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________________ ५८० गो० जीवकाण्डे वस्या एकदेशेन संत्यस्मिन्निति वस्तुपूर्वाधिकारः। पूरयति श्रुतार्थान् संबिभर्तीति पूर्व । सं संगृह्य पर्यायादीनि पूर्वपय्यंतानि स्वीकृत्य अस्यंते क्षिप्यते विकल्प्यते इति समासाः। पर्यायज्ञानदत्तणिनुत्तरविकल्पंगळु पर्यायसमासंगर्छ । अक्षरज्ञानदत्तणिनुत्तरविकल्पंगळक्षरसमासंगळु इंतु मुंदल्लडयोळं पदसमासादिगळु योज्यंगळप्पवु। ___ इल्लि पूवंगळु १४ वस्तुगळु १९५ प्राभृतकंगळु ३९०० द्विकवारप्राभृतकंगळु ९३६०० अनुयोगंगळु ३७४४०० प्रतिपत्तिकसंघातपदंगळु संख्यातसहस्रगुणितक्रमंगळु । एकपदाक्षरंगळु १६३४८३०७८८८ समस्ताक्षरंगळु रूपोनेकट्ठप्रमितंगळु १८४४६७४४०७३७०९५९१६१५ ईयक्षरंगळनेकपदाक्षरंगळि प्रमाणिसुत्तं विरलु द्वादशांगपदप्रमाणमक्कुमें दु लब्धमं पेन्दपं: बारुत्तरसयकोडी तेसीदी तह य होति लक्खाणं । अट्ठावण्णसहस्सा पंचेव पदाणि अंगाणं ।।३५०।। द्वादशोत्तरं शतं कोटचस्त्र्यशीतिस्तथा च भवंति लक्षाणामष्टपंचाशत् सहस्राणि पंचैव पदान्यंगानां॥ भतं परिपूर्ण प्राभतं वस्तुनोऽधिकारः, प्राभतमिति संज्ञा अस्यास्तीति प्राभतकं, प्राभूतकस्याधिकारः प्राभृतकप्राभृतकम् । वसन्ति पूर्वमहार्णवस्य अर्थाः एकदेशेन सन्त्यस्मिन्निति वस्तु । पूर्वाधिकारः पूरयति श्रुतार्थान् संबिभर्तीति पूर्वम् । सं-संगृह्य पर्यायादीनि पूर्वपर्यन्तानि स्वीकृत्य अस्यन्ते क्षिप्यन्ते विकल्प्यन्ते इति समासाः । पर्यायज्ञानादुत्तरविकल्पाः पर्यायसमासाः । अक्षरज्ञानादुत्तरविकल्पा अक्षरसमासाः। एवमग्रेऽपि सर्वत्र पदसमासादयो योज्याः । अत्र पूर्वाणि १४, वस्तुनि १९५, प्राभतकानि ३९००, द्विकवारप्राभूतकानि ९३६००, अनुयोगाः ३७४४००, प्रतिपत्तिकसंघातपदानि संख्यातसहस्रगुणितक्रमाणि एकपदाक्षराणि १६३४८३०७८८८, समस्ताक्षराणि रूपोनैकट्ठप्रमितानि १८४४६७४४०७३७०९५५१६१५ । एतेष्वक्षरेषु एकपदाक्षरैः प्रमाणितेषु २० यल्लब्धं तद्द्वादशाङ्गपदप्रमाणं शेषमङ्गबाह्याक्षराणि ॥३४८-३४९॥ तत्र प्रथमं तत्पदप्रमाणमाह सम्बन्धी अर्थोंसे जो 'आभृत' परिपूर्ण है,वह प्राभृत है। और प्राभृत संज्ञा होनेसे प्राभृतक है। प्राभृतकके अधिकारको प्राभृतक-प्राभृतक कहते हैं। जिसमें पूर्व नामक महासमुद्रके अर्थ 'वसन्ति' एक देशसे रहते हैं, वह वस्तु है। यह पूर्वोका अधिकार है । श्रुतके अर्थोंका 'पूर यति' पोषण करता है, वह पूर्व है। सं अर्थात् पर्यायसे लेकर पूर्व पर्यन्त भेदोंको 'अस्यन्ते' २५ अपनाता है, वह समास है। पर्याय ज्ञानसे उत्तर भेद पर्याय समास हैं, अक्षर ज्ञानसे उत्तर भेद अक्षर समास हैं। इसी प्रकार आगे भी पदसमास आदिकी योजना कर लेना । पूर्व चौदह हैं । वस्तु एक सौ पंचानबे हैं। प्राभृतक उनतालीस सौ हैं । प्राभृतक-प्राभृतक तिरानवे हजार छह सौ हैं। अनुयोग तीन लाख चौहत्तर हजार चार सौ हैं। प्रतिपत्तिक, संघात और पद उत्तरोत्तर क्रमसे संख्यात हजार गुणित हैं। एक पदके अक्षर सोलह सौ चौंतीस कोटि, तेरासी लाख सात हजार आठ सौं अठासी है। समस्त अक्षर एक कम एकट्ठी प्रमाण १८४४६७४४०७३७०९५५०६१५ हैं। इन अक्षरों में एक पदके अक्षरोंसे भाग देनेपर जो लब्ध आया,वह द्वादशांगके पदोंका प्रमाण है और शेष बचा वह अंगबाह्यके अक्षरोंका प्रमाण है ॥३४८-३४९॥ पहले द्वादशांगके पदों की संख्या कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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