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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५२९ बह्वपर्याप्तभवभ्रमणसंभूतबहुतमसंक्लेशवृद्धियिंदमावरणक्के तीवानुभागोदयसंभवमप्पुरिदं । द्वितीयादिसमयंगळोळु ज्ञानदर्शनवृद्धि संभवमें दितु त्रिवक्रप्रथमवक्रसमयदोळे पर्यायज्ञानसंभवमरियल्पडुगुं । सुहुमणिगोद अपज्जत्तयस्स जादस्स पढमसमयम्मि । फासिंदियमदिपुव्वं सुदणाणं लद्धिअक्खरयं ॥३२२।। सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तकस्य जातस्य प्रथमसमये। स्पर्शनेंद्रियमतिपूवं श्रु तज्ञानं लब्ध्यक्षरकं॥ सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकन जननप्रथमसमयदोळु सर्वजघन्यस्पर्शनेंद्रियमतिज्ञानपूर्वकमप्प लब्ध्यक्षरापरनामधेयमप्प पूर्वोक्तचरमभवत्रिवप्रथमसमयादिविशेषणविशिष्टमप्प सर्वजघन्यपर्यायच तज्ञानमक्कुमेदितु ज्ञातव्यमक्कु । लब्धि एंबुदु श्रु तज्ञानावरणक्षयोपशममक्कुमर्थग्रहणशक्तिमेणु लब्ध्याअक्षरमविनश्वरं लब्ध्यक्षरं तावन्मात्रक्षयोपशमक्क सर्वदा विद्यमानत्वदिदं। १० अनंतरं दशगाथासूत्रंगळिदं पर्यायसमासप्रकरणमं पेन्दपं: अवरुवरिम्मि अणंतमसंखं संखं च भागवड्ढीओ। संखमसंखमणंतं गुणवड्ढी होंति हु कमेण ॥३२३॥ अवरोपऱ्यानंतमसंख्यं संख्यं च भागवृद्धयः । संख्यमसंख्यमनंतं गुणवृद्धयो भवंति हि क्रमेण ॥ सर्वजघन्यपव्यज्ञानदमेले क्रमेण वक्ष्यमाणपरिपाटियिंदमनंतभागवृद्धियुमसंख्यातभाग- १५ वृद्धियं संख्यातभागवृद्धियं संख्यातगुणवृद्धियुमसंख्यातगुणवृद्धियुमनंतगुणवृद्धियुमें दितु षट्स्थान. भवति । बह्वपर्याप्तभवभ्रमणसंभूतबहुतमसंक्लेशवृद्धया आवरणस्य तीव्रतमानुभागोदयसंभवात्, द्वितीयादिसमयेषु ज्ञानदर्शनवृद्धिसंभवात् 'त्रिवक्रप्रथमवक्रसमये एव पर्यायज्ञानसंभवो ज्ञातव्यः ॥३२१॥ सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकस्य जननप्रथमसमये सर्वजघन्यस्पर्शनेन्द्रियमतिज्ञानपूर्वकं लब्ध्यक्षरापरनामधेयं 'पूर्वोक्तचरमभवत्रिवक्रप्रथमसमयादिविशेषणविशिष्टं' सर्वजघन्यं पर्यायश्रुतज्ञानं भवतीति ज्ञातव्यम् । लब्धिर्नाम- २० श्रुतज्ञानावरणक्षयोपशमः अर्थग्रहणशक्तिर्वा, लब्ध्या अक्षरं अविनश्वरं लब्ध्यक्षरं तावतः क्षयोपशमस्य सर्वदा विद्यमानत्वात ॥३२२।। अथ दशभिर्गाथाभिः पर्यायसमासप्रकरणं प्ररूपयति सर्वजघन्यपर्यायज्ञानस्य उपरि क्रमेण वक्ष्यमाणपरिपाट्या अनन्तभागवृद्धिः असंख्यातभागवृद्धिः संक्लेशके बढ़नेसे आवरणके तीव्रतम अनुभागका उदय होता है, तथा दूसरे मोड़े आदिके समयोंमें ज्ञान और दर्शनमें वृद्धि सम्भव है। इसलिए तीन मोड़ोंमें-से प्रथम मोड़ेके समयमें २५ ही पर्याय ज्ञान जानना ॥३२१।। ___ सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक जीवके जन्म लेनेके प्रथम समयमें सबसे जघन्य स्पर्शन इन्द्रियजन्य मतिज्ञानपूर्वक तथा पूर्वोक्त विशेषणोंसे विशिष्ट सबसे जघन्य पर्याय श्रुतज्ञान होता है। उसका दूसरा नाम लब्ध्यक्षर है। श्रुतज्ञानावरणके क्षयोपशमको अथवा अर्थको ग्रहण करनेकी शक्तिको लब्धि कहते हैं। लब्धिसे जो अक्षर अर्थात् अविनाशी होता है, वह ३० लब्ध्यक्षर है ; क्योंकि इतना क्षयोपशम सदा विद्यमान रहता है ॥३२२।। अब दस गाथाओंसे पर्यायसमासका कथन करते हैंसबसे जघन्य पर्यायज्ञानके ऊपर आगे कही गयी परिपाटीके अनुसार अनन्तभागवृद्धि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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