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________________ परम औषधि ः साक्षी-भाव हो गई। असली बात तो हो गई। क्योंकि बिना बीज के पड़े वृक्ष कि यह आदमी पागल है, किसलिए धन इकट्ठा कर रहा है! कभी पैदा नहीं हो सकता। और बीज पड़ गया है, तो वृक्ष भी। लेकिन जो नशे में है, उसे भर दिखाई नहीं पड़ता। कोई आदमी पैदा हो जायेगा। पद के नशे में है। सबको दिखाई पड़ता है कि क्यों पागल हुए जा महावीर कहते हैं, अगर वृक्ष को पैदा होने से रोकना हो तो बीज रहे हो! बड़ी से बड़ी कुर्सी पर बैठकर भी क्या हो जायेगा? जो को ही भूमि में पड़ने से रोक लेना। इसलिए वे कहते हैं, राग और बैठे गये हैं, जरा उनको तो देखो कि क्या हुआ! बहुत धन के द्वेष कर्म के बीज, मूल कारण हैं। जिन्होंने अंबार लगा लिये हैं, उन्होंने क्या पाया? लोग कर्म से बचना चाहते हैं। लोग कहते हैं, कर्मों से कैसे | __ एंडरू कारनेगी, अमेरीका का करोड़पति, मर रहा था, तो उसने छुटकारा होगा? लोग कहते हैं, कर्मजाल से कैसे मुक्त हों? अपने सेक्रेटरी से पूछा कि एक बात पूछनी है। कई बार सोची, महावीर कहते हैं, कर्मजाल से मुक्त होना है तो बीज को पकड़ो; | फिर मैं संकोच कर कर रह गया; अब तो मरने का दिन भी आ शुरू से ही शुरू करो; प्रारंभ से ही प्रारंभ करो। मध्य से कुछ भी गया, अब पूछ ही लूं तुझसे। तू मेरे पास कोई तीस साल से काम नहीं हो सकता। करता है। करीब-करीब जिंदगीभर का साथ है। एक बात ईमान राग का अर्थ है : किसी चीज से लगाव। द्वेष का अर्थ है: से बता दे, अगर परमात्मा ने तुझ से पूछा होता पैदा होने के पहले किसी चीज से विरोध। राग का अर्थ है : मैत्री बनाना। द्वेष का कि तू एंडरू कारनेगी बनना चाहता है या एंडरू कारनेगी का अर्थ है : शत्रुता बनानी। तो न तुम्हारा कोई मित्र हो न कोई शत्रु। सेक्रेटरी बनना चाहता है, तो तूने क्या मांगा होता? न तुम कुछ चाहो और न तुम किसी चीज से विकर्षित होओ। जो | उसने कहा, 'मैं सेक्रेटरी ही बनना मांगता।' एंडरू कारनेगी हो रहा है, तुम उसे चुपचाप बिना किसी चुनाव के स्वीकार करते उठकर बैठ गया। उसने कहा, 'तेरा मतलब ?' उसने कहा कि चले जाओ। यह महावीर के ध्यान का सूत्र है। जो हो रहा मैं आपको तीस साल से देख रहा हूं, आपने कुछ भी नहीं पाया। है--सुबह आये सुबह, सांझ आये सांझ, सुख आये सुख, दुख | दौड़े बहुत, पहुंचे कहीं भी नहीं। इकट्ठा बहुत कर लिया, लेकिन आये दुख; न तो तुम सुख को कहो कि और-और आना, न तुम जितनी चिंता और संताप आपको है, उसे देख-देखकर मैं रोज दुख को कहो कि अब दुबारा मत आना, न तो तुम सुख के गले में भगवान को जब रात प्रार्थना करता हूं तो मैं कहता हूं, हे फूल मालायें पहनाओ और न तुम दुख का अपमान करो-जो भगवान! तेरी बड़ी कृपा! एंडरू कारनेगी तूने मुझे न बनाया। आ जाये द्वार पर, द्वार खुला हो! दुख आये दुख को बसा लेना, अच्छा किया। फंसा देता तो मुश्किल हो जाती। सुख आये सुख को बसा लेना; जाता हो जाने देना, क्षणभर को | एंडरू कारनेगी ने अपने सेक्रेटरी को कहा कि मैं तो मर रहा हूं, ना मत! न तो किसी को धकाना, न किसी को बुलाना। लेकिन इस बात को तू सारी दुनिया में प्रचारित कर देना। मैं तुझ जिसको कृष्णमूर्ति 'च्वायसलेस अवेयरनेस' कहते हैं। महावीर से राजी हूं। मैं व्यर्थ ही दौड़ा-धूपा।। उसी को 'निर्विकल्प ध्यान' कहते हैं। इतना धन ! दस अरब नगद रुपये एंडरू कारनेगी छोड़कर मरा तुम चुनाव मत करना, क्योंकि चुनाव से ही जकड़ शुरू होती और अरबों का और फैलाव! कहते हैं, उससे बड़ा धनी आदमी है। चुनाव से ही तुम बंध जाते हो। और एक दफा चुनाव की सिवाय निजाम हैदराबाद को छोड़कर और कोई न था। पर पाया तरंग उठ गई कि जल्दी ही समय पाकर कृत्य भी हो जायेगा। क्या? न तो सो सकता था ठीक से। अपने बच्चों को भी ठीक तो कहां जागना है? जागना है जहां से बीज शुरू होता है। से मिल नहीं सकता था। पत्नी भी अपनी अपरिचित जैसी हो गई 'कर्म मोह से उत्पन्न होता है।' मोह का अर्थ होता है : तंद्रा। थी; क्योंकि काम से फुर्सत कहां थी! कहते हैं कि चपरासी भी मोह का अर्थ होता है : मूर्छा, प्रमाद। हम सोए-सोए लोग हैं: दफ्तर में नौ बजे पहुंचता, एंडरू कारनेगी आठ बजे पहुंच जैसे हमने नशा किया हुआ है। नशे हमारे अलग-अलग हैं, जाता। चपरासी नौ बजे आता, क्लर्क दस बजे आते, मैनेजर शराबें हमारी अलग-अलग हैं; लेकिन हम सबने नशा किया ग्यारह बजे आते, डायरेक्टरर्स एक बजे आते; डायरेक्टर तीन हुआ है। कोई आदमी धन के नशे में है। सबको दिखाई पड़ता है | बजे गये, मैनेजर चार बजे गया, क्लर्क भी पांच बजे गये, 199 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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