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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५५१ नंतभागासंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु प्रत्येकं सूच्यंगुलासंख्यातभागमानंगळात्तिसि मुंद मत्तमनंतवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातभगमात्रंगळु सलुत्तं विरलु मत्तमो'दु संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानं पुटुगु ज १५ । १५ मी क्रमदिदमी संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळं संख्यातगुण १५ । १५ वृद्धियुक्तस्थानंगळुमसंख्यातगुणवृद्धियुक्तस्थानंगळु यथाक्रमावस्थितरूपसूच्यंगुलासंख्यातभागमात्रवारंगळु संदु संदु मतं मुंद अनंतभाग असंख्यातभागसंख्यातभागसंख्यातगुणवृद्धियुक्तस्थानंगळु ५ प्रत्येकं कांडक कांडक प्रमितंगळु संदु संदु मत्तं मुंद अनंताऽऽसंख्यातसंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु प्रत्येक कांडककांडकमितंगळु संदु संदु मत्तं मुंद, अनंतासंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु प्रत्येकं कांडककांडकप्रमितंगळु नडनडेदु मुंद मत्तमनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळे सूच्यंगुलासंख्यातयुक्तस्थानानि प्रत्येकं सूच्यङ्गुलासंख्यातभागमात्राणि आवर्त्य पुनरनन्तभागवृद्धियुक्तस्थानानि सूच्यङ्गुला संख्यातभागमात्राणि नीत्वा पुनरेकं संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानं ज १५ । १५ अनेन क्रमेण संख्यातभाग- १० १५ । १५ वृद्धियुक्तस्थानान्यपि सूच्यङगुलासंख्यातभागमात्राणि नीत्वा । अग्रे प्राग्वदनन्तभागासंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानानि सूच्यगुलासंख्यातभागमात्राणि नीत्वा पुनरनन्तभागवृद्धियुक्तस्थानानि सूच्यङ्गुलासंख्यातभागमात्राणि नीत्वा एक संख्यातगणवद्धियक्तस्थानं भवति । एवं संख्यातगणवृद्धियुक्तस्थानान्यपि, संख्यातभागमात्राणि नीत्वा पुनः अनन्तभागासंख्यातभागसंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानानि प्राग्वत्सूच्यङ्गुलासंख्यातभागमात्राणि नीत्वा पुनरनन्तभागासंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानानि पूर्ववत्सूच्यफुलासंख्यातभागमात्राणि १५ नीत्वा' (पुनरनन्तभागवृद्धियुक्तस्थानानि सूच्यगुलासंख्यातकभागमात्राणि नीत्वा ) एकमसंख्यातगुणवृद्धियुक्तं स्थानं भवति । एवमसंख्यातगुणवृद्धि युक्तस्थानान्यपि सूच्यङ्गलासंख्यातभागमात्राणि नीत्वा अग्रे अनन्तभागासंख्यातभागसंख्यातभागसंख्यातगुण वृद्धियुक्तस्थानानि प्रत्येकं काण्डककाण्डकप्रमितानि नीत्वा पुनरनन्तासंख्यात वृद्धि युक्त और असंख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थानोंको करके पुनः सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र अनन्त भाग वृद्धि स्थानोंके होनेपर एक संख्यात गुण वृद्धि युक्त स्थान होता है। इस २० प्रकार संख्यात गुण वृद्धि युक्त स्थान भी सूच्यंगुलके असंख्यात भाग मात्र होनेपर पुनः अनन्त भाग वृद्धि युक्त स्थान, असंख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थान और संख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थानोंमें से प्रत्येक पूर्ववत् सूच्यंगुलके असंख्यात भाग मात्र होनेपर पुनः अनन्त भाग वृद्धि युक्त असंख्यात भाग वृद्धि युक्त और संख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थान सूच्यंगुलके असंख्यात भाग मात्र होनेपर तथा पुनः अनन्त भाग वृद्धि युक्त स्थान सूच्यंगुलके असंख्यात २५ भाग मात्र होनेपर एक असंख्यात गुण वृद्धि युक्त स्थान होता है। इस प्रकार असंख्यात गुण वृद्धि युक्त स्थान भी सूच्यंगुलके असंख्यात भाग मात्र होनेपर आगे अनन्त भाग वृद्धि युक्त, असंख्यात भाग वृद्धि युक्त तथा संख्यात गुण वृद्धि युक्त स्थानों में से प्रत्येकके सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग होनेपर पुनः अनन्त भाग वृद्धि युक्त, असंख्यात भाग वृद्धि युक्त, संख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थानोंमें से प्रत्येकके सुच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र होनेपर पुनः अनन्त ३० भाग वृद्धि और असंख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थानों में से प्रत्येकके सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग १. ब कोष्ठान्तर्गत भागो नास्ति । २. सूच्यगुलसंज्ञा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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