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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५७७ पूर्वश्रुतज्ञानद मेळे प्रत्येकमेकैकाक्षरवृद्धिसहचरितपदादिवृद्धियिदं चतुर्दशवस्तुगळु सलुत्तं विरलु रूपोनतावन्मात्रोत्पादपूर्वसमासज्ञानविकल्पंगळु सलुत्तं विरलु तच्चरमोत्कृष्टोत्पादपूर्वसमासज्ञानविकल्पद मेले एकाक्षरवृद्धियागुत्तविरलु अग्रायणीयपूर्वश्रुतज्ञानमक्कु-। मितु मुंदे मुंद अष्ट अष्टादश द्वादश द्वादश षोडश विशति त्रिंशत् पंचदश दश दश दशं दश वस्तुगळु क्रमवृद्धंगळागुत्तं विरलु रूपोन रूपोन तावन्मात्र तावन्मात्र तत्तत् पूर्वसमासज्ञानविकल्पंगळु सलुत्तं विरलु तत्तत्पूर्व- ५ समालोत्कृष्ठस्थानविकल्पंगळो कैकाक्षरवृद्धियागुत्तं विरलु तत्तद्वीर्यप्रवादपूर्व-अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व ज्ञानप्रवादपूर्व-सत्यप्रवादपूर्व-आत्मप्रवादपूर्व-कर्मप्रवादपूर्व-प्रत्याख्याननामधेयपूर्वविद्यानुवादपूर्व-कल्याणवादपूर्व-प्राणावादपूर्व-क्रियाविशालपूर्व-त्रिलोकबिंदुसारपूर्वमेंबी श्रुतज्ञानंगळुत्पत्तिगळप्पुवु। इल्लि त्रिलोकबिंदुसारपूर्वक समासाभावमेर्कदोडे उत्तरज्ञानविकल्परहितदिद। अनंतरं चतुर्दशपूर्ववस्तु वस्तुप्राभृतकसंख्येयं पेन्दपरु : पण णउदिसया वत्थू पाहुडया तियसहस्सणवयसया । एदेसु चोद्दसेसु वि पुन्वेसु हवंति मिलिदाणि ॥३४७॥ पंचनवतिशतानि वस्तूनि प्राभृतकानि त्रिसहस्रनवशतानि । एतेषु चतुर्दशसु पूर्वेषु सर्वेषु भवंति मिलितानि ॥ उत्पादपूर्वमादियागि लोकबिंदुसारावसानमाद चतुर्दशपूर्वगळोळु वस्तुगळु सर्वमुं कूडि पंचनवत्युत्तरशतप्रमितंगळप्पुवु १९५ प्राभृतकंगळु सर्वमुं कूडि नवशतोत्तरत्रिसहस्रप्रमितंगळप्पुवु अग्रायणीयपूर्वश्रुतज्ञानं भवति । एवमग्रेऽग्रेऽष्टाष्टादशद्वादशद्वादशषोडशविंशतित्रिंशत्पञ्चदशदशदशदशदशवस्तुषु क्रमेण वृद्धेषु रूपोनतावन्मात्रतावन्मात्रतत्तत्पूर्वसमासज्ञानविकल्पेषु गतेषु तत्तत्पूर्वसमासोत्कृष्टज्ञानविकल्पस्योपरि एककाक्षरे वृद्ध सति तत्तद्वीर्यप्रवादपूर्वास्तिनास्तिप्रवादपूर्वज्ञानप्रवादपूर्वसत्यप्रवादपूर्वात्म- २० प्रवादपूर्वकर्मप्रवादपूर्वप्रत्याख्यानपूर्वविद्यानुवादपूर्वकल्याणवादपूर्वप्राणवादपूर्व क्रियाविशालपूर्वत्रिलोकबिन्दुसार . पूर्वनामश्र तज्ञानान्युत्पद्यन्ते । अत्र त्रिलोकबिन्दुसारस्य तु समासो नास्ति उत्तरज्ञानविकल्पाभावात्।।३४५-३४६।। अथ चतुर्दशपूर्वगतवस्तुप्राभृतकसंख्यां कथयति उत्पादपूर्वमादिं कृत्वा त्रिलोकबिन्दुसारावसानेषु चतुर्दशपूर्वेषु वस्तूनि सर्वाणि मिलित्वा पञ्चनवत्यत्तरशतप्रमितानि १९५ भवन्ति । प्राभतकानि तु सर्वाणि मिलित्वा नवशतोत्तरत्रिसहस्रप्रमितानि भवन्ति २५ उत्कृष्ट उत्पाद पूर्व समास ज्ञान विकल्पके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर अग्रायणी पूर्व श्रुतज्ञान होता है। इसी प्रकार आगे-आगे आठ, अठारह, बारह, बारह, सोलह, बीस, तीस, पन्द्रह, दस, दस, दस, दस वस्तुओंकी क्रमसे वृद्धि होनेपर एक अक्षर कम उतने-उतने उसउस पूर्व समास ज्ञान पर्यन्त उस-उस पूर्व समास ज्ञान सम्बन्धी विकल्प होते हैं। उस-उस पूर्व समास ज्ञानके उत्कृष्ट विकल्पके ऊपर एक-एक अक्षर बढ़ानेपर उस-उस वीय प्रवाद पूर्व अस्ति, नास्ति, प्रवाद, पूर्व आदि त्रिलोकबिन्दुसार पर्यन्त पूर्व श्रुतज्ञान उत्पन्न होते हैं। त्रिलोकबिन्दुसारका समास ज्ञान नहीं है, क्योंकि उसके आगे श्रुतज्ञानके विकल्प नहीं हैं ॥३४५-३४६॥ आगे चौदह पूर्वगत वस्तुओंके प्राभृतक नामक अधिकारोंकी संख्या कहते हैं उत्पाद पूर्वसे लेकर त्रिलोकबिन्दुसार पर्यन्त चौदह पूर्वोमें मिलकर सब वस्तु ... अधिकार एक सौ पंचानवे होते हैं। तथा सब प्राभृत मिलकर तीन हजार नौ सौ होते हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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