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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका राशि शक्ति चक्षुद्देर्शनिगळ = २ व्यक्ति चक्षुद्देर्शनिजीवंगळु । प्र १ क = ४ इ। २ लब्ध =
अचक्षुर्दर्शनिगळु १३-अवधिदर्शनिगळु ५० केवलदर्शनिगळ ३-॥
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इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरुभूमं. डलाचार्य्यवर्यमहावादवादीश्वरराय वादिपितामहसकलविद्वज्जनचक्रवत्तिश्रीमदभयसूरिसिद्धांतचक्रवत्तिश्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्ट श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसारकर्णाटकवृत्ति ५ जीवतत्व प्रदीपिकयोळु विशमुपयोगाधिकारं निगदितमादुदु ॥
४। फ=| इच । पं । २। इति त्रैराशिकलब्धमात्रा:- = २ = व्यक्तिचक्षुर्दशनिनः-प्र-४। फ=इ२
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इति त्रैराशिकलब्धमात्राः = २ - अचक्षुर्दर्शनिनः १३- अवधिदर्श निनः केवलिदर्शनिनः सि ३ ॥६७६॥
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इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवतिविरचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ तत्त्वप्रदीपिका
ख्यायां जीवकाण्डे विंशतिप्ररूपणासु उपयोगमार्गणाप्ररूपणा नाम विंशोऽधिकारः ॥२०॥
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४८७ की टीकामें कहा है। अवधिदर्शनवालोंका परिमाण अवधिज्ञानियोंके समान और केवलदर्शनियोंका परिमाण केवलज्ञानियोंके समान जानना। एकेन्द्रियसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान पर्यन्त अनन्तानन्त जीवराशि प्रमाण अचक्षुदर्शनी हैं ॥६७६॥ इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अभयनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्तीके चरणकमलोंको धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमल रचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डके अन्तर्गत भव्य प्ररूपणाओंमें-से उपयोगमार्गणा प्ररूपणा नामक बीसवाँ
अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥२०॥
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