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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५३१ पूर्वोक्तानंतभागाद्ययंसंदृष्टिगळ्गे मत्तं लघुसंदृष्टिनिमित्तं षड्विधवृद्धिगळगे यथासंख्यमागियन्यनामसंदृष्टिगळ् पेळल्पट्टप्पुवदेते दोडेनंतभागक्के उव्वंक।उ।मसंख्यातभागक्क चतुरंकं । ४। संख्यात भागक्के पंचांकं । ५ । संख्यातगुणक्के षडंक-।६। मसंख्यातगुणक्के सप्तांक । ७ । मनंतगुणक्कष्टांक । ८ । मक्कुं। अंगुल असंखभागे पुव्वगवड्ढीगदे दु परवड्ढी । एक्कं वारं होदि हुँ पुण पुणो चरिमउढित्ती ॥३२६॥ अंगुलासंख्यातभागान् पूर्ववृद्धौ गतायां तु परवृद्धिरेकं वारं भवति खलु पुनःपुनश्चरमवृद्धिरिति ॥ अंगुलासंख्यातभागान् सूच्यंगुलासंख्यातभागमात्रवारंगलनु पूर्ववृद्धौ गतायां सत्यां पूर्ववृद्धियोलुसलुत्तंविरलु । तु मत्ते परवृद्धिरेफवारं भवति खलु। मुंदणवृद्धियोंदु बारियहुदु । स्फुट- १० मागियिती प्रकारदिदं पुनःपुनश्चरमपयंतं ज्ञातव्यं । मत्त मत्त चरमवृद्धिपर्यंत अरियल्पडुम. देते दोडे पर्यायाख्यजघन्यज्ञानद मेलनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातेकभागमात्रंगळु पायसमासज्ञानविकल्पंगळु नडेदोडाम्मे असंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानमक्कं । ४। मत्तमंत अनंतकभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्रंगळु नडदु मत्तमोम्मे असंख्यातंभाग पूर्वोक्तानन्तभागाद्यर्थसंदृष्टीनां पुनः लघुसंदृष्टिनिमित्तं षड्विधवृद्धीनां यथासंख्यं अपरसंज्ञाः संदृष्टयः १५ कथ्यन्ते । अनन्तभागस्य उर्वङ्कः उ । असंख्यातभागस्य चतुरङ्कः ४ । संख्यातभागस्य पञ्चाङ्कः ५ । संख्यातगुणस्य षडङ्कः ६ । असंख्यातगुणस्य सप्ताङ्कः ७, अनन्तगुणस्य अष्टाङ्कः ८॥३२५॥ पूर्ववृद्धौ-अनन्तभागवृद्धी सूच्यङ्गुलासंख्यातभागमात्रवारान् गतायां सत्यां तु पुनः परवृद्धिः-असंख्यातभागवृद्धिरेकवारं भवति खलु स्फुटं, पुनरपि अनन्तभागवृद्धौ सूच्यङ्गलासंख्यातैकभागमात्रवारान् गतायां सत्यां असंख्यातभागवृद्धिरेकवारं भवति । अनेन क्रमेण तावद् गन्तव्यं यावदसंख्यातभागवृद्धिरपि सूच्यङ्गुलासंख्यातेक- २० भागमात्रवारान् गच्छति । ततः पुनरपि अनन्तभागवृद्धी सूच्यङ्गुलासंख्यातैकभागमात्रवारान् गतायां संख्यात पूर्वोक्त अनन्तभाग आदि अर्थसंदृष्टियोंकी पुनः लघुसंदृष्टि के निमित्त छह प्रकारकी वृद्धियोंकी यथाक्रम अन्य संज्ञा संदृष्टि कहते हैं-अनन्तभागवृद्धिकी उर्वक अर्थात् उ, असंख्यातभाग वृद्धिकी चारका अंक ४, संख्यातभागवृद्धिकी पाँचका अंक ५, संख्यातगुणवृद्धिकी छहका अंक ६, असंख्यातगुणवृद्धिकी सातका अंक ७, और अनन्तगुणवृद्धिकी आठका २५ अंक ८॥३२५॥ पूर्ववृद्धि अर्थात् अनन्तभागवृद्धिके सूच्यंगुलके असंख्यात भाग बार होनेपर परवृद्धि अर्थात् असंख्यातभागवृद्धि एक बार होती है। पुनः अनन्तभागवृद्धि सूच्यंगुलके असंख्यात भाग बार होनेपर असंख्यातभागवृद्धि एक बार होती है। इस क्रमसे तबतक जाना चाहिए जब तक असंख्यातभागवृद्धि भी सूच्यंगुलके असंख्यात भाग बार होवे । उसके पश्चात् पुनः ३० अनन्तभागवृद्धिके सूच्यंगुलके असंख्यात भाग मात्र बार होनेपर संख्यातभागवृद्धि एक बार होती है । पुनः पूर्वोक्त क्रमसे पूर्व-पूर्व वृद्धिके सूच्यंगुलके असंख्यातभाग मात्र बार होनेपर १. म वृद्धिगलेकैकवारंगलप्पुवु स्फुट । २. म दोडनंतभागवृद्धियुक्त स्थानंगलु पर्यायजघन्यज्ञानादिविकल्पगलु सूच्यं । ३. मतैकभाग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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