हे प्रभु! कैसा आनंद दिखला रहा तस्वीर बनाई हुई है। भीतर से देखो उन्हें, तो बड़े चकित हो है, कभी भी दिखाई न पड़ा था। अब तो तुम यही कहो।' जाओगे। उनसे ज्यादा नर्क में कोई भी जीता नहीं। लेकिन 'वैसे तुम्हारी मर्जी', उसने कहा, 'तुमको मैं कहता नहीं कि कठिनाई उनकी तुम समझ सकते हो। इतनी मुश्किल से नर्क यही कहो। तुम्हें सचाई कहनी हो सचाई कह दो।' पाया है, अब यह स्वीकार भी कैसे करें कि यह नर्क है! इतनी उसने कहा, 'अब क्या खाक सचाई कहेंगे! अब नाक तो कट जद्दोजहद से पाया है, इतने संघर्ष से पाया है; अब यह कैसे | ही गई है, अब और कटवानी है क्या, सचाई कहकर?' स्वीकार करें कि यह नर्क है! उसने जाकर गांव में शोरगुल मचा दिया। वह नाचता हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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