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________________ परम ओषधि : साक्षी-भाव गया। गांव में कई लोग तैयार हो गये नाक कटवाने को। कहते याचना है, वह जो अधुरी वासना है, वह जो मांगने की और होने हैं, धीरे-धीरे उस पूरे गांव की नाक कट गई। खबर राजा तक की अतृप्त कामना है, वह फिर नया जन्म देगी। तुम जन्मते हो, पहुंची। राजा भी आया देखने, गांव में लोग नाच रहे हैं, चीख क्योंकि तुम्हारा जीवन अतृप्त है। और तुमने यह नहीं देखा कि रहे हैं, बड़े प्रसन्न हैं। राजा ने कहा, 'हद्द हो गई! ईश्वर को पाने जीवन का अतृप्त होना स्वभाव है। बहुत बार हम जन्मते की इतनी सरल तरकीब! न सुनी, न शास्त्रों में पढ़ी।' हैं-कोई हमें जन्माता नहीं। तने लोगों को हो गया है तो राजा तक तैयार हो महावीर परम वैज्ञानिक हैं। वे यह नहीं कहते कि परमात्मा गया। उसके वजीर ने कहा, 'ठहरो महाराज! इतनी जल्दी मत जन्माता है, कि वह लीला कर रहा है। क्योंकि यह 'लीला' जरा करो, क्योंकि इस आदमी को मैं...इसकी शक्ल मुझे पहचानी बेहदी मालूम पड़ती है। यह लीला तो बताती है कि परमात्मा मालूम पड़ती है। यह तो दूसरे गांव का आदमी है और वहां के कोई मेसोचिस्ट होगा, कोई पर-पीड़नकारी। और पाप की लोगों ने इसकी नाक काटी थी। तुम जरा रुको। नाक मत कटवा परिभाषा यही है : 'पापं पर-पीड़नम्!' लेना। तुम्हारे कटवाने पर तो बड़ा उपद्रव हो जायेगा। फिर तो पाप की परिभाषा यही है कि दूसरे को सताना पाप है। तो यह पूरा राज्य कटवा लेगा।' परमात्मा से बड़ा तो पापी कोई नहीं हो सकता, क्योंकि इतने जिसकी कट जाती है, वह फिर उसकी बचाने की भी चेष्टा लोगों को पैदा कर रहा है, और सता रहा है। तो महावीर कहते करता है। मैंने अब तक कोई धनपति नहीं देखा जिसकी नाक | हैं, ऐसे परमात्मा की बात ही मत उठाओ; ऐसा कोई परमात्मा कट न गई हो; न कोई राजनेता देखा जिसकी नाक कट न गई नहीं है। परमात्मा हो तो यह पीड़ा हो नहीं सकती, क्योंकि हो। लेकिन अब किससे कहें! अब यह दुख अपना किससे परमात्मा पर-पीड़न में थोड़े ही रस लेगा। कहें, किससे रोयें! अब जो हो गया, हो गया। और अपनी दूसरे को दुख देने में क्या लीला हो सकती है? लोग सड़ रहे इज्जत यही है, इसी में है कि कहे चले जाओ कि बड़े आनंदित हैं, हैं, गल रहे हैं, रो रहे हैं, संताप से भरे हैं-और परमात्मा मजा बड़े प्रसन्न हैं। ले रहा है! नहीं, यह बात सच नहीं हो सकती। यह मजा जरा तुम, जिन्होंने पा लिया है, उनकी तरफ जरा गौर से देखना। रुग्ण है, परवर्टिड। यह मजा विक्षिप्त का है। पागल होगा जिन्होंने बड़े महल बना लिये हैं, उनकी तरफ जरा गौर से परमात्मा, अगर यह उसकी लीला है। बच्चा पैदा नहीं हुआ और देखना। जिनके पास तिजोड़ियां भर गई हैं, उनको जरा गौर से मर जाता है, मां रो रही है, चीख रही है, बेटे रो रहे हैं, बेटियां रो देखना। कुछ मिला है? | रही हैं, पति रो रहा है, पत्नी रो रही है, सब तरफ रोना मचा है, उनको गौर से देखकर तुम्हारा राग-द्वेष क्षीण होगा। और तुमने हाहाकार है, युद्ध हैं, लाखों लोग मर रहे हैं, गल रहे हैं, सड़ रहे भी राग-द्वेष करके बहुत देख लिया है-थोड़ा और ज्यादा, हैं, सब तरफ संघर्ष है, सब तरफ खून-पात है, सब तरफ मात्रा में भेद होगा लेकिन तुमने पाया क्या? छीना-झपटी है और फिर भी पाता कोई कुछ नहीं, हाथ खाली राग से भी दुख मिलता है, द्वेष से भी दुख मिलता है। जो के खाली! यह लीला कैसी है ? यह तो दुख-स्वप्न है। अपने हैं वे भी दुख ही दे जाते हैं; जो पराये हैं वे तो दे ही जाते हैं। महावीर कहते हैं, नहीं, परमात्मा को बीच में मत लाओ। चीजें दुश्मन तो दुख देता ही है, मित्रों से तुम्हें कुछ सुख मिला? सीधी देखो। परमात्मा को बीच में लाने से अड़चन हो जाती है। 'राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। कर्म मोह से उत्पन्न होता है। परमात्मा को बीच में लाने से ऐसा ही हो जाता है जैसे प्रिज्म में से वह जन्म-मरण का मूल है।' सूरज की किरण निकले, सात टुकड़ों में टूट जाती है, खंड-खंड और फिर जब इस जीवन में तुम अधूरे मरते हो, अतृप्त, तो | हो जाती है। हटाओ प्रिज्म को बीच से; सूरज की किरण को आकांक्षा रहती है मरते वक्त और नया जीवन पाने की। क्योंकि सीधा ही देखें; उसके स्वभाव को सीधा ही पहचानें। कुछ पूरा न हुआ; खाली के खाली, रिक्त के रिक्त आ गये; महावीर कहते हैं, तुम ही अपने जीवन के कारण हो। महावीर हाथ भिक्षा के पात्र ही बने रहे, कभी कुछ भरा नहीं। तो वह जो तुम्हारा उत्तरदायित्व तुम्हें परिपूर्णता से देते हैं। महावीर कहते हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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