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________________ ५७६ गो० जीवकाण्डे त्रिंशत् पंचदश दश दश दश दश वस्तुगळु वृद्धंगळागुत्तिरलु । उप्पापुव्यग्गेणिय विरियपवादत्थिणत्थियपवादे । णाणासच्चपवादे आदाकम्मपवादे य ॥३४५॥ पच्चक्खाणे विज्जाणुवादकल्लाणपाणवादे य । किरियाविसालपुव्वे कमसोथ तिलोय बिंदुसारे य ॥३४६॥ उत्पादपूर्वाग्रायणीयवीर्यप्रवादास्तिनास्तिप्रवादे। ज्ञानसत्यप्रवादे आत्मकर्मप्रवादे च ॥ प्रत्याख्याने विद्यानुवादकल्याणप्राणवादे च। क्रियाविशालपूर्वे क्रमशोथ त्रिलोकबिंदुसारे च॥ यथाक्रमदिंदमुत्पादपूर्वमग्रायणीयपूर्व वीर्यप्रनादपूर्वमस्तिनास्तिप्रवादपूर्व ज्ञानप्रवादपूर्व सत्यप्रवादपूर्वं आत्मप्रवादपूर्व कर्मप्रवादपूर्व प्रत्याख्यानपूर्व विद्यानुवादपूवं कल्याणवाद१० पूर्व प्राणवादपूर्व क्रियाविशालपूर्व त्रिलोकबिंदुसार पूर्व वेंदितु चतुर्दशपूर्वगळप्पुविनवरोळु पूर्वोक्तवस्तुश्रुतज्ञानद मेल मुंद प्रत्येकमैकवर्णवृद्धिसहचरितपदादिवृद्धियिदं दशवस्तुप्रमितवस्तु. समासज्ञानविकल्पंगळु सलुत्तं विरलु रूपोनतावन्मात्रवस्तुश्रुतसमासज्ञानविकल्पंगळोळु चरमवस्तु. समासोत्कृष्टविकल्पद मेले एकाक्षरवृद्धियागुत्तं विरलुत्पादपूर्वश्रुतज्ञानमक्कुल्लिदत्तलावुत्पाद पूर्वाधिकारेषु यथासंख्यं दशचतुर्दशाष्टाष्टादशद्वादशद्वादशषोडशविंशतित्रिंशत्पञ्चदशदशदशदशदशवस्तुषु वृद्धेषु १५ सत्सु- ॥३४४॥ यथाक्रम उत्पादपूर्व आग्रायणीयपूर्व वीर्यप्रवादपूर्व अस्तिनास्तिप्रवादपूर्वं ज्ञानप्रवादपूर्व सत्यप्रवादपूर्व आत्मप्रवादपूर्व कर्मप्रवादपूर्व प्रत्याख्यानपूर्व विद्यानुवादपूर्व कल्याणवादपूर्व प्राणवादपूर्व क्रियाविशालपूर्व त्रिलोकबिन्दुसारपूर्वं चेति चतुर्दशपूर्वाणि भवन्ति । एतेषु पूर्वोक्तवस्तुथ तज्ञानस्य उपरि-अग्रे प्रत्येकमेकैकवर्णवृद्धिसहचरितपदादिवृद्धया दशवस्तुप्रमितवस्तुसमासज्ञानविकल्पेषु गतेषु रूपोनैलावन्मात्रवस्तुश्रु तसमासज्ञानविकलषु चरमवस्तुसमासोत्कृष्टविकल्पस्योपरि एकाक्षरवृद्धौ सत्यां उत्पादपूर्वश्र तज्ञानं भवति । ततः उत्पादपूर्वश्रुतज्ञानस्य उपरि प्रत्येकमेकैकाक्षरवृद्धिसहचरितपदादिवृद्धया च तुर्दशवस्तुषु वृद्धेषु रूपोनतावन्मात्रोत्पादपर्वसमासज्ञानविकल्पेष गतेष तच्चरमोत्कृष्टोत्पादपूर्वसमासज्ञानविकल्पस्य उपरि एकाक्षरवद्धौ सत्यां होते आगे कहे गये उत्पाद पूर्व आदि चौदह अधिकारोंमें क्रमसे दस, चौदह, आठ, अठारह, बारह, बारह, सोलह, बीस, तीस, पन्द्रह, दस, दस, दस, दस वस्तु अधिकार होते हैं। २५ इतने वस्तु अधिकारोंकी वृद्धि होनेपर ।।३४४।। यथा क्रम उत्पाद पूर्व, अग्रायणीपूर्व,वीर्य प्रवाद पूर्व, अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व, ज्ञानप्रवाद पूर्व, सत्य प्रवाद पूर्व, आत्मप्रवादपूर्व, कर्मप्रवादपूर्व, प्रत्याख्यान पूर्व, विद्यानुवादपूर्व, कल्याणवाद पूर्व, प्राणवादपूर्व, क्रियाविशाल पूर्व, त्रिलोकबिन्दुसार पूर्व ये चौदह पूर्व होते हैं । इनमें से प्रत्येकमें पूर्वोक्त वस्तु श्रुतज्ञानके ऊपर एक-एक अक्षरकी वृद्धि के साथ दस वस्तु प्रमाण वस्तु समास ज्ञानके विकल्पोंमें एक अक्षरसे हीन विकल्प पर्यन्त वस्तु श्रुत समास ज्ञानके विकल्प होते हैं। उनमें अन्तिम वस्तु समासके उत्कृष्ट विकल्पके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर उत्पाद पूर्व श्रुतज्ञान होता है। फिर उत्पादपूर्व श्रुतज्ञानके ऊपर एकएक अक्षरकी वृद्धि के क्रमसे पद आदिकी वृद्धिके साथ चौदह वस्तुओंकी वृद्धि होनेपर उसमें एक अक्षर कम विकल्प पर्यन्त उत्पाद पूर्व समास ज्ञानके विकल्प होते हैं। उसके अन्तिम ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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