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________________ ५३२ गो० जीवकाण्डे वृद्धियुक्तस्थानमक्कु । ४। मो प्रकारदिंदमसंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातेक भागमात्रंगळागुत्तिरलु । मत्तं मुंदेयनंतकभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातेक भागमात्रंगळु नडदोम्म संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानमक्कु । ५। मत्तमनंतभागवृद्धिस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्रंगळु नडदोम्मे असंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानमक्कुंमत्तमंत अनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातैकभागंगळु नडदु मत्तोम्म असंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानमक्कुमितु असंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातेकभागमात्रंगळागुत्तिरलु मत्तमनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्रंगळु नडेडु मत्तमोम्म संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानमक्कुमितु पूर्वापूर्बानंतासंख्यातेकभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातकभागमात्रंगळु नउनडदोम्म संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळागुत्तमिरलु संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळं सूच्यंगुलीसंख्यातभागमात्रंगळ. प्पुवंतागुत्तिरलु मर्तमितनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळुमसंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळं प्रत्येक सूच्यंगुलासंख्यातैकभागप्रमितंगळु नडेनडेदु मतं मुंद अनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्रंगळु नडदोम्म संख्यातगुणवृद्धियुक्तस्थानमक्कु-। ६ । मितु पूर्वपूर्वभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यं गुलासंख्यातैकभागंगळु नडनडदोर्मोम्में संख्यातगुणवृद्धियुक्तस्थानंगळागुत्तं पोगलासंख्यातगुणवृद्धियुक्तस्थानंगळं सूच्यंगुलासंख्यातभागमात्रंगळप्पुवंतागुत्तिरलु । मत्तमित१५ नंतासंख्यातसंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळं प्रत्येक कांडकमितंगळ्नडेनडेदु मतं मुंदयनंतभाग वृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातेकभागमात्रंगळु नडदोम्में असंख्यातगुणवृद्धियुक्तस्थानमक्कुमिते पूर्वापूनितासंख्यातसंख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु संख्यातगुणवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुला भागवृद्धिरेकवारं भवति । पुनरपि पूर्वोक्तक्रमेण पूर्वपूर्ववृद्धो सूच्यङ्गुलासंख्यातभागमात्रवारान् गतायां परवृद्धिरेकैकवारं भवतीत्यङ्गुलासंख्यातभागमात्रसंख्यातभागवृद्धो गतायां पुनः पूर्ववृद्धिषु सर्वासु पूर्वोक्तक्रमण संख्यातभागवृद्धिरहितं आवतितासु संख्यातगुणवृद्धिरेकवारं भवति । उक्तानां वृद्धीनां पूर्वोक्तसंदृष्टयः-उ उ ४, उ उ ४, उ उ ५, उ उ ४, उ उ ४, उ उ ५, उ उ ४, उ उ ४, उ उ ६, द्विवालिखित उर्वङ्कादिः अङ्गलासंख्यातभागमात्रवारसंदृष्टिः । एवं षडङ्कपर्यन्तंपङ्क्तिगतोर्वङ्कादीनां सर्वेषामावृत्तौ सत्यां षडङ्कोऽप्यगुलासंख्यातभागमात्रवारान् गतः इत्यर्थः, ततः षडङ्करहितैकपङ्क्तेरावृत्तौ सत्यां एकवारं सप्ताङ्कनामा वृद्धि एक-एक बार होती है । इस प्रकार सूच्यंगुलके असंख्यातभाग मात्र संख्यात भागवृद्धिके २५ होनेपर पुनः पूर्वोक्त क्रमसे संख्यातभाग वृद्धिके सिवाय सब पूर्व वृद्धियोंकी आवृत्ति होनेपर एक बार संख्यात गुणवृद्धि होती है। उक्त वृद्धियोंकी पूर्वोक्त संदृष्टि इस प्रकार है उ उ४। उउ४। उ उ ५। उ उ४। उ उ ४। उउ५। उ उ उ उ४। उ उ६। उवंक आदिका दो बार लिखना सूच्यगुलके असंख्यातभाग मात्र बारकी संदृष्टि है। इस प्रकार षडंक पर्यन्त पंक्तिगत उर्वक आदि सबकी आवृत्ति होनेपर षडंक भी सूच्यंगुलके ३० असंख्यात बार हुआ। अर्थात् ६ के अंककी वृद्धि भी दो बार हुई कहलायी । उसके पश्चात् १. मयुक्त हूं। २. म मात्रस्थानंगलु। ३. मला संख्यातकभाग। ४. ममत्तमनन्तक भाग। ५. मतैकभाग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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