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________________ ५५० गो० जीवकाण्ड संख्यातभागमात्रंगळु सलुत्तमिरलु वो दसंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानमक्कुंज = a इल्लियुव्वकर्म चतुरंकदिद भागिसि तदेकभागमनल्लिये कूडिदप्पुरिदं जघन्यं साधिकमक्कुं मुंदेल्लावृद्धिगळ्ग मी क्रममेयक्कुं तंतम्म परगणुव्वर्कगळं भागिसिद भागवृद्धिगळं गुणिसिद गुणवृद्धिगळुमरियल्पडुगुं। मत्तं मुन्निनंताऽनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातभागमानंगळु सलुत्तं विरलु मत्तमोद५ संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानमक्कु ज = = मो क्रमदिंदमसंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातभागमानंगळु सलुत्तं विरलु मत्तमनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातभागमात्रंगळु सलुत्तं विरलु ओंदु संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानमक्कुं ज १५ मुंदे मत्तं मुन्निनंत मात्राणि नीत्वा एकं असंख्यातभागबृद्धियुक्तं स्थानं भवति ज = a । अत्र उर्वकं चतुरङ्केन भक्त्वा तदेकभागः तत्रैव युतोऽस्तीति जघन्यं साधिकं भवति । अग्रेऽपि सर्वबृद्धीनां अयमेव क्रमो भवति । स्वस्वप्राक्तनोवंक १० भक्त्वा तदेकभागवृद्धिरवगन्तव्या। पुनः प्राग्वदनन्तभागवृद्धियुक्तस्थानानि सूच्यमुलासंख्यातभागमात्राणि नीत्वा पुनरपरमसंख्यातभागवृद्धियुक्तं स्थानं भवति ज = a = a अनेन क्रमेण असंख्यातभागवृद्धियुक्त sa a स्थानान्यपि सूच्यगुलासंख्यातभागमात्राणि नीत्वा पुनरनन्तभागवृद्धियुक्तस्थानानि सूच्यमुलासंख्यातभाग मात्राणि नीत्वा एकं संख्यातभागवृद्धियुक्तं स्थानं भवति ज १५ । पुनः पूर्ववदनन्तभागासंख्यातभागवृद्धि १५ होनेपर एक असंख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थान होता है। यहाँ ऊवक जो अनन्त भाग १५ वृद्धि युक्त अन्तिम स्थान है , उसमें चतुरंकसे भाग देनेपर जो एक भागका प्रमाण आवे; उसे उसीमें जोड़ा, सो यहाँ जघन्य ज्ञान साधिक होता है। आगे भी सब वृद्धियोंका यही क्रम होता है। अपने-अपनेसे पूर्वके ऊबकमें भाग देनेपर जो एक भाग आवे, उतनी वृद्धि जानना। पुनः पूर्वकी तरह सूच्यंगुलके असंख्यात भाग मात्र अनन्त भाग वृद्धि युक्त स्थानोंके बीतने पर पुनः आगेका असंख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थान होता है। २० इस क्रमसे सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र असंख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थान बिताकर पुनः सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र अनन्त भाग वृद्धिसे युक्त स्थान बिताकर एक संख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थान होता है। पुनः पूर्ववत् प्रत्येक अनन्त भाग वृद्धि युक्त तथा असंख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थानोंके सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र होनेपर तथा पुनः सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र अनन्त भाग वृद्धि युक्त स्थान होनेपर पुनः एक संख्यात २५ भाग वृद्धि युक्त स्थान होता है। इसी क्रमसे संख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थान भी सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र होनेपर आगे पूर्ववत् सूच्यंगुलके असंख्यात भाग मात्र अनन्त भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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